नई दिल्ली: भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मंगलवार को अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया, जिससे देश के दूसरे सर्वोच्च संवैधानिक पद पर रिक्ति उत्पन्न हो गई है। उनके इस्तीफे की कोई आधिकारिक वजह सामने नहीं आई है, लेकिन राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो गई है। इस घटनाक्रम ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) और विपक्ष — दोनों के लिए नए सियासी समीकरण खड़े कर दिए हैं।
संविधान के अनुच्छेद 68 (2) के अनुसार, उपराष्ट्रपति पद खाली होने की स्थिति में “यथाशीघ्र” चुनाव कराना अनिवार्य है। अब चुनाव आयोग इस संबंध में जल्द ही कार्यक्रम घोषित करेगा और सांसदों के वोट से नए उपराष्ट्रपति का निर्वाचन किया जाएगा।
धनखड़ ने अगस्त 2022 में उपराष्ट्रपति पद की शपथ ली थी। कार्यकाल के दौरान उन्होंने राज्यसभा के सभापति के रूप में कई कड़े निर्णय लिए और विपक्ष के साथ तीखी बहसों में मुखर नजर आए। अब उनके इस्तीफे को लेकर कई राजनीतिक विश्लेषक भाजपा की आंतरिक रणनीतियों की ओर संकेत कर रहे हैं।
BJP की रणनीति: सामाजिक संतुलन और 2029 की दृष्टि
धनखड़ ओबीसी समुदाय से आते थे और राजस्थान के मजबूत नेता रहे हैं। उनके जाने के बाद भाजपा के सामने चुनौती है कि वह अगला उपराष्ट्रपति ऐसा चेहरा बनाए जो जातीय संतुलन, भविष्य के गठबंधन और 2029 की रणनीति — इन तीनों को साध सके।
सूत्रों के अनुसार, भाजपा दक्षिण भारत से किसी कद्दावर नेता को उपराष्ट्रपति बना सकती है ताकि NDA को दक्षिण में और मज़बूती मिले। साथ ही यह भी देखा जा रहा है कि नया चेहरा संभवतः पिछड़े वर्ग या आदिवासी समुदाय से हो सकता है, जैसा राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू के साथ किया गया था।
क्या विपक्ष साझा उम्मीदवार लाएगा?
विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ इस चुनाव को सत्ता पक्ष के खिलाफ एकजुटता दिखाने के अवसर के रूप में देख सकता है। लेकिन विपक्ष में अभी भी एकता और सामंजस्य की कमी स्पष्ट है। भाजपा इसे संख्या बल और रणनीतिक बढ़त से भुनाने की कोशिश करेगी।
अब देशभर की नजरें इस पर टिकी हैं कि भाजपा किसे उम्मीदवार बनाती है — क्या कोई वरिष्ठ नेता, कोई क्षेत्रीय चेहरा या फिर कोई महिला उम्मीदवार। अगले कुछ दिनों में राजनीतिक हलचल और तेज़ होगी।