➤सुप्रीम कोर्ट ने ED को ठग जैसा काम न करने की चेतावनी
➤PMLA मामलों के लिए अलग कोर्ट बनाने का सुझाव
➤पिछले 5 साल में ED की सजा दर 10% से भी कम
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को प्रवर्तन निदेशालय (ED) को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि वह कानून की सीमाओं में रहते हुए ही कार्रवाई करे और ‘ठग’ की तरह काम न करे। यह टिप्पणी मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम कानून (PMLA) के तहत ED को गिरफ्तारी की शक्तियां देने वाले 2022 के फैसले की समीक्षा याचिकाओं की सुनवाई के दौरान आई। जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की बेंच ने सुनवाई के दौरान ED की कार्यप्रणाली और छवि पर गंभीर चिंता जताई।
जस्टिस भुइयां ने आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि पिछले पांच वर्षों में ED ने लगभग 5 हजार मामले दर्ज किए, लेकिन इनमें सजा दर 10% से भी कम रही। उन्होंने सवाल किया कि जब लोग 5-6 साल जेल में बिताने के बाद बरी हो जाते हैं, तो इसकी भरपाई कौन करेगा। इस पर केंद्र और ED की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस. वी. राजू ने तर्क दिया कि प्रभावशाली आरोपी जांच को जानबूझकर लंबा खींचते हैं।
जस्टिस सूर्यकांत ने सुझाव दिया कि PMLA मामलों के लिए TADA और POTA की तर्ज पर अलग अदालतें बनाई जाएं, जहां रोजाना सुनवाई हो और मामलों का त्वरित निपटारा किया जा सके। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि ऐसे मामलों में सख्ती बरती जाए।
सुनवाई के दौरान क्रिप्टोकरेंसी के दुरुपयोग का मुद्दा भी उठा। एएसजी राजू ने बताया कि कई आरोपी विदेश भाग जाते हैं और क्रिप्टोकरेंसी जैसे आधुनिक साधनों का उपयोग कर जांच को प्रभावित करते हैं। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने सरकार से क्रिप्टोकरेंसी को रेगुलेट करने पर गंभीरता से विचार करने का सुझाव दिया।
गौरतलब है कि यह पहली बार नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने ED को फटकार लगाई है। पिछले एक साल में ही अदालत ने कम से कम पांच बार एजेंसी की कार्यशैली पर सवाल उठाए हैं—चाहे वह राजनीतिक मामलों में एजेंसियों के इस्तेमाल की आलोचना हो, ठोस सबूत के अभाव में आरोप लगाने का मामला हो, या आरोपी को जांच से जुड़े दस्तावेज न देने का मुद्दा। अदालत ने कई मामलों में साफ कहा है कि कानून का इस्तेमाल केवल राजनीतिक या दबाव के औजार के रूप में नहीं होना चाहिए, बल्कि निष्पक्ष और पारदर्शी जांच सुनिश्चित करनी चाहिए।

