(समालखा से अशोक शर्मा की रिपोर्ट) महाराष्ट्र के पिंपरी, पुणे में आयोजित 58वें वार्षिक निरंकारी संत समागम का तीन दिवसीय आयोजन कल रात विधिवत रूप से संपन्न हो गया। समागम के समापन अवसर पर सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने लाखों श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि जीवन का उद्देश्य केवल भौतिक उपलब्धियों तक सीमित नहीं है, बल्कि आत्मिक उन्नति ही सच्चा उद्देश्य है।

सतगुरु माता जी के अमृत वचन:
सतगुरु माता जी ने अपने प्रवचनों में मनुष्य जीवन की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आत्मज्ञान प्राप्त कर परमात्मा निराकार को जानना ही इस जीवन का मुख्य लक्ष्य होना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि जीवन एक वरदान है, और इसे परमात्मा से जुड़े रहकर सही दिशा में जीना चाहिए। भक्ति और जिम्मेदारियों के बीच संतुलन ही सच्चा जीवन है।
सतगुरु माता जी ने उदाहरण देते हुए बताया कि जैसे एक पक्षी को उड़ने के लिए दोनों पंखों की आवश्यकता होती है, वैसे ही भक्ति और कर्तव्यों के संतुलन के बिना जीवन अधूरा है।

समागम में कई प्रेरणादायक और मनोरंजक कार्यक्रम आयोजित किए गए:
1. कवि दरबार:
‘विस्तार – असीम की ओर’ विषय पर बहुभाषी कवि दरबार का आयोजन हुआ, जिसमें देशभर के 21 कवियों ने मराठी, हिंदी, अंग्रेजी, कोंकणी और भोजपुरी में काव्य पाठ किया।
2. निरंकारी प्रदर्शनी:
‘विस्तार – असीम की ओर’ पर आधारित प्रदर्शनी ने श्रद्धालुओं को मिशन की विचारधारा, सतगुरु के कार्यों, और चैरिटेबल फाउंडेशन की गतिविधियों से अवगत कराया।
3. कायरोप्रैक्टिक शिविर:
ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, फ्रांस और यूनाइटेड किंगडम के 18 विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम ने रीढ़ की हड्डी से जुड़ी समस्याओं का निःशुल्क इलाज किया। लगभग 3500 श्रद्धालुओं ने इस शिविर का लाभ उठाया।
4. निःशुल्क स्वास्थ्य सेवाएं:
60 बिस्तरों का अस्थायी अस्पताल, होम्योपैथी डिस्पेंसरी और 11 एम्बुलेंस की व्यवस्था ने श्रद्धालुओं को हरसंभव चिकित्सा सुविधा प्रदान की। 282 डॉक्टरों और 450 स्वयंसेवकों ने अपनी सेवाएं दीं।
5. लंगर और कैंटीन:
तीन स्थानों पर 24 घंटे निःशुल्क लंगर की व्यवस्था की गई, जिसमें 72 क्विंटल चावल एक समय पर पकाने की क्षमता थी। इसके अतिरिक्त रियायती दरों पर 4 कैंटीन में अल्पाहार और अन्य आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराई गई।

भक्ति और सेवा का अद्भुत संगम:
इस समागम में सत्संग, सेवा और सिमरण की त्रिवेणी ने श्रद्धालुओं को आत्मिक शांति का अनुभव कराया। सतगुरु माता जी का संदेश था कि भक्ति और जिम्मेदारियों का संतुलन ही जीवन को पूर्णता प्रदान करता है।