Haryana विधानसभा चुनाव के नजदीक आते ही जाट राजनीति से हटकर ‘नॉन-जाट’ समीकरणों पर फोकस किया जा रहा है। इस बार हरियाणा में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल जाटों से ज्यादा अन्य जातियों पर ध्यान दे रहे हैं। सियासी गलियारों में चर्चा है कि कांग्रेस इस बार जाट नेताओं का टिकट काटने की तैयारी कर रही है। पार्टी में जाट चेहरों की जगह अन्य जातियों के नेताओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने की योजना है, जिनमें पंजाबी, ब्राह्मण, वैश्य और अन्य बीसीए जाति के नेता शामिल हो सकते हैं।
कांग्रेस के सूत्रों के अनुसार, पार्टी नेतृत्व हरियाणा विधानसभा चुनावों में टिकट आवंटन के लिए सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले पर विचार कर रहा है। इस फार्मूले के तहत, कांग्रेस मौजूदा विधायकों को टिकट देने के ‘सिटिंग-गैटिंग’ फार्मूले से दूर हट सकती है। इस बदलाव से 8 से 10 मौजूदा विधायकों की टिकट कटने की संभावना है। इसके अलावा, जिन उम्मीदवारों ने 2019 के विधानसभा चुनाव में अपनी जमानत जब्त करवाई थी, उनकी भी टिकट कट सकती है।
दो गुटों में बंटी कांग्रेस
फिलहाल कांग्रेस में दो प्रमुख गुट सक्रिय हैं – एक भूपेंद्र हुड्डा का और दूसरा कुमारी सैलजा व रणदीप सुरजेवाला का। दोनों ही गुट अपने-अपने समर्थकों को टिकट दिलाने की कोशिश में लगे हैं। 2019 के लोकसभा चुनावों में भी कांग्रेस ने कोटा सिस्टम के तहत टिकट बांटे थे, जिससे उस समय के प्रदेशाध्यक्ष अशोक तंवर ने पार्टी छोड़ दी थी। हालांकि, इस बार नेतृत्व ने कोटा सिस्टम की बजाय मैरिट पर टिकट देने की बात कही है।
नॉन-जाट पोलीटिक्स की रणनीति
भाजपा की तरह कांग्रेस भी इस बार ‘नॉन-जाट’ वोट बैंक पर फोकस कर रही है। हाल ही में करनाल में हुए कांग्रेस के पंजाबी सम्मेलन में कद्दावर नेता राज बब्बर ने खुद को पंजाबी बताकर इस वोट बैंक को साधने की कोशिश की। भाजपा भी ‘नॉन-जाट’ वोटर्स को ध्यान में रखते हुए अपनी रणनीति बना रही है, जिसमें सीएम नायब सैनी का चयन इसका बड़ा उदाहरण है।