Bhiwani जिले के सिवानी मंडी में लगातार बढ़ते तापमान से लोगों को काफी परेशानी हो रही है। ऐसे में 24 वर्षीय महंत पारुल भगत(Mahant Parul Bhagat) पिछले 20 दिनों से तपस्या कर रहे हैं। उनकी तपस्या एक महीने की है, जो हर रोज सुबह 11 बजे से दोपहर 2 बजे तक होती है। इस दौरान वे अपने चारों ओर आग जलाकर तपस्या करते हैं।
हिसार-राजगढ़ रोड पर स्थित संजीवनी आश्रम(Sanjeevani Ashram) संचालक पारुल भगत इस भीषण गर्मी(scorching heat) में पंच धूणी अग्नि तपस्या(Panch Dhuni Agni Tapasya) कर रहे हैं। उनकी इस तपस्या को देखने के लिए आसपास के इलाकों से लोग बड़ी संख्या में आ रहे हैं। संजीवनी आश्रम के सदस्य नवीन सुरतपुरिया ने बताया कि पारुल भगत 47-48 डिग्री तापमान के बीच तपस्या कर रहे हैं। उनके चारों ओर पांच धूणे जलाए जाते हैं। उनकी तपस्या दोपहर 11 बजे से 2 बजे तक चलती है। इसके लिए एक विशेष स्थान तय किया गया है, जहां वे बीच में बैठते हैं और चारों ओर 5 फीट की दूरी पर गोबर के कंडे जलाकर धूणी बनाई जाती है। इस भीषण गर्मी में जलती हुई आग के बीच पारुल भगत एक ही अवस्था में मौन धारण करके हाथ में 108 कंठी माला लिए बैठे रहते हैं। अलाव का ताप इतना तेज होता है कि सामान्य आदमी 100 फीट दूरी से भी भयंकर गर्मी महसूस करता है] लेकिन पारुल भगत इन पांच जलते हुए धूणों के बीच एक ही अवस्था में बैठे रहते हैं।
उन्होंने 10 मई से इस तपस्या की शुरुआत की थी। उनका कहना है कि सभी प्राणियों में सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो और पाप का विनाश हो, देश खुशहाल हो। इसलिए संत पंच धूणी तपस्या जेठ के महीने में ही करते हैं। यह तपस्या परमात्मा को खुश करने के लिए की जाती है। हर रोज दोपहर 11 से 2 बजे के बीच वे 5 कुंडों में कंडों को जलाकर तपस्या करते हैं। पिछले साल भी उन्होंने एक महीने की तपस्या की थी। इस बार उनकी तपस्या 9 जून को सम्पन्न होगी। उसके बाद जागरण और भंडारे का आयोजन किया जाएगा। इस मौके पर नवीन सूरतपुरिया, चंद्र बंसल, कपिल तनेजा, पवन मोटू, विपुल, राजू मेहता, दिनेश वशिष्ठ, राजेंद्र फोगला, नवीन, सचिन वर्मा, धीरज शर्मा आदि मौजूद रहे।
आध्यात्मिक साधना का हिस्सा
यह तपस्या न सिर्फ उनकी आध्यात्मिक साधना का हिस्सा है, बल्कि इसे देखने के लिए आने वाले लोगों के लिए भी यह एक अद्भुत अनुभव है। इस तपस्या का उद्देश्य न सिर्फ व्यक्तिगत सिद्धि प्राप्त करना है, बल्कि समाज और विश्व के कल्याण के लिए प्रार्थना करना भी है। पारुल भगत की यह तपस्या एक महीने तक चलेगी, जिसमें वे अपने शरीर और मन की सीमाओं को परखते हुए, उच्च आध्यात्मिक स्तर को प्राप्त करने की कोशिश करेंगे।
तपस्या के अंत में होगा जागरण एवं भंडारा
तपस्या के दौरान उनके अनुयायी और स्थानीय लोग उनके पास रहते हैं और उनकी देखभाल करते हैं। इस कठिन तपस्या को देखकर लोग उनसे प्रेरित होते हैं और उनकी श्रद्धा और भक्ति को सराहते हैं। पारुल भगत के इस तपस्या के अंत में जागरण और भंडारे का आयोजन किया जाएगा, जिसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल होंगे और उनके साथ इस धार्मिक अनुष्ठान का हिस्सा बनेंगे।
जीवन में आते है सकारात्मक बदलाव
इस प्रकार की तपस्या न सिर्फ धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि यह समाज में शांति और सद्भावना के संदेश को फैलाने का एक माध्यम भी है। पारुल भगत की इस कठिन तपस्या के माध्यम से लोगों को यह संदेश मिलता है कि धैर्य, समर्पण और आत्मविश्वास के साथ किसी भी कठिनाई का सामना किया जा सकता है। उनकी तपस्या से प्रेरित होकर लोग अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने की कोशिश करते हैं और समाज में भी एक अच्छा उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।