जैन मुनि गुरुदेव रमेश मुनि महाराज ने कहा कि अहिंसा और सत्य मार्ग का नारा देने वाले भगवान महावीर स्वामी ने अपनी वाणी से सभी को एक सामान समझा है, चाहे वह कोई भी जात-पात का हो। उन्होंने कहा कि मन से किए गए कर्म का प्रभाव सबसे अधिक होता है। भगवान महावीर के सद्मार्ग पर चलना कठिन है, लेकिन असंभव नहीं है। कई साधु संतों ने उनका रास्ता अपनाकर श्रद्धालुओं का मार्गदर्शन किया। हमें सदैव सच्चाई के मार्ग पर प्रेरित होकर जरूरतमंदों की भलाई के लिए कार्य करना चाहिए।
हरियाणा के जिला सोनीपत के गुड़ मंडी स्थित जैन स्थानक में श्री एसएस जैन सभा की ओर से चातुर्मास के तहत आयोजित प्रवचन सभा के दौरान गुरुदेव रमेश मुनि महाराज श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान युवा जैन मुनि प्रवचन भास्कर मुकेश मुनि महाराज और मुदित मुनि महाराज ने भी अपनी प्रवचनों रूपी गंगा से प्रवचन सभा के दौरान श्रद्धालुओं का मार्गदर्शन किया। गुरुदेव रमेश मुनि महाराज ने कहा कि मन के कर्म प्रभावित होते हैं, जो चिलकाल तक हमें लाभ पहुंचाते हैं। भगवान महावीर ने लोगों से चिंतन कर अपने मन को शुद्ध करने की अपील की।
स्वस्थ रहते हुए मोक्ष और ज्ञान की प्राप्ति के प्रयास जरूरी
गुरुदेव रमेश मुनि महाराज ने बताया कि कर्म तीन प्रकार के होते हैं। पहला जो हम तन से करते हैं, दूसरा जो हम वचन से करते हैं और तीसरा जो कर्म मन से किए जाते हैं। इन सभी में से मन से किया गया कर्म का प्रभाव सबसे अधिक प्रभावित होता है। उन्होंने कहा कि मनुष्य जीवन बहुत ही कठिनाइयों के बाद प्राप्त होता है, जिसे व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए। शरीर के स्वस्थ रहते ही मनुष्य को मोक्ष और ज्ञान की प्राप्ति के लिए प्रयास करना चाहिए। प्रत्येक मनुष्य को अपने जीते जी और स्वस्थ रहते ज्ञान की प्राप्ति करना आवश्यक है, जो उसके लिए मोक्ष का द्वार खोलती है। उन्होंने कहा कि भगवान से जिस उद्देश्य से मनुष्य को इस संसार में भेजा है, वह उसे भूलकर मोहमाया के जाल में फंसता जा रहा है।
ज्ञान की प्राप्ति के बिना मोक्ष पदवी मिलना असंभव
मुकेश मुनि महाराज ने कहा कि मनुष्य लालच में आकर ज्ञान की प्राप्ति नहीं करता, जिससे मोक्ष पदवी मिलना संभव नहीं हैं। उन्होंने कहा कि परमात्मा निरंकार हैं। वह हर जगह और कण कण में विद्यमान है, इसलिए प्रभु महावीर का स्मरण अवश्य करें। आज हर आदमी दूसरे की तरह बनना चाहता है, लेकिन अपने आप में राजी रहना भी एक कला है। उन्होंने कहा कि संसार का प्रत्येक मनुष्य हिंसक हो जाए तो समाज का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। इससे भय और अशांति का साम्राज्य स्थापित हो जाएगा। अगर हम भगवान महावीर के अहिंसा परमोधर्म, अपरिग्रह और अनेकांतवाद को अपना लें तो हर समस्या का निदान हो सकता है।