पौराणिक कथाओं में भले ही रावण को खलनायक के रूप में दर्शाया गया हो, लेकिन वो एक प्रकांड विद्वान भी था। कहा तो ये भी जाता है कि तीनों लोकों में रावण से विद्वान दूसरा कोई नहीं था। वो महान शिव भक्त, वेदों का ज्ञाता, ज्योतिष का प्रकांड विद्वान, तंत्र और मंत्र में भगवान शिव के समान और एक अजेय योद्धा था। रावण को ये भी मालूम था कि संपूर्ण ब्रह्मांड में भगवान शिव के अलावा उसे कोई अन्य मार नहीं सकता।
रावण को सब एक अत्याचारी के रुप में ही जानते हैं किंतु वह एक वैज्ञानिक भी था। उसने तपस्वी ऋषि मुनियों के खून को एकत्रित कर एक घड़े में रखा था जिससे वह ये जान सके कि ऋषि मुनि के खून में ऐसा क्या है जिससे वे इतने दृढ़ निश्चयी तथा आत्मविश्वासी होते हैं और अपनी तपस्या से कुछ भी पा लेते हैं। एक बार रानी मंदोदरी ने जो कि रावण की पत्नी थीं, क्रोध में आकर आत्महत्या करने के विचार से उस रक्त को विष समझ कर पी गई। जिससे वह गर्भवती हो गईं ।
संतान के रुप में रानी को एक कन्या पैदा हुई। जिसे रावण से छिपाने हेतु उस कन्या को रानी ने एक घड़े में रखकर लंका की सीमा से बाहर, जो की जनकपुरी की भूमि थी ,वही जमीन में घड़़े को छिपा दिया। उसी समय जनक पुर में अकाल पड़ा था। जिसे दूर करने हेतु पंडितो ने सलाह दी कि राजा जब खुद जमीन में हल से जुताई करेंगे तभी वर्षा होगी और अकाल दूर होगा।
राजा ने ऐसा ही किया और उन्हें हल जोतते वक्त जमीन से वही घड़ा मिला जिसमें रानी मंदोदरी ने अपनी कन्या को छिपाया था।वह कन्या राजा जनक की पुत्री सीता के रुप में जानी गई। जिन्हें भूमि पुत्री भी कहते हैं। मंदोदरी के गर्भ से पैदा होने के कारण वह कन्या रावण की भी पुत्री मानी जाती है।
परम ज्ञानी था रावण
रामायण में सत्य पर असत्य की विजय का पाठ हमें हमेशा से ही पढ़ाया जाता रहा है। राम और रावण के बीच का युद्ध, जिसमें राम सत्य के प्रतीक थे तो वहीं रावण असत्य का पताका हाथ में लिए था। हमें रावण को हमेशा अधर्मी और शैतान का रूप बताया गया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि रावण एक ऐसा शख्स था, जिसके ज्ञान के आगे देवता भी नतमस्तक हो जाते थे! अपनी अधर्मी छवि के बावजूद रावण के कई ऐसे उदाहरण पेश किए जिससे पता चलता है कि वो सच में एक बहुत बड़ा ज्ञानी पुरूष था।
1. वेद और संस्कृत का ज्ञाता
रावण को वेद और संस्कृत का ज्ञान था। वो साम वेद में निपुण था। उसने शिवतांडव, युद्धीशा तंत्र और प्रकुठा कामधेनु जैसी कृतियों की रचना की। साम वेद के अलावा उसे बाकी तीनों वेदों का भी ज्ञान था। इतना ही नहीं पद पथ में भी उसे महारत हासिल थी। पद पथ एक तरीका है वेदों को पढ़ने का।
2. आयुर्वेद का ज्ञान
रावण ने आयुर्वेद में भी काफी योगदान दिया था। अर्क प्रकाश नाम की एक किताब भी रावण ने लिखी थी, जिसमें आयुर्वेद से जुड़ी कई जानकारियां हैं। रावण को ऐसे चावल भी बनाने आते थे जिसमें प्रचुर मात्रा में विटामिन होता था। इन्हीं चावलों को वो सीता जी को दिया करता था।
3. कविताएं लिखने में भी पारंगत
रावण सिर्फ़ एक योद्धा नहीं थे। उन्होंने कई कविताओं और श्लोकों की भी रचनाएं की थीं। शिवतांडव इन्हीं रचनाओं में से एक है। रावण ने भगवान शिव को खुश करने के लिए एक ‘मैं कब खुश होउंगा’ लिखी। भगवान शिव इतने खुश हुए कि उन्होंने रावण को वरदान दिया था।
4. संगीत का भी ज्ञान
रावण को संगीत का भी शौक था। रूद्र वीणा बजाने में रावण को हराना लगभग नामुमकिन था। रावण जब भी परेशान होता वो रूद्र वीणा बजाता था। इतना ही नहीं रावण ने वायलन भी बनाया था जिसे रावणहथा कहते थे। आज भी राजस्थान में इसे बजाया जाता है।
5. स्त्री रोगविज्ञान और बाल चिकित्सा में भी योगदान
अपने आयुर्वेद के ज्ञान से रावण ने स्त्री रोगविज्ञान और बाल चिकित्सा के ऊपर भी कई किताबें लिखी थीं। इन किताबों में 100 से ज्यादा बीमारियों का इलाज लिखा हुआ है। इन किताबों को उसने अपनी पत्नी मंदोदरी के कहने पर लिखा था।
6. रावण ने युद्ध के लिए की थी राम की मदद
भगवान राम को समुद्र के ऊपर पुल बनाने से पहले यज्ञ करना था। यज्ञ तभी सफल होता जब भगवान राम के साथ देवी सीता बैठती। राम के यज्ञ को सफल करने के लिए रावण खुद देवी सीता को ले कर आया था। यज्ञ खत्म होने के बाद जब राम ने रावण का आशीर्वाद मांगा तो रावण ने ‘विजयी भव:’ कहा था।
7. ज्ञान का सागर ‘रावण’
युद्ध में हार के बाद जब रावण अपनी आखिरी सांसें गिन रहा था, तब भगवान राम ने लक्ष्मण को रावण से ज्ञान प्राप्त करने को कहा। लक्ष्मण रावण के सिर के पास बैठ गए। रावण ने लक्ष्मण से कहा कि अगर आपको अपने गुरू से ज्ञान प्राप्त करना है तो हमेशा उनके चरणों में बैठना चाहिए। ये परंपरा आज भी चल रही है।
8. सीता रावण की बेटी थी
रामायण कई देशों में ग्रंथ की तरह अपनाई गई है। थाइलैंड में जो रामायण है उसके अनुसार सीता रावण की बेटी थी, जिसे एक भविष्यवाणी के बाद रावण ने ज़मीन में दफना दिया था। भविष्यवाणी में कहा गया था कि ‘यही लड़की तेरी मौत का कारण बनेगी’। बाद में देवी सीता जनक को मिलीं। यही कारण था कि रावण ने कभी भी देवी सीता के साथ बुरा बर्ताव नहीं किया
9. ग्रह नक्षत्रों को अपने हिसाब से चलाता था रावण
मेघनाथ के जन्म से पहले रावण ने ग्रह नक्षत्रों को अपने हिसाब से सजा लिया था, जिससे उसका होना वाला पुत्र अमर हो जाए। लेकिन आखिरी वक़्त में शनि ने अपनी चाल बदल ली थी। रावण इतना शक्तिशाली था कि उसने शनी को अपने पास बंदी बना लिया था
10. रावण के दस सिर नहीं थे
अकसर रावण को दस सिरों वाला समझा जाता है, लेकिन ये सही नहीं है। रावण जब छोटे थे तब उनकी मां ने उन्हें 9 मोतियों वाला हार पहनाया था। उस हार में रावण के चेहरे की छाया दिखती थी। साथ ही ये भी कहा जाता है कि रावण के अंदर दस सिरों जितना दिमाग था। यही कारण था कि रावण को दशानन कहा गया है।
जब मेघनाथ का जन्म होने वाला था
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, जब मेघनाद का जन्म होने वाला था। तब रावण ने सभी ग्रहों को ऐसे घरों में रख लिया था ताकि अजन्मा बच्चा अजर-अमर हो जाए। लेकिन तब ‘शनि भगवान’ ने एक ऐसी चाल चली जिसकी वजह से वो ‘मेघनाद’ के जन्म से ठीक पहले एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश कर गए। इस कारण ‘मेघनाद’ अजर और अमर नहीं हो सका।
ये देख ‘रावण’ बेहद क्रोधित हो उठा और उसने शनिदेव के पैर पर गदा से प्रहार कर दिया। इसके बाद भी रावण का क्रोध कम नहीं हुआ। शनि का अपमान करने और लंका को ‘शनि’ की कुटिल निगाहों से बचाने के लिए रावण ने उसे अपने सिंहासन के सामने पटककर उसका चेहरा जमीन की ओर कर दिया। ताकि न तो वो ‘शनि’ का चेहरा देख पाएं और न ही ‘शनि’ की नज़रें किसी और पर पड़ सके।
शनि की पीठ पर पैर रखते थे रावण
रावण ‘सिंहासन’ पर बैठते समय अपने पैर रखने के लिए ‘शनि’ की पीठ का इस्तेमाल करता था। इस तरह से सिंहासन से उठते समय, बैठे हुए, रावण ने अपने पैर ‘शनि भगवान’ और अन्य ग्रहों के शरीर पर रखे और जानबूझकर उन पर जुल्म किये। कहा जाता है कि इसके कई वर्षों बाद जब हनुमान सीतामाई की खोज में लंका गये तो उन्होंने ही इन नौ ग्रहों को रावण की कैद से मुक्त कराया था।