हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के बीच चल रहे चर्चे में यह बात सामने आई है कि वे लोकसभा और विधानसभा चुनावों में अकेले ही बिना किसी सहयोगी पार्टी के साथ चुनाव लड़ने के पक्ष में हैं। इन नेताओं का मत है कि पार्टी को ये दोनों चुनाव अकेले अपने बूते पर लड़ने चाहिए। इसके पीछे कई कारण हैं, जो इस निर्णय की ओर प्रेरित कर रहे हैं।
बता दें कि हरियाणा में भाजपा गैर-जाट की राजनीति करती है, लेकिन जाट समुदाय की तादाद लगभग 25 प्रतिशत है। जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान हुई हिंसा के बाद जाट वोटर्स ने भाजपा के खिलाफ एक तरफा वोट डाला था। अगर भाजपा जननायक जनता पार्टी के साथ गठबंधन करती है, तो जाट वोटों का तीन जगहों पर बिखराव हो सकता है, जिससे भाजपा को फायदा हो सकता है। जेजेपी के नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं, जो बीजेपी नेताओं के द्वारा उठाए जा रहे हैं। इससे उन्हें यह आशंका है कि एक सहयोगी पार्टी के साथ गठबंधन करना उनकी चुनौती को बढ़ा सकता है और जाट वोटों की खोज में भी मुश्किलें आ सकती हैं।
अधिक सीटों पर जीत हासिल करने की संभावना
हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी के नेताओं का तर्क है कि वे सभी सीटों पर अपने उम्मीदवारों को उतारने के लिए गठबंधन की बजाय अकेले चुनाव लड़ने का समर्थन करते हैं। उनका मानना है कि यदि गठबंधन नहीं होता है, तो उन्हें अधिक सीटों पर जीत हासिल करने की संभावना है और यदि कोई सहयोगी पार्टी भी जीतती है, तो बाद में गठबंधन का विचार किया जा सकता है।
दिल्ली में उच्च स्तरीय बैठक में होगा निर्णय
नेताओं का एक और तर्क है कि अगर चुनाव में बहुमत प्राप्त नहीं होता है, तो उन्हें चुनाव के बाद सहयोगी पार्टियों के साथ गठबंधन करने का ऑप्शन रहेगा। यह उन्हें विधायकों की अधिकतम संख्या हासिल करने में मदद कर सकता है। यह सभी तर्क सामने आने के बावजूद आखिरकार चुनाव से पहले यह तय होगा कि कैसे और किस प्रकार की रणनीति अपनाई जाएगी। आखिरी निर्णय दिल्ली में होगा, जहां पार्टी की उच्च स्तरीय बैठक में निर्णय लिया जाएगा।