Chhath Puja 2023 : बिहार, बिहारी और छठ, आस्था के महापर्व छठ का आज तीसरा दिन है। रविवार को अस्त होते सूर्य को संध्या का अर्घ्य दिया जाएगा। जिसकी देशभर के कोने-कोने में तैयारियां जोरों पर है। इतना ही आस्था का सैलाब नहरों, तालाब के घाटों पर पहुंचने लगा है। बता दें कि छठ का पर्व कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर नहाय खाय से शुरू होता है। पंचमी को खरना, षष्ठी को डूबते सूर्य को अर्घ्य और सप्तमी को उगते सूर्य को जल अर्पित कर व्रत संपन्न किया जाता है। चार दिन चलने वाले इस महापर्व में विशेष रूप से भगवान सूर्यदेव और छठ मैय्या की पूजा की जाती है।
छठ क्या है? और बिहार, बिहारी और छठ, इस विषय पर अपनी व्याख्या देते हुए मूलरूप से बिहार के गोपालगंज निवासी फिलहाल 18 वर्षों से फरीदाबाद में रह रहे सॉफ्टवेयर इंजीनियर अवनींद्र तिवारी का कहना है कि छठ क्या है, यह उस बिहारी से पूछो जिसने अपने जीवन के शुरुआती 20-22 साल गांव और परिवार में बिताए हों। इसके बाद आजीविका के लिए परदेस में रह रहा हो। उन शब्दों में आपको छठ क्या है, यह न तो बताया जा सकता है और ना ही आप समझ सकते हो। छठ का गीत बजते ही आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। आंखों से आंसू की कुछ बूंदें अपने आप ही लुढ़क जाती हैं, जो वर्षों से हृदय के किसी कोने में जिम्मेदारियों के बोझ तले दबी रहती हैं।

बिहार/उत्तर प्रदेश वालों के लिए भावना है छठ महापर्व
अवनींद्र तिवारी ने बताया कि बिहार/उत्तर प्रदेश वालों के लिए छठ सिर्फ एक त्योहार नहीं होता, बल्कि एक भावना होती है। जिसके सहारे वो जिंदा रहते हैं और जो उनको जीने और जूझने का संबल देती है। पेट के सवाल ने भले ही करोड़ों बिहारियों को घर से दूर कर दिया हो, लेकिन यह आत्मा, मन और दिल कैसे अपने गांव और गांव के छठ महापर्व को भूल सकता है? जब-जब छठ महापर्व समीप आने लगता है तो सीने में एक जोर की हुक उठती है। वो गांव का पकवा इनार, गांव का घाट, गांव का स्कूल, वो गांव का खेत, वो खेत का गन्ना, वो ब्रह्म बाबा और मालूम नहीं क्या-क्या।

आपको प्रकृति से जोड़ता है छठ का एक-एक सामान, हर एक विधि
अवनींद्र तिवारी का कहना है कि न किसी मिठाई की जरूरत है, न ही किसी पंडित की। नदी, पानी, मिट्टी, गन्ना, ठेकुआ, सूरज देव और छठी मैया, बस आप पहुंच गए। आस्था और विश्वास के सबसे गहरे और विशाल संसार में जहां न केवल उगते सूरज आराध्य हैं, बल्कि डूबते सूरज भी उतने ही पूजनीय हैं। डूबते सूरज की आराधना हमें बताती है कि जिसने पूरी जिंदगी हमारे जीवन में रोशनी दी, जब उसके अस्त का समय हो रहा है तो हमें उसके साथ होना चाहिए और कृतज्ञ होना चाहिए। काश यही सीख हम अपनी जिंदगी में उतार लें तो कई सारी चीजे अपने आप ठीक हो जाए।

छठ से जुडी हर एक चीज का अपना महत्व और सांकेतिक प्रभाव
अवनींद्र तिवारी ने बताया कि समाज में छठ से जुडी हर एक चीज का अपना महत्व और सांकेतिक प्रभाव है। समाज के सबसे निचले तबके के यहां से बांस का बना पवित्र सूप और दऊरा से ही डूबते और उगते सूरज की पूजा होती है। मिट्टी के बर्तन, मिट्टी का चूल्हा जो कुम्हार बनाता है, कंद मूल किसान देता है। यह सब हमें समाज के हर तबके से जोड़ते हैं। खेतों में उगे मूली, सूथनी, हल्दी, गन्ना आदि से जुड़े हुए कंद मूल जो पूजा के लिए जरुरी सामान है, वह किसान और प्रकृति से जोड़ते है।
आज भले ही बाजारवाद हावी हो रहा हो, लेकिन छठ की पवित्रता और श्रद्धा आज भी देखी जा सकती है। जब अपार्टमेंट कल्चर में रहने वाले भी दातून ढूढ़ते हैं और पुआल न मिलने पर फर्श के ऊपर नई बिछावन लगा कर सोते है। यह चार दिन समस्त बिहार और विश्व में फैले सभी बिहारी परिवार स्वयं को तन और मन से पवित्र समझते हैं।

भगवान श्रीराम व श्रीकृष्ण के कालखंड में भी की जाती थी भगवान भास्कर की पूजा
अवनींद्र तिवारी का कहना है कि शायद ही इससे पौराणिक कोई अन्य पूजा हो, भगवान श्रीराम व श्रीकृष्ण के कालखंड में भी श्रद्धापूर्वक भगवान भास्कर की पूजा की जाती थी। कई पुराणों व उपनिषदों में भी इस पर्व के महत्व का वर्णन किया गया है। छठ ऊर्जा के सबसे बड़े श्रोत सूर्य के डूबते और उगते दोनों रूप की पूजा है, छठ प्रकृति की पूजा है, पानी के स्रोतों की पूजा है। चाहे वो नदी हो, तालाब और आजकल स्विमिंग पूल में प्रतीकात्मक जल हो। आज जब करोड़ों बिहार और उत्तरप्रदेश के लोग अपने घरों को जा रहे हो और जो नहीं जा पा रहे हैं, उन सबको अपने मिट्टी के इस छठ महापर्व की शुभकामनाएं।