छठ पूजा भारतीय उपमहाद्वीप के कुछ क्षेत्रों में विशेष महत्व रखती है, और यह पूजा सूर्य देव और छठी माई की विशेष पूजा के रूप में मनाई जाती है। इस पूजा का मुख्य उद्देश्य छठी माई और सूर्य देव की कृपा और आशीर्वाद को प्राप्त करना है, जिसे व्रती और उनके परिवार के सदस्य श्रद्धाभाव से मानते हैं।
इस पूजा के दौरान व्रती सूर्योदय और सूर्यास्त के समय नहाने जाते हैं और पूजा के बाद ही खाना बनाते हैं। छठ पूजा गर्मी के मौसम में होती है, और यह पूरे परिवार को एक साथ होने का अवसर प्रदान करती है, जिससे सामाजिक और पारिवारिक एकता का माहौल बनता है।

छठ पर्व की आरंभ तिथि
इस वर्ष 17 नवंबर 2023 से 20 नवंबर तक छठ पूजा का त्योहार मनाया जाएगा। बिहार में यह पर्व बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। छठ पूजा का मुख्य उद्देश्य संतान के सुखी जीवन की कामना करना है। यह पूजा चार दिन तक चलती है, जिसमें व्रती व्यक्ति नहाने-खाने के विशेष नियमों का पालन करते हैं। सूर्य देव को अर्घ्य देने का सबसे ज्यादा महत्व है।
इस पूजा को चार दिनों तक मनाया जाता है, और लोग इसके दौरान खास नियमों का पालन करते हैं।
- चतुर्थी तिथि: इस दिन लोग नहाने-खाने की शुरुआत करते हैं।
- पंचमी तिथि: इस दिन सूर्यास्त के बाद खाना खाने का समय होता है।
- षष्ठी तिथि: इस दिन सूर्योदय के बाद छठ पूजा शुरू होती है, और सूर्योदय के समय दूसरे दिन का अर्घ्य देने का समय होता है।
- सातवीं तिथि: इस दिन सूर्यास्त के बाद और सप्तमी तिथि को पारण करने का समय होता है।

छठ पूजा का महत्व
हिन्दू मान्यता के अनुसार, छठ पूजा एक बहुत कठिन पर्व माना जाता है। इस मौके पर, व्रती व्यक्ति तीन दिनों तक निर्जला उपवास करते हैं, यानी बिना पानी के। छठ पूजा में माता छठ और भगवान सूर्य की पूजा की जाती है। यह माना जाता है कि जो भी व्यक्ति पूरे विधि-विधान के साथ छठ पूजा करता है, उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है।
नहाय-खाय तिथि
छठ पूजा का यह त्योहार चार दिनों तक चलता है, और इसका पहला दिन नहाने-खाने के रूप में जाना जाता है। इस साल, नहाने-खाने का दिन 17 नवंबर को है। इस दिन सूर्योदय 06:45 बजे होगा और सूर्यास्त शाम 05:27 बजे होगा। छठ पूजा में, व्रती लोग नदी में स्नान करने के बाद नए कपड़े पहनते हैं और फिर शाकाहारी भोजन करते हैं। इस दिन, व्रती के भोजन के बाद ही घर के अन्य सदस्य भोजन करते हैं।

खरना तिथि
खरना छठ पूजा का दूसरा दिन होता है। इस साल खरना 18 नवंबर को है। इस दिन का सूर्योदय सुबह 06:46 बजे और सूर्यास्त शाम 05:26 बजे होगा। खरना के दिन व्रती एक समय मीठा भोजन करते हैं। इस दिन गु़ड़ से बनी चावल की खीर खाई जाती है। इस प्रसाद को मिट्टी के नए चूल्हे पर आम की लकड़ी से आग जलाकर बनाया जाता है। इस प्रसाद को खाने के बाद व्रत शुरू हो जाता है। इस दिन नमक नहीं खाया जाता है।
संध्या अर्घ्य का समय
छठ पूजा पर सबसे महत्वपूर्ण दिन तीसरा होता है। इस दिन संध्या अर्घ्य का होता है। इस दिन व्रती घाट पर आकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इस साल छठ पूजा का संध्या अर्घ्य 19 नवंबर को दिया जाएगा। 19 नवंबर को सूर्यास्त शाम 05:26 बजे होगा। इस दिन टोकरी में फलों, ठेकुआ, चावल के लड्डू आदि अर्घ्य के सूप को सजाया जाता है। इसके बाद नदी या तालाब में कमर तक पानी में रहकर अर्घ्य दिया जाता है।

उगते सूर्य को अर्घ्य
चौथा दिन यानी सप्तमी तिथि छठ महापर्व का अंतिम दिन होता है। इस दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण का होता है। इस साल 20 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। इस दिन सूर्योदय सुबह 06:47 बजे होगा। इसके बाद ही 36 घंटे का व्रत समाप्त होता है। अर्घ्य देने के बाद व्रती प्रसाद का सेवन करके व्रत का पारण करती हैं।
छठ से जुड़ी कथा

पुराणों में मां दुर्गा के छठे रूप कात्यायनी देवी को भी छठ माता का ही रूप माना जाता है। छठ मईया को संतान देने वाली माता के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि ये व्रत संतान प्राप्ति और संतान की मंगलकामना के लिए रखा जाता है। मान्यता के अनुसार छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की आराधना की जाती है। व्रत करने वाले मां गंगा और यमुना या किसी नदी या जलाशयों के किनारे आराधना करते हैं। इस पर्व में स्वच्छता और शुद्धता का विशेष ख्याल रखा जाता है।
छठ पूजा का मुख्य प्रसाद
छठ पूजा का मुख्य प्रसाद केला और नारियल होता है। इस पर्व का महाप्रसाद ठेकुवा को कहा जाता है। यह ठेकुवा आटा, गुड़ और शुद्ध घी से बनाया जाता है, जो कि काफी प्रसिद्ध है।

महाभारत काल से प्रचलित है व्रत
महाभारत काल से छठ व्रत प्रचलित है, और इसे हिंदू धर्म में महिलाएं अकेले ही नहीं, बल्कि पूरे परिवार के साथ मनाया जाता है। छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल से हो रही है। जब पांडव वनवास में थे, तो द्रौपदी ने कुल पुरोहित की मार्गदर्शन से युधिष्ठिर के साथ छठ व्रत का पूजन किया था। सूर्यदेव ने खुश होकर युधिष्ठिर को एक अद्भुत ताम्रपात्र प्रदान किया, जिसमें हमेशा मधुर और स्वादिष्ट भोजन उपलब्ध रहता था। द्रौपदी के व्रत-पूजन से प्रेरित होकर सूर्य भगवान, जिन्हें छठ माता भी कहा जाता है, ने युधिष्ठिर को राज-पाट, धन-दौलत, वैभव, मान-सम्मान, यश, और कीर्ति पुनः प्रदान किया।