Haryana इसे महंगाई का असर कहें या बढ़ती प्रतिस्पर्धा…। निकाय चुनावों की तैयारियों के बीच एक बड़ा बदलाव देखने को मिला है। चुनाव खर्च की सीमा में बढ़ोतरी की गई है। अगर पिछले निकाय चुनावों से तुलना की जाए तो चार साल में मेयर पद पर चुनाव खर्च की सीमा में 10 लाख रुपये तक का इजाफा हुआ है। वर्ष 2020 से पहले इस पद पर चुनाव खर्च की सीमा 20 लाख रुपये तय थी, जो इस बार बढ़कर 30 लाख रुपये हो गई है। चुनाव खर्च की बढ़ी सीमा से इस बार प्रचार की चमक बढ़ने के आसार हैं।
अन्य पदों पर भी बढ़ी खर्च सीमा
मेयर: साल 2020 से पहले मेयर चुनाव में खर्च की सीमा 20 लाख रुपये निर्धारित थी, जिसे नवंबर 2020 में बढ़ाकर 22 लाख और बाद में 25 लाख कर दिया गया था। इस बार यह सीमा 30 लाख रुपये हो गई है।
निकाय पार्षद : इस पद पर चुनाव खर्च की सीमा 2020 से पहले 5 लाख रुपये थी, जिसे नवंबर 2020 में बढ़ाकर 5.50 लाख और बाद में 6 लाख कर दिया गया। इस बार यह सीमा 7.50 लाख रुपये हो गई है।
नगर परिषद अध्यक्ष: इस पद पर साल 2022 से पहले चुनाव खर्च की सीमा 15 लाख रुपये निर्धारित थी, जिसे बढ़ाकर 16 लाख किया गया था और अब सीधे ही 4 लाख रुपये का इजाफा करते हुए 20 लाख रुपये कर दिया गया है।
नगर परिषद सदस्य: साल 2022 से पहले नगर परिषद सदस्य के चुनाव खर्च की सीमा 3.30 लाख रुपये से बढ़ाकर 3.50 लाख रुपये कर दी गई थी। अब इसमें एक लाख रुपये का इजाफा करते हुए 4.50 लाख रुपये कर दिया गया है।
नगर पालिका अध्यक्ष: नगर पालिका के अध्यक्ष के पद पर चुनाव खर्च की सीमा वर्ष 2022 से पहले 10 लाख रुपये थी, जिसे बाद में बढ़ाकर 10.50 लाख रुपये कर दिया गया था। अब इस सीमा को बढ़ाकर 12.50 लाख लाख रुपये कर दिया गया है।
नगर पालिका सदस्य: इस पद पर चुनाव खर्च की सीमा साल 2022 से पहले 2.25 लाख रुपये निर्धारित थी, जिसे बढ़ाकर 2.50 लाख रुपये कर दिया गया था। अब इस सीमा को बढ़ाकर 3 लाख रुपये कर दिया गया है।
चुनावी खर्च में पारदर्शिता और जवाबदेही अनिवार्य
बढ़ी हुई खर्च सीमा के बावजूद निर्वाचन आयोग ने स्पष्ट किया है कि उम्मीदवारों को अपने खर्च का पूरा रिकॉर्ड रखना होगा। इससे यह सुनिश्चित होगा कि चुनावी प्रक्रिया निष्पक्ष और पारदर्शी बनी रहे। निर्वाचन आयोग ने स्पष्ट किया है कि उम्मीदवारों को अपने चुनावी खर्च का पूरा विवरण 30 दिनों के भीतर उपायुक्त को देना होगा। यदि कोई उम्मीदवार तय समय में खर्च का ब्योरा जमा करने में असफल रहता है तो उसके खिलाफ चुनाव आयोग कड़ी कार्रवाई कर सकता है। कार्रवाई के तहत पांच साल तक चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य माना जाएगा।