ओलिंपिक गोल्ड मेडलिस्ट नीरज चोपड़ा ने कहा कि अपनी बोली से हमें ऐसा लगाव होता है, जैसा कि मां-बाप से। आज भी ऐसी कई सेलिब्रिटीज हैं, जो अपनी बोली को कभी नहीं छोड़ती। जब वह टीवी की स्क्रीन पर अपनी बोली में बोलते हैं तो नीचे टाइटल चलता है। इसे मातृ भाषा नहीं, मातृ बोली के रूप में देखा जाए। जब हम अपने घर से बाहर निकलते हैं तो अपनापन सा महसूस नहीं होता, ऐसा मेरे साथ कई बार विदेशों में हुआ है, इसलिए आप कहीं भी जाओ, लेकिन अपनी बोली बोलने में शर्म नहीं करनी चाहिए।
गोल्डन ब्वॉय नीरज चोपड़ा रविवार को हरियाणा के जिला पानीपत में अपने गांव खंडरा में हरियाणवी बोली को प्रमोट करने पहुंचे थे। उन्होंने कहा कि हरियाणवी बोली को कैसे मान-सम्मान दिलवाया जाए, कैसे युवा अपनी बोली पर गर्व महसूस करें, इन सब मुद्दों पर नीरज चोपड़ा ने खुलकर अपने विचार रखें। इससे पहले ओलिंपियन नीरज चोपड़ा ट्रैक्टर पर सवार होकर गांव खंडरा में आयोजित कार्यक्रम में पहुंचे। उनके स्वागत में विभिन्न हरियाणवी सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए। इस दौरान नीरज ने कहा कि वह गांव में पैदा हुए हैं। गांव में ही पले बढ़े हैं, इसलिए बोलियों की क्रांति की इस पत्रकारवार्ता के साथ अपने ही गांव में करना चाहते हैं। चोपड़ा ने कहा कि कई बार बड़े स्तर पर भी अपनी बोली लोगों के दिलों में छाप छोड़ जाती है, इसलिए खासकर युवा वर्ग अपनी बोली को लेकर शर्म न करें और आगे बढ़े। हमें अपनी बोली पर लाज नहीं नाज करना चाहिए।
नीरज चोपड़ा ने पत्रकारों के साथ बातचीत में कहा कि आज के इस भौतिकतावादी युग में अपनी बोलियों को बचाने की जरूरत है। इसे हम तभी बचा पाएंगे, जब हम इसे बोलने से न शर्माएं और न झिझकें। स्टेज एप ने बोलियों को मान सम्मान दिलवाने में हरसंभव कोशिश की है। इनकी इसी कोशिश ने मुझे प्रेरित किया। अब मैं इस क्रांति के साथ हूं और अपनी तरफ से इस क्रांति को आगे बढ़ाने में मदद करूंगा। नीरज चोपड़ा ने कहा कि स्टेज राजस्थानी बोली में भी काम करता है और व्यक्तिगत रूप से मैं राजस्थान से बहुत जुड़ा हूं, मेरी प्रेरणा महाराणा प्रताप हैं। महाराणा प्रताप का शस्त्र भाला है और भाला ही मेरा खेल है।

भले ही बोलियों का कोई व्याकरण नहीं, फिर भी है अभिन्न अंंग
गोल्डन ब्वॉय नीरज चोपड़ा ने कहा कि घर और गांव में हम अपनी बोली में ही बात करते हैं। अपने सुख-दुख और भावनाएं हम अपनी बोली में प्रदर्शित करते हैं। ऐसा करके एक खुशी का अहसास भी होता है, लेकिन शहर में हम इसे बोलने में हिचकिचाते हैं। उन्होंने कहा कि भले ही बोलियों का कोई व्याकरण नहीं है, लेकिन किस्से, कहानियां, लोक कथाएं सब बोलियों का अभिन्न अंग हैं। जितना साहित्य बोलियों में मिलता है, उतना अन्य किसी भाषा में नहीं मिलता। नीरज चोपड़ा ने सभी को जागरूक करते हुए बताया कि किस प्रकार से हम हमारी क्षेत्रीय बोलियों को मान सम्मान दिलवा सकते हैं। उनकी भविष्य में इस अभियान को लेकर क्या योजनाएं हैं।
युवाओं को समझाने के लिए दिया पेड़ और मिट्टी का उदाहरण
नीरज चोपड़ा ने कहा कि युवाओं को पेड़ और मिट्टी का उदाहरण देते हुए समझाया कि जिस प्रकार पेड़ मिट्टी के अंदर जितना गहरा जाएगा, उसकी उंचाई उतनी ही ज्यादा बढ़ेगी। हमें हमेशा अपने बड़ों और अपनी जमीन से जुड़कर चलना चाहिए, क्योंकि हरियाणा की संस्कृति ने हमें यही चीज सिखाई है कि गांव से जुड़ा रहना और भाईचारा ही एक इंसान की सफलता का रहस्य होता है। उन्होंने कहा कि बोली कहीं खोई हुई नहीं है, बल्कि सोई हुई है।
उन्होंने कहा कि हम हमेशा इंग्लिश को एक स्किल के तौर पर देखते हैं, जबकि वह भी एक भाषा ही है। नीरज ने कहा कि वह अभिभावकों से यही आह्वान करते हैं कि इंसान एक साथ 10 भाषाओं का ज्ञान हासिल कर सकता है, लेकिन अपनी बोली को कभी न छोड़े। आज युवाओं को अपनी बोली के प्रति जागरूक करने के लिए एक क्रांति की जरूरत है।

सीरिज में दिखने की बात पर नीरज ने कहा अभी खेलने की है उम्र
जब सिटी तहलका के पत्रकार ने गोल्डन ब्वॉय नीरज चोपड़ा से सीरिज में दिखने की बात पूछी तो उन्होंने कहा कि अभी उनके खेलने के दिन हैं। भविष्य में पेरिस ओलंपिक गेम्स होने वाले हैं। अगले साल पेरिस ओलंपिक में उनका लक्ष्य देश के लिए गोल्ड मेडल हासिल करना है। वह जितना लंबा फैंक पाएंगे, इस पर पूरा फोकस रहेगा। खेल के साथ ही वह गांव, बच्चों, हरियाणवी बोली और जो काम अच्छा लगेगा, उस पर पूरा फोकस रखेंगे। समय बहुत कम ही मिलता है, लेकिन कोशिश पूरी रहेगी कि वह अपनी बोली और बच्चों के खेल के लिए बेहतर कर सकें।
ज्यादा पैड़ी छोड़कर आगै बढ़ने आल्या के पाट जाया करैं पायजामे
क्रिकेट के शतक की तरह भाला फैंकने में शतक के सवाल पर गोल्डन ब्वॉय नीरज चोपड़ा ने चुटकी लेते हुए कहा कि शतक तो आज तक वर्ल्ड रिकॉर्ड वाला भी नहीं पहुंचा है। फिर भी हरियाणवी में कहावत है कि इंसान नै एक-एक पैड़ी करके आगै बढ़ना चाहिए। ज्यादा पैड़ी छोड़कर आगै बढ़ने वाल्या के पायजामे पाट जाया करैं। इसलिए उनकी सोच है कि इंसान को धीरे-धीरे ही आगे बढ़ना चाहिए। 90 पूरा होने के साथ अब वह एक-एक या दो-दो मीटर खेल को आगे बढ़ाएंगे।
बॉलीवुड में भी आज हरियाणवी बोली को दी जा रही तवज्जों
नीरज चोपड़ा ने कहा कि जब देश के लोगों को हिंदी अच्छी तरह आती है तो दूसरी बोली के पीछे भागना उचित नहीं है। ऐसा ही वह हरियाणा के लोगों से पूछना चाहते हैं कि जब हम हरियाणवी बोली में परफेक्ट हैं तो इसमें शर्माने की बात नहीं होनी चाहिए। वह अभिभावकों से भी यही कहना चाहते हैं कि किसी भी भाषा को आसानी से सीखा जा सकता है, लेकिन हमारी बोली हरियाणवी की टोन एक बार छूटने के बाद उसे दोबारा पकड़ना मुश्किल है।
नीरज ने कहा कि वह यह नहीं कहते कि कोई तरक्की न करें, लेकिन बच्चों को अपनी बोली का ज्ञान देना भी जरूरी है। आप देख सकते हैं कि बॉलीवुड में भी आज हरियाणवी बोली को तवज्जों दी जा रही है। सबका सोचना है कि हरियाणवी बोली को आगे लाना चाहिए। वह खुद इन बातों पर अमल कर रहे हैं, ताकि लोगों को बता सकें कि हम हरियाणा के हैं।

वैश्विक चेहरे को हरियाणवी बोलने में झिझक नहीं तो आमजन को क्यों : विनय सिंघल
इस मौके पर स्टेज के संस्थापक विनय सिंघल ने कहा कि नीरज चोपड़ा को ब्रांड एम्बेसडर बनाने के पीछे हमारा सबसे बड़ा कारण यही था कि नीरज अपनी मातृ बोली को भरपूर सम्मान देते हैं। भले ही नीरज आज पूरे विश्व का चेहरा है, लेकिन अपने अधिकतर साक्षात्कार इन्होंने अपनी मातृ बोली में ही दिए हैं। जब इतने बड़े वैश्विक चेहरे को हरियाणवी बोलने में झिझक महसूस नहीं होती तो फिर आम आदमी को किस बात की झिझक। नीरज अपने खेल से तो युवाओं के लिए प्रेरणा हैं ही, साथ ही युवाओं को नीरज के अपनी बोली और संस्कृति के प्रति प्रेम से भी प्रेरणा लेनी चाहिए।
क्षेत्रीय भाषा में बने कांटेंट को देखेगा पूरा विश्व, रोजगार मुहैया करवाने का भी प्रयास
स्टेज के सह संस्थापक शशांक वैष्णव और प्रवीण सिंघल ने कहा कि नीरज के स्टेज के साथ आने से क्षेत्रीय बोलियों के प्रति युवाओं का प्रेम और सम्मान बढ़ेगा। स्टेज हमेशा बोलियों को आगे बढ़ाने में प्रयासरत रहेगा। जहां हरियाणा और राजस्थान के युवा मुंबई में फिल्म और टेलिविजन में काम करने के लिए मुंबई में संघर्ष करते थे। आज स्टेज के आने के बाद युवाओं को मुंबई जाने की जरूरत महसूस नहीं होती। हरियाणा और राजस्थान के फिल्म मेकर जहां फिल्म बनाने के लिए संघर्षरत थे, आज इन प्रदेशों में हर महीने 5 से 6 वेब सीरिज और फिल्मों के शूट हो रहे हैं। स्टेज ने क्षेत्रीय बोलियों के लेखकों, अभिनेताओं और फिल्म से जुड़े अन्य रोजगार मुहैया करवाने का भी प्रयास किया है। आने वाले समय में स्टेज पर बने क्षेत्रीय भाषा में कांटेंट को पूरा विश्व देखेगा।