दहेज उत्पीड़न के मामले में अब बिना कारण दर्ज किए आरोपियों की गिरफ्तारी हुई तो पुलिस अधिकारियों पर विभागीय और न्यायालय की अवमानना के तहत गाज गिरेगी। साथ ही बिना कारण दर्ज किए हिरासत की अवधि बढ़ाने वाले मजिस्ट्रेट पर भी हाईकोर्ट विभागीय कार्रवाई करेगा। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा, पंजाब व चंडीगढ़ के लिए अहम आदेश जारी करते हुए यह स्पष्ट कर दिया है कि दहेज उत्पीड़न के मामले में आरोपियों की गिरफ्तारी से पहले जांच अधिकारी को इसके लिए कारण दर्ज करना अनिवार्य होगा। अगर गिरफ्तारी जरूरी है तो एक चेकलिस्ट में इसके कारण दर्ज कर इसे मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करना होगा।
बता दें कि चंडीगढ़ पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने पंजाब, हरियाणा व चंडीगढ़ प्रशासन को निर्देश दिए कि पुलिस सुनिश्चित करे कि बेवजह कोई गिरफ्तारी न की जाए। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि दहेज उत्पीड़न समेत सात साल या इससे कम सजा के मामलों में गिरफ्तारी सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के मुताबिक ही की जाए। अन्यथा पुलिस कर्मी विभागीय कार्रवाई या अदालत की अवमानना के हकदार होंगे। हाईकोर्ट ने निचली अदालतों में मजिस्ट्रेट को भी निर्देश दिए कि वे इन मामलो में मैकेनिकल तौर पर आरोपी को जेल भेजने के आदेश जारी न करें। दहेज उत्पीड़न के एक मामले में आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि इन मामलों में मोहम्मद अशफाक आलम बनाम झारखंड सरकार और अरनेश कुमार बनाम बिहार सरकार केस में सुप्रीम कोर्ट के दिए आदेशों का सख्ती से पालन किया जाए।
स्पष्ट किया जाए गिरफ्तारी की जरूरत क्यों पड़ी
सुप्रीम कोर्ट ने मामलों में कहा है कि दहेज उत्पीड़न के मामलों में पुलिस कर्मी अपने आप से ही आरोपी की गिरफ्तारी न करें, बल्कि जरूरत महसूस होने पर ही गिरफ्तारी की जाए। मजिस्ट्रेट की अदालत में आरोपी को पेश करते समय पुलिस अधिकारी के पास चेक लिस्ट होनी चाहिए। जिसमें स्पष्ट किया जाए कि गिरफ्तारी की जरूरत क्यों पड़ी। मजिस्ट्रेट पुलिस की इस संबंध में रिपोर्ट पर विचार करने के बाद संतुष्ट होने पर ही आरोपी को पुलिस हिरासत अथवा जेल भेजे।