लापता लेडीज एक ऐसी फिल्म है जिसे आपको जरूर देखना चाहिए। अगर आपने लंबे समय से अच्छी हंसी नहीं हंसी है तो यह फिल्म सिर्फ ओर सिर्फ आपके लिए है। नारीवादी शब्द को उछाले बिना, लापता लेडीज ने महिलाओं के सामाजिक मुद्दों और उनके सामने आने वाली समस्याओं को प्रदर्शित किया है। जिसके बारे में लोग आज तक बात करने से बचते है। लापता लेडीज विभिन्न भावनाओं की सवारी का वादा करती है। यह फिल्म एक मार्च को सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है।

लापता लेडीज मूवी की शुरुआत फूल की विदाई के दृश्य से होती है। जहां दीपक अपनी पत्नी को उसके घर से लेकर अपने घर के लिए चल पड़ता है। जैसे ही वे उसके घर पहुंचते है उन्हें पता लगता है कि दीपक की पत्नी की गलती से अदला-बदली हो गई है। नई महिला पुष्पा रानी है। परेशान, हैरान और अंचभित दीपक ने पुलिस की मदद से अपनी पत्नी फूल की तलाश शुरु कर दी। जहां दीपक अपनी पत्नी फूल की तलाश में वयस्त हो जाता है। वहीं दूसरी महिला जो दीपक के साथ गलती से उसके घर आ गई वो पूरी आजादी के साथ उसके घर में रह रही थी। वो पुलिस के शक के घेरे में आ जाती है। दूसरी ओर दीपक की पत्नी फूल बिना उम्मीद खोए धैर्यपूर्वक रेलवे स्टेशन पर अपने पति का इंतजार कर रही होती है। फिल्म के अंत में पुष्पा की असली पहचान सामने आ जाती है और महिलाओं की लोगों के सामने आने वाली समस्याओं और उन्हें कैसे हल किया जाए, यह भी दिखाया जाता है।
कलाकारी

फिल्म में स्पर्श श्रीवास्तल द्वारा निभाया गया दीपक का किरदार बेहद प्रभावशाली और दमदार है। उनकी हर अभिव्यक्ति इतनी स्पष्ट है कि उनके किरदार को बेहद ही सराहना दी जा रही है। मर्दवाद के युग में दीपक को यह व्यक्त करने से कोई परहेज नहीं था कि वह कैसा महसूस करते है। स्पर्श श्रीवास्तव दीपक जगह बिल्कुल ठीक बैठते है। पुष्पा के रुप में प्रतिभा राणा ने इपने किरदार के साथ न्याय किया है। वह फिल्म के अंत तक भ्रम और रहस्मय होने का सही मिश्रण दिखाती है। इस किरदार को निभाने में उनकी भूमिका बहुत सशक्त है। जहां वह दूसरों की मदद करने और जरूरतमंद को सलाह देने से नहीं कतराती है।

वहीं नितिश गोयल द्वारा निभाया गया फूल का किरदार सबसे मजबूत किरदार है। उसका नाम अपने पति से अलग होना और खूद की तलास करना अन्य किरदारों की तुलना में कुछ कम नही है। छाया कदम द्वारा अभिनीत मंजू माई फिल्म में सबसे सरल लेकिन जटिल व्यक्ति है। इस जटिल चरित्र को गहराई से समझने की जरुरत है। मनोहर के रुप में रवि किशन, पुलिसकर्मी एक डरपोक चरित्र है। बेशक, भ्रमित ने होने के लिए किसी को अंत तक देखना होगा। कुल मिलाकर कलाकारों ने अपनी-अपनी भूमिकाएं निभाने में बेहतरीन काम किया है और अपने किरदारों के साथ न्याय किया है। फिल्म तेज गति वाली है और आपको अपनी सीट से बांधे रखेगी।
निर्देशन

फिल्म की शुरुआत से ही व्यक्ति स्क्रीन सें बंध जाएगा। एक-एक दृश्य किसी उपन्यास के पन्ने-दर-पन्ने पलटने जैसा है और कोई भी यह जानने को उत्सुक होगा कि आगे क्या होने वाला है। 13 साल बाद किरण राव का निर्देशन देखने लायक है। बेशक फिल्म आपको एक पल हंसाएगी और अगले ही पल भावुक कर देगी। फिल्म बहुत ही सहज तरीके से लोगों को संदेस देती है और विप्लव कुमार और किरण राव ने बखूबी सिनेमाई जादू रचाया है। फिल्म में एक पल भी आप मिस नहीं कर पाएंगे।