जूनियर महिला कोच से छेड़छाड़ मामले में शनिवार को चंडीगढ़ जिला अदालत में सुनवाई हुई। हरियाणा के पूर्व खेल मंत्री संदीप सिंह अदालत में पेश हुए। साथ ही शिकायतकर्ता जूनियर महिला कोच भी अपने दो वकील समीर सेठी और दीपांशु बंसल के साथ अदालत में पहुंची। अदालत में शिकायतकर्ता की ओर से लगाई गई अर्जी पर दोनों पक्षों के वकीलों की बहस हुई। मामले की अगली सुनवाई अब 16 दिसंबर को होगी।
बता दें कि गत दिनों महिला कोच की ओर से अदालत में शिकायत पत्र दिया गया था। जिसमें उन्होंने अपनी पहचान उजागर करने और आरोपी की जमानत के कारण जान का खतरा होने की आशंका जताई थी। इसके बाद आरोपी पक्ष की ओर से भी जवाब दे दिया गया है। अदालत में शनिवार को दोनों पक्षों की उन्हीं दलीलों पर सवाल-जवाब हुए। हालांकि अदालत किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंच पाई। इसके बाद न्यायाधीश ने मामले की अगली सुनवाई 16 दिसंबर को होने का समय दिया है। वहीं पीड़ित पक्ष की ओर से अर्जी लगाकर मामले की सुनवाई मजिस्ट्रेट से हटाकर सेशन कोर्ट में चलाने की मांग की गई।
साथ ही मामले की सुनवाई रोजाना के आधार पर करने की अर्जी डाली गई थी। बताया जा रहा है कि पीड़ित पक्ष की ओर से कुछ लोगों की ओर से पंचकूला में पत्रकारवार्ता कर उसका नाम उजागर करने और उन्हें सार्वजनिक रूप से बदनाम करने वाले लोगों के खिलाफ आईपीसी की धारा 228ए, 449 और 500 के तहत कार्रवाई की मांग के लिए अर्जी डाली गई थी। इस मामले में भी अदालत में सुनवाई की जानी थी।
पूर्व खेल मंत्री पर इन धाराओं के तहत किया गया था मुकदमा दर्ज
बता दें कि पीड़ित महिला कोच की शिकायत के आधार पर चंडीगढ़ पुलिस ने हरियाणा के पूर्व खेल मंत्री संदीप सिंह पर दो गैर जमानती धाराओं सहित कई अलग-अलग धाराओं में मुकदमा दर्ज किया था। इनमें आईपीसी की धारा 342 अर्थात गलत तरीके से कब्जे में रखने और 354 कपड़े फाड़ने के आरोप में लगाई जाती है। आईपीसी की धारा 354 जमानती धारा है, यह छेड़छाड़ के लिए लगाई जाती है। धारा 506 धमकाने के लिए लगाई जाती है। इसके अलावा शारीरिक छेड़छाड़ की धारा 354 और छेड़छाड़ की धारा 509 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था।
पीड़ित पक्ष ने जान और गोपनीयता को बताया खतरा
बताया जा रहा है कि पीड़ित पक्ष की ओर से हरियाणा के पूर्व खेल मंत्री संदीप सिंह को अग्रिम जमानत मिलने पर विरोध जताया गया है। उनकी तरफ से अदालत में अर्जी लगाकर कहा गया है कि आरोपी हरियाणा में अपना रसूख रखता है। इस कारण उनके जमानत मिलने के बाद उन्हें जान और गोपनीयता का खतरा है। इस कारण आरोपी की जमानत रद्द की जाए। अन्यथा जमानत में कुछ शर्त लागू की जाएं, ताकि पीड़ित पक्ष को किसी परेशानी का सामना न करना पड़े।