दोस्तों, अंबाबाई मंदिर जिसे महालक्ष्मी मंदिर के नाम से जाना जाता है, जो कि हिंदू मंदिर है और लक्ष्मीजी को समर्पित हैं। यह मंदिर कोल्हापुर में अंबाबाई के नाम से प्रसिद्ध हैं। इस मंदिर की खासियत यह भी है कि वर्ष में एक बार मंदिर में देवी की प्रतिमा पर सूर्य की किरणें सीधे पड़ती हैं।
कहा जाता है कि महालक्ष्मी अपने पति तिरूपति यानी भगवान विष्णु जी से रूठकर कोल्हापुर आई थी। यहीं कारण है कि तिरूपति देवस्थान से आया शॉल उन्हें दीपावली के दिन पहनाया जाता हैं। कहते है कि किसी भी व्यक्ति की तिरूपति यात्रा तब तक पूरी नहीं होती, जब तक व्यक्ति महालक्ष्मी की पूजा-अर्चना न कर लें। दीपावली की रात मां की महाआरती की जाती हैं। मान्यता है कि यहां आने वाले हर भक्त की मुराद पूरी होती हैं।
कोल्हासुर से कोल्हापुर हुआ शहर का नाम
बताया जाता है कि केशी नाम का एक राक्षस था, जिसके बेटे का नाम कोल्हासुर था। कोल्हासुर ने देवताओं को परेशान कर रखा था। जिससे तंग आकर सभी देवगणों ने देवी से प्रार्थना की। तब महालक्ष्मी ने दुर्गा रूप धारण कर ब्रह्मशस्त्र से कोल्हासुर का सिर धड़ से अलग कर दिया, लेकिन कोल्हासुर ने मरने से पहले मां से वरदान मांगा। उसने कहा कि इस इलाके को करवीर और कोल्हासुर के नाम से जाना जाए। यहीं कारण है कि मां को यहां पर करवीर महालक्ष्मी नाम से जाना जाता है। बाद में इसका नाम कोल्हापुर कर दिया गया।
चांदी के सिंहासन पर विराजमान मां महालक्ष्मी
बता दें कि मंदिर में दो मुख्य हॉल है, जिसमें पहला दर्शन मंडप और दूसरा कूर्म मंडप हैं। दर्शन मंडप हॉल की बात करें, तो यहां श्रद्धालु जन माता के दिव्य स्वरूप का दर्शन करते है। वहीं कूर्ममंडप में भक्तों पर पवित्र शंख के जल का छिड़काव किया जाता हैं। यहां मौजूद माता की प्रतिमा के चार हाथ है और उनके हाथों में शंख, चक्र, गदा और कमल का पुष्प हैं। मां चांदी के भव्य सिहांसन पर विराजमान हैं। इनका छत्र शेषनाग का फन हैं। मां को धन-धान्य और सुख-संपत्ति की अधिष्ठात्री माना जाता हैं।