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हरियाणा नगर निगमों में मनोनीत सदस्यों की शपथ पर कानूनी पेच

राजनीति हरियाणा

➤हरियाणा नगर निगम कानून की धारा 33 में ‘मनोनीत’ शब्द नहीं
➤मेयर द्वारा शपथ दिलाना कानूनी रूप से सवालों के घेरे में

हरियाणा के 8 नगर निगमों में सरकार द्वारा मनोनीत किए गए तीन-तीन सदस्यों को लेकर कानूनी विवाद गहराता नजर आ रहा है। दरअसल, 9 जुलाई 2025 को शहरी स्थानीय निकाय विभाग के आयुक्त एवं सचिव विकास गुप्ता द्वारा जारी अधिसूचना के माध्यम से फरीदाबाद, गुरुग्राम, हिसार, करनाल, मानेसर, पानीपत, रोहतक और यमुनानगर नगर निगमों में मनोनीत सदस्यों के नाम घोषित किए गए थे। पानीपत नगर निगम में धर्मबीर कश्यप, डॉ. गौरव श्रीवास्तव और हिमांशु बांगा को मेयर कोमल सैनी ने 5 अगस्त को शपथ दिलाई।

लेकिन इसी प्रक्रिया को लेकर अब एक कानूनी पेच खड़ा हो गया है। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार, जो नगर निगम कानून के जानकार हैं, ने गंभीर आपत्ति उठाते हुए कहा है कि हरियाणा नगर निगम अधिनियम, 1994 की धारा 33 में केवल ‘निर्वाचित’ शब्द का उल्लेख है, ‘मनोनीत’ शब्द का कहीं कोई उल्लेख नहीं है। वर्ष 2018 में इस धारा में संशोधन के बावजूद मनोनीत सदस्यों को शपथ दिलवाने की कोई वैधानिक व्यवस्था नहीं की गई।

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हेमंत कुमार का कहना है कि चूंकि धारा 33 में ‘मनोनीत’ शब्द का प्रयोग नहीं हुआ है, इसलिए मेयर स्वयं ही शपथ के प्रारूप में यह शब्द जोड़कर मनोनीत सदस्यों को शपथ नहीं दिला सकते। यदि राज्य सरकार चाहती है कि मनोनीत सदस्यों को वैधानिक रूप से शपथ दिलाई जाए, तो इसके लिए विधानसभा द्वारा अधिनियम में विधिवत संशोधन आवश्यक है।

इसके साथ ही उन्होंने भारतीय संविधान की तीसरी अनुसूची का भी हवाला दिया, जिसमें संसद और राज्य विधानमंडलों के सदस्यों के लिए ‘निर्वाचित’ या ‘मनोनीत’ होने का विकल्प स्पष्ट रूप से दिया गया है। इसी प्रकार की पारदर्शिता हरियाणा नगर निगम अधिनियम में भी अपेक्षित है।

हेमंत ने यह भी स्पष्ट किया कि हरियाणा नगर निगम नियमावली, 1994 के नियम 71(4) में मेयर द्वारा शपथ दिलाने का उल्लेख होने के बावजूद, अगर कानून और नियम में विरोधाभास हो, तो कानून को ही सर्वोच्च माना जाता है। यह बात सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों में स्पष्ट रूप से कही गई है।

अंत में उन्होंने बताया कि मनोनीत सदस्य न तो नगर निगम की किसी बैठक में वोट डाल सकते हैं, न ही डिप्टी मेयर या सीनियर डिप्टी मेयर का चुनाव लड़ सकते हैं। उन्हें निगम की स्थायी समितियों का हिस्सा भी नहीं बनाया जा सकता। हालांकि स्थानीय सांसद और विधायक कुछ सीमित विषयों पर वोटिंग कर सकते हैं, परंतु वे भी सामान्यतः बैठकों में भाग नहीं लेते।

यह पूरा मामला इस बात की ओर इशारा करता है कि नगर निगमों में राजनीतिक लाभ के लिए मनोनयन की परंपरा तो निभाई जा रही है, लेकिन उसे वैधानिक दायरे में लाने की प्रक्रिया आज भी अधूरी है।