एसडी पीजी कॉलेज पानीपत की राष्ट्रीय सेवा योजना और बीएलके मैक्स कैंसर सेंटर नई दिल्ली के संयुक्त तत्वाधान में विश्व कैंसर दिवस के अवसर पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। जिसमें बतौर मुख्य वक्ता डॉ. निधि नैय्यर फेलोशिप स्त्री रोग संबंधी ऑन्कोलॉजी आरजीसीआईआरएस दिल्ली ने शिरकत की और गर्भाशय, ग्रीवा, अंडाशय, एंडोमेट्रियल, योनिमुख और स्तन कैंसर होने के कारणों और इससे बचने के उपायों पर विस्तृत चर्चा की और अपने मेडिकल ज्ञान एवं अनुभव को छात्राओं के साथ सांझा किया। उनके साथ बीएलके मैक्स कैंसर सेंटर नई दिल्ली के मार्केटिंग मैनेजर नरेश कुमार ने भी कार्यशाला के आयोजन में हिस्सा लिया।
मेहमानों का स्वागत प्राचार्य डॉ. अनुपम अरोड़ा, एन.एस.एस. प्रोग्राम ऑफिसर डॉ राकेश गर्ग और डॉ संतोष कुमारी ने किया। प्राध्यापकों में डॉ. प्रियंका चांदना, डॉ. दीपिका अरोड़ा मदान, डॉ. सुशीला बेनीवाल, प्रो. जुगमती, प्रो. मीतु सैनी, डॉ. इंदु गर्ग, डॉ. एसके वर्मा आदि भी कार्यशाला का हिस्सा बने। डॉ. निधि नैय्यर ने छात्राओं के मन में व्याप्त कैंसर के भय को दूर कर उनके सवालों के जवाब भी दिए। विदित रहे कि अंतर्राष्ट्रीय कैंसर नियंत्रण संघ ने जिनेवा स्विट्जरलैंड में 1933 में पहली बार विश्व कैंसर दिवस मनाया था। आज का दिन कैंसर के बारे में जागरूकता बढ़ाने, लोगों को शिक्षित करने और इस रोग के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए दुनिया भर में सरकारों और व्यक्तियों को समझाने तथा लोगों की जान बचाने के लिए मनाया जाता है। प्रत्येक वर्ष की तरह 2024 वर्ष के विश्व कैंसर दिवस का थीम ‘क्लोज द केयर गैप’ है और इस थीम के माध्यम से कैंसर के प्रति जंग के लिए सभी नागरिकों को समान देखभाल एवं स्वास्थ्य सेवाओं तक समुचित पहुंच को सुनिश्चित करने की मुहिम चलाई जा रही है। कार्यशाला में डॉ निधि नैय्यर ने कैंसर से लड़ने और दूसरों को कैंसर के प्रति जागरूक करने की शपथ भी दिलाई।
गर्भाश्य कैंसर होने के कई कारण : डॉ. निधि
डॉ. निधि नैय्यर ने कहा कि गर्भाशय कैंसर होने के कई कारण होते है। कई बार कुछ स्थितियों में एस्ट्रोजन का स्तर बढ़ता है और प्रोजेस्टेरोन का स्तर कम होता है। जिसके कारण इस कैंसर के होने की संभावना बढ़ जाती है। प्राय: जिनकी उम्र 45 साल से अधिक हो और जिन महिलाओं में मोटापा होता है, उनमें भी इस कैंसर के होने की सम्भावना होती है। दो वर्ष या उससे अधिक समय तक टैमोक्सीफेन का उपयोग तथा लिंच सिंड्रोम नामक एक वंशानुगत सिंड्रोम के कारण भी इस कैंसर के होने का जोखिम होता है। सर्वावेक (जिसे सीरम इंस्टिट्यूट पुणे ने निर्मित किया है), गार्डासिल और गार्डासिल-9 कुछ ऐसी वैक्सीनस है, जिन्हें महिलाएं अगर समय पर लगवा लें, तो इस कैंसर से पूरी तरह बचा जा सकता है। पेप और एचपीवी डीएनए टेस्ट से हमें इस कैंसर को पकड़ने में मदद मिलती है।
हमेशा खुश रहना कैंसर की सर्वोत्तम दवाई : डॉ. अरोड़ा
डॉ. अनुपम अरोड़ा ने कहा कि जो व्यक्ति सदा खुश रहता है, उसमें न सिर्फ कैंसर के होने की संभावना कम रहती है, बल्कि अगर हो भी जाए तो खुशदिल व्यक्ति बेहतर तरीके से कैंसर से लड़कर इस जंग को जीत सकता है। हमेशा खुश रहना कैंसर के खिलाफ सबसे सर्वोत्तम दवाई और इलाज है। उन्होनें कहा कि दुनिया भर में हर साल लगभग 76 लाख लोग कैंसर से दम तोड़ते हैं, जिनमें से 40 लाख लोग समय से पहले अर्थात 30 से 69 वर्ष आयु वर्ग में ही मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। समय की मांग है कि इस बीमारी के बारे में जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ कैंसर से निपटने की व्यावहारिक रणनीति को विकसित किया जाए। यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन के 2025 तक कैंसर के कारण समय से पहले होने वाली मौतों में 25 प्रतिशत कमी के लक्ष्य को हासिल किया जाए, तो हम लगभग 15 लाख जीवन प्रति वर्ष बचा सकते है।
कैंसर भ्रूण को भी कर सकता है प्रभावित : डॉ. संतोष
डॉ. संतोष कुमारी ने कहा कि कैंसर रोगों का एक वर्ग है। जिसमें कोशिकाओं का एक समूह अनियंत्रित वृद्धि, रोग और कभी-कभी अपररूपांतरण जैसे गुणों को प्रदर्शित करता है। कैंसर सभी उम्र के लोगों को यहां तक कि भ्रूण को भी प्रभावित कर सकता है, परन्तु कैंसर का जोखिम उम्र बढ़ने के साथ ज्यादा बढ़ता है। लगभग सभी कैंसर रूपांतरित कोशिकाओं के आनुवंशिक पदार्थ में असामान्यताओं के कारण पैदा होते हैं। ये असामान्यताएं कैंसर पैदा करने वाले तत्वों जैसे तम्बाकू धूम्रपान, विकिरण, रसायन आदि के कारण हो सकती है। अन्य आनुवंशिक असामान्यताएं भी डीएनए में त्रुटि का कारण बन सकती हैं, जिससे कैंसर हो जाता है।