पानीपत की राजनीति में बुधवार को बड़ी हलचल देखने को मिलने वाली है। क्योंकि 2005 में कांग्रेस के टिकट पर समालखा के विधायक रह चुके भरत सिंह छौक्कर ने एक बार फिर से कांग्रेस पार्टी का दामन थाम लिया है। उन्होंने रणदीप सुरजेवाला के नेतृत्व में दिल्ली मुख्यालय पर पार्टी ज्वाईन की है। उन्होंने कहा कि आगामी चुनाव उनके राजनीति करियर की आखिरी पारी होगी। उन्होंने हर पार्टी के साथ काम कर देख लिया है, लेकिन जो मान-सम्मान कांग्रेस पार्टी ने दिया था, वह उसे जिंदगी भर नहीं भूला सकते हैं।
बता दें कि 2 दिन पहले ही भरत सिंह छौक्कर ने अपने हल्के में जनसभा को संबोधित करते हुए चुनाव लड़ने का ऐलान किया था। हालांकि उस वक्त उन्होंने राजनीति दल का खुलासा नहीं किया था। 1996 में बसपा से राजनीति शुरू करने वाले छौक्कर अब से पहले 6 पार्टियां बदल चुके हैं। वह भाजपा, हजकां, लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी (लोसुपा), इनेलो, हजका व आप में आना-जाना कर चुके हैं।
कुछ इस प्रकार रहा राजनीतिक करियर
वर्ष 1996 में बसपा से राजनीति की शुरुआत करने वाले भरत सिंह छौक्कर ने बाद में कांग्रेस का झंडा उठा लिया। भूपेंद्र हुड्डा की बदौलत 2005 में टिकट मिला और चुनाव भी जीत गए। अगला चुनाव आते-आते उनके नंबर कट गए। 2009 में कांग्रेस ने संजय छौक्कर को टिकट दे दिया, इस बात से नाराज होकर उन्होंने पार्टी छोड़ दी।
हजकां टिकट पर चुनाव लड़े, धर्म सिंह छौक्कर का दिया साथ
समालखा से तब की हरियाणा जनहित कांग्रेस यानी हजकां की टिकट पर चुनाव लड़े धर्म सिंह छौक्कर का समर्थन कर दिया। धर्म सिंह छौक्कर जीत भी गए। इस दौरान भरत सिंह हजकां के अध्यक्ष कुलदीप बिश्नोई से भी मिले। पर कुछ समय बाद इनका हजकां से भी मोह भंग हो गया। हजकां को बाय-बाय कर इन्होंने राजकुमार सैनी का समर्थन कर दिया।
उम्मीद होने के बाद भी नहीं मिली टिकट
राजकुमार सैनी भाजपा छोड़कर अपनी पार्टी बना चुके थे। पर देखा कि राजकुमार सैनी के साथ रहने का फायदा नहीं है, तब उन्होंने पिछले चुनाव में भाजपा का दाम थामा। हालांकि इससे पहले भी वह भाजपा में रह चुके थे। इस बार उन्हें उम्मीद थी कि पार्टी उन्हें टिकट देगी, पर ऐसा नहीं हुआ। फिर भी पार्टी में बने रहे। इसके बाद किसान आंदोलन का तर्क देते हुए भाजपा को अलविदा बोल दिया है।