पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा वीरवार को एक मामले पर सुनवाई करते हुए अहम फैसला दिया गया है। जिसमें डिस्टेंस लर्निंग यानी कि दूरस्थ शिक्षा से डिग्री हासिल करने वाले उम्मीदवारों को इंजीनियर नहीं माना जा सकता।
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा यह भी कहा गया है कि दूरस्थ माध्यम से इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त करने वाला कर्मचारी ऐसी डिग्री के आधार पर पदोन्नति के लिए पात्र नहीं होगा। हाईकोर्ट का विचार था कि जो व्यक्ति शारीरिक रूप से कक्षाओं-पाठ्यक्रम में उपस्थित नहीं हुआ है और व्यावहारिक प्रशिक्षण नहीं लिया है, उसे इंजीनियर नहीं कहा जा सकता है।
विनाशकारी होंगे परिणाम
कोर्ट ने कहा है कि यह स्वीकार करना मुश्किल है कि दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से इंजीनियरिंग की डिग्री नियमित तौर पर ली गई डिग्री के बराबर होगी। इंजीनियरिंग के अध्ययन में, सैद्धांतिक अवधारणाओं को पढ़ाया जाता है, जिन्हें बाद में व्यावहारिक प्रशिक्षण के माध्यम से व्यवहार में लाया जाता है।
यदि हम दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से प्राप्त ऐसी डिग्रियों को स्वीकार करते हैं, तो वह दिन दूर नहीं जब दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से एमबीबीएस पाठ्यक्रम संचालित किए जाएंगे। जिसके विनाशकारी परिणाम होंगे। हाई कोर्ट ने कहा कि मैं यह सोचकर डरता हूं कि क्या कोई मरीज ऐसे डाक्टर से इलाज कराना चाहेगा, जिसने दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से एमबीबीएस की डिग्री हासिल की हो।
याचिकाकर्ताओ ने देश के प्रतिष्ठित संस्थानों से ली थी इंजीनियर की डिग्री
हाईकोर्ट के जस्टिस अनुपिंद्र सिंह ग्रेवाल ने नरेश कुमार और अन्य, जो पीडब्ल्यूडी विभाग हरियाणा के कर्मचारी है, ने एक अन्य कर्मचारी की पदोन्नति को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए ये आदेश पारित किए हैं। जिन्हें कार्यकारी अभियंता (एक्सईएन) के पद पर पदोन्नत किया गया था। जिसने जेआरएन राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय से दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से बीई की डिग्री प्राप्त की, जबकि याचिकाकर्ताओं ने देश के प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग संस्थानों से डिग्री ली थी।