ISRO Mission Aditya-L1 Update : इंडियन स्प्रेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (ISRO) ने चंद्रयान-3 की सफलता के बाद अब सूर्ययान को भी लॉन्च कर दिया है। Aditya-L1 को 11:50 बजे आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च किया गया। भारत के इस पहले सौर मिशन से इसरो सूर्य का अध्ययन करने के लिए तैयार है।
इसरो के पहले सूर्य मिशन Aditya-L1 को अंतरिक्ष में लैग्रेंजियन बिंदु यानि एल-1 कक्षा में स्थापित किया जाएगा। इसके बाद यह सैटेलाइट सूर्य पर होने वाली गतिविधियों का 24 घंटे अध्ययन करेगा। एल-1 सैटेलाइट को पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर दूर स्थापित किया जाएगा। Aditya-L1 को रॉकेट पृथ्वी की निचली कक्षा में छोड़ेगा। करीब 63 मिनट 19 सेकेंड बाद स्पेसक्राफ्ट 235 x 19500 Km की ऑर्बिट में पहुंच जाएगा। आदित्य स्पेसक्राफ्ट करीब 4 महीने बाद 31 दिसंबर तक लैग्रेंजियन बिंदु 1 (L1) तक पहुंचेगा।
Chanderyaan-3 की सफलता के बाद Aditya-L1 सूरज का अध्ययन करने को तैयार
Chanderyaan-3 की सफलता के बाद इंडियन स्प्रेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (ISRO) ने Aditya-L1 मिशन को लैग्रेंजियन बिंदु 1 पर भेजने की तैयारी कर रही है। कुछ देर बाद 11:50 बजे Aditya-L1 स्पेसक्राफ्ट को PSLV-C57 रॉकेट के जरिए श्री श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च किया जाएगा। लैग्रेंजियन बिंदु 1 वह स्थान है, जहां दो वस्तुओं के बीच कार्य करने वाले सभी गुरुत्वाकर्षण बल एक दूसरे को निष्प्रभावी कर देते हैं। साथ ही यहां छोटी वस्तु सूर्य और पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव के तहत संतुलन में रह सकती है।
Aditya-L1 सूर्य का अध्ययन करने वाला पहला भारतीय मिशन होगा, जो स्पेसक्राफ्ट लॉन्च होने के 4 महीने बाद लैग्रेंजियन बिंदु 1 तक पहुंचेगा। बता दें कि इस बिंदु पर ग्रहण का प्रभाव भी नहीं पड़ता। जिसके चलते यहां से सूरज का अध्ययन आसानी से किया जा सकेगा। इससे पहले Aditya-L1 लैग्रेंजियन बिंदु तक पहुंचने के लिए करीब 15 लाख किलोमीटर का सफर तय करना पड़ेगा। चंद्रयान-3 की तजरह Aditya-L1 भी अलग-अलग कक्षा से गुजरकर अपने गंतव्य तक पहुंचेगा। यह सीधा अपनी मंजिल तक नहीं पहुंचेगा। इस मिशन पर करीब 378 करोड़ रुपये अनुमानित लागत खर्च की जा रही है।
क्या है Aditya-L1
Aditya-L1 सूर्य का अध्ययन करने वाला एक मिशन है। जिसे इसरो ने पहला अंतरिक्ष आधारित वेधशाला श्रेणी का भारतीय सौर मिशन कहा है। अंतरिक्ष यान को सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लैग्रेंजियन बिंदु 1 (एल1) के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा में स्थापित करने की योजना है, जो पृथ्वी से लगभग 15 लाख किमी दूर है। Aditya-L1 सौर कोरोना (सूर्य के वायुमंडल का सबसे बाहरी भाग) की बनावट, इसके तपने की प्रक्रिया, तापमान, सौर विस्फोट, सौर तूफान के कारण और उत्पत्ति, कोरोना और कोरोनल लूप प्लाज्मा की बनावट, वेग और घनत्व, कोरोना के चुंबकीय क्षेत्र की माप, कोरोनल मास इजेक्शन (सूरज में होने वाले सबसे शक्तिशाली विस्फोट जो सीधे पृथ्वी की ओर आते हैं) की उत्पत्ति, विकास और गति, सौर हवाएं और अंतरिक्ष के मौसम को प्रभावित करने वाले कारकों का अध्ययन करेगा।
इसरो के एक अधिकारी के अनुसार Aditya-L1 को देश की संस्थाओं की भागीदारी के प्रयास से बनाया गया है। जिसमें बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (IIA) विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ ने इसके पेलोड बनाए हैं, जबकि इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स पुणे ने मिशन के लिए सोलर अल्ट्रावॉयलेट इमेजर पेलोड विकसित किया है।
क्या है लैग्रेंजियन बिंदु 1 (एल1)
लैग्रेंजियन बिंदु का नाम इतालवी-फ्रेंच मैथमैटीशियन जोसेफी-लुई लैगरेंज के नाम पर रखा गया है। इसे बोलचाल में L1 नाम से जाना जाता है। ऐसे पांच बिंदु धरती और सूर्य के बीच हैं, जहां सूर्य और पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल बैलेंस हो जाता है और सेंट्रिफ्यूगल फोर्स बन जाता है। इस जगह पर अगर किसी ऑब्जेक्ट को रखा जाता है तो वह आसानी से दोनों के बीच स्थिर रहता है।
अंतरिक्ष से ही किया जा सकता है सौर अध्ययन
सूर्य कई ऊर्जावान कणों और चुंबकीय क्षेत्र के साथ लगभग सभी तरंग दैर्ध्य में विकिरण या प्रकाश छोड़ता है। हमारी पृथ्वी का वायुमंडल और उसका चुंबकीय क्षेत्र एक सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करता है। पृथ्वी ही कणों और क्षेत्रों सहित कई हानिकारक तरंग दैर्ध्य विकिरणों को रोकती है। चूंकि कई विकिरण पृथ्वी की सतह तक नहीं पहुंच पाते हैं, इसलिए पृथ्वी के उपकरण ऐसे विकिरण का पता नहीं लगा पाएंगे। इसी वजह से इन विकिरणों पर आधारित सौर अध्ययन भी नहीं किए जा सकते। हालांकि ऐसे अध्ययन पृथ्वी के वायुमंडल के बाहर यानि अंतरिक्ष से अवलोकन करके किए जा सकते हैं।