Haryana Politics : (राकेश भट्ट, चीफ एडिटर, सिटी तहलका) हरियाणा में जल्द होने जा रहे लोकसभा चुनाव के तहत सबसे हॉट हो चुकी करनाल सीट पर मुकाबला कड़ा व दिलचस्प हो चुका है। सवा 9 साल तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहने के बाद केंद्र की राह पकड़ने को करनाल लोकसभा से भाजपा के प्रत्याशी मनोहर लाल खट्टर चुनावी रण में हैं तो वहीं कांग्रेस ने युवा प्रदेशाध्यक्ष दिव्यांशु बु्द्धिराजा पर दाव खेला है। गुटबाजी और चुनाव मैनेजमेंट में अभी तक कांग्रेस कमजोर दिखाई पड़ रही है। वैसे तो इंडिया गठबंधन में एनसीपी भी साझीदार है, लेकिन यहां पर इंडिया गठबंधन से टिकट नहीं मिलने पर एनसीपी ने मराठा वीरेंद्र वर्मा को मैदान में उतारा है। इस सीट पर रोड़ मराठा वोटर काफी संख्या में होने पर मुकाबला त्रिकोणीय हो चला है।
बता दें कि वैसे करनाल लोकसभा की सीट दिग्गजों की हार के लिए भी जानी जाती है। राजनीति के पीएचडी होल्डर माने जाने वाले भजनलाल यहां से चुनाव हार चुके हैं। इस तरह भाजपा की सुषमा स्वराज को भी करनाल सीट पर हार का मुंह देखना पड़ा था। इस सीट पर वर्ष 1952 से लेकर अभी तक के इतिहास की बात करें तो 9 बार कांग्रेस और 4 बार भाजपा अपना ध्वज फहरा चुकी है। पिछले चुनाव वर्ष 2019 में भाजपा ने संजय भाटिया को टिकट देकर चुनाव लड़वाया था। देशभर में दूसरे सबसे ज्यादा मार्जिन से जीतने वाले संजय भाटिया का इस बार टिकट काटकर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद मनोहर लाल खट्टर को भाजपा ने उम्मीदवार बनाया है। माना जा रहा है कि रिकॉर्ड मार्जिन से जीतने वाली भाजपा की यह सीट इस बार अप्रत्याशित परिणाम दे सकती है। राजनैतिक पंडितों को कहना है कि माहौल बनने पर चुनाव किसी भी पक्ष में जा सकता है।

गौरतलब है कि करनाल लोकसभा के अंतर्गत आने वाला जिला करनाल और पानीपत ऐतिहासिक महत्व रखते हैं। करनाल करण की नगरी के रूप में जानी जाती है तो पानीपत के नाम तीन ऐतिहासिक लड़ाईयां दर्ज हैं। यहां से जातीय समीकरणों का ख्याल राजनैतिक दल हमेशा से रखते आए हैं। पहले इस सीट पर राजनीतिक दल ब्राह्मण उम्मीदवार को प्राथमिकता देते थे, लेकिन वर्ष 2019 और इस बार पंजाबी प्रत्याशियों पर दांव खेला जाने लगा है। भाजपा ने सवा 9 साल प्रदेश का मुख्यमंत्री रहने के बाद मनोहर लाल खट्टर को मैदान में उतारा है, पहले वह करनाल सीट से विधायक थे।

उधर कांग्रेस ने युवा पंजाबी चेहरे दिव्यांशु बुद्धिराजा पर दांव खेला है। वह हरियाणा युवा कांग्रेस के अध्यक्ष भी हैं। जब बुद्धिराजा को मैदान में उतारा गया तो इनेलो नेता अभय सिंह चौटाला सहित विपक्ष के कई नेताओं ने इसे भाजपा को फायदा पहुंचाने की भूपेंद्र सिंह हुड्डा की रणनीति बताते देते हुए कांग्रेस का डमी कैंडिडेट करारा दे दिया। पहले इंडिया गठबंधन से उम्मीदवार बनाए जाने की बाट जोह रहे एनसीपी के प्रदेशाध्यक्ष मराठा वीरेंद्र वर्मा को जब टिकट नहीं मिली तो उन्होंने एनसीपी से पर्चा भर दिया। जिस पर इनेलो नेता अभय सिंह चौटाला ने उनका समर्थन करते हुए यहां से अपना उम्मीदवार घोषित न करने की घाोषणा की। मराठा वीरेंद्र वर्मा अब एनसीपी एवं इनेलो के संयुक्त उम्मीदवार माने जा रहे हैं।

राजनीति के जानकारों का कहना है कि रोड बिरादरी के करीब सवा लाख मतों में से अधिकांश उनके पक्ष में जा सकते हैं तो पूर्व में कई चुनाव लड़ने का अनुभव लिए पूर्व एचसीएस अधिकारी अन्य मतों में भी सेंधमारी कर सकते हैं। इनकी तरफ डायवर्ट होने वाला वोट ज्यादा नुकसान कांग्रेस को पहुंचाएगा या भाजपा को, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन भाजपा और कांग्रेस दोनों की ही नजर मराठा को जाने वाले वोटों पर हैं। शायद यही वजह है कि भाजपा सरकार ने एचएसएससी का चेयरमैन रोड जाति के हिम्मत सिंह को बनाकर इस वोट बैंक में सेंधारमारी करने की कोशिश की है।

मनोहर लाल खट्टर के सामने सबसे बड़ी परेशानी उनके मुख्यमंत्री काल में पैदा हुए विरोधी बन रहे हैं। करनाल लोकसभा में खट्टर का भारी विरोध हो चुका है। सबसे बड़ी परेशानी गांवों में नाराज किसान खासकर जाटों के विरोध करने को लेकर है। सरकार के किसानों को बॉर्डर पर रोकने और एमएसपी सहित वह कई सवाल उठा रहे हैं। उधर सरपंच एसोसिएशन, आंगनवाड़ी वर्कर, ओपीएस संगठन सहित कुछ अन्य संगठन करनाल पहुंचकर विरोध जताते हुए मनोहर लाल को हराने का ऐलान तक कर चुके हैं।

पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के प्रति नाराजगी सिटी तहलका के पब्लिक के मूड कार्यक्रम के तहत देखने को मिली है। हालांकि इनमें बहुत से लोग ऐसे थे कि जो खट्टर से तो नाराज थे, लेकिन मोदी के नाम पर वोट देना चाहते थे। ऐसे में अभी देखना होगा कि जिस सीट पर 6.54 लाख के अंतर से चुनाव जीता गया था, वहां पर मोदी की लोकप्रियता भारी पड़ेगी या खट्टर से नाराजगी। अगर इस सीट पर मनोहर लाल खट्टर के पक्ष की बातों को देखा जाए तो वह यहां से विधायक रहे चुके हैं। साथ ही उनके पास संगठन और कार्यकर्ताओं की लंबी फौज है। अर्बन इलाकों में भाजपा का अच्छा खास वोट बैंक भी है।

वहीं कांग्रेस से दिव्यांशु बुद्धिराजा पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ने जा रहे हैं। इस चुनाव में उन्हें आस है कि जनता में मनोहर लाल खट्टर के प्रति नाराजगी उनकी नैया पार लगाने का काम करेगी। कमजोर प्रत्याशी का विपक्ष का टैग उन्हें अंडरएस्टीमेट होने पर लाभ भी दिला सकता है। करनाल लोकसभा में 60 फीसदी वोटर ग्रामीण क्षेत्र से ही आता है। अगर उसकी नाराजगी का असर हुआ तो बुद्धिराजा की लॉटरी लग सकती है। गुटबाजी उनके लिए यहां पर नुकसान का एक कारण हो सकती है। कुलदीप शर्मा सहित टिकट मांगने वाले और अन्य नेता उनके साथ सक्रिय नहीं दिख रहे हैं। मराठा वीरेंद्र को रोड़ वोटर सहित उनके समर्थक व खुद को ही करनाल का होना, उनकी जीत का सबसे बड़ा फैक्टर लग रहा है। वैसे तो जेजेपी ने भी देवेंद्र कादियान को यहां से चुनावी मैदान में उतारा है, लेकिन मुकाबले में वह कहीं नहीं दिख रहे हैं।

बता दें कि करनाल लोकसभा में विधानसभा की 9 सीटें आती हैं, जिनमें करनाल जिले में नीलोखेड़ी, इंद्री, करनाल, असंध व घरौंडा, जबकि पानीपत जिले में पानीपत ग्रामीण, पानीपत शहरी, इसराना और समालखा शामिल हैं। इनमें से भाजपा 5, कांग्रेस 3 व 1 निर्दलीय ने जीती थी।

करनाल लोकसभा सीट पर जातीय समीकरण
कुल मतदाता 18.21 लाख
पंजाबी 2.10 लाख
जाट 1.98 लाख
ब्राह्रमण 1.65 लाख
रोड़ 1.25 लाख
अनुसूचित जाति 2.25 लाख
जट सिख 1 लाख
मुस्लिम 85 हजार
राजपूत 80 हजार
गुर्जर 56 हजार

करनाल लोकसभा से कब कौन बना सांसद
वर्ष 1952 वीरेंद्र कुमार सत्यवादी देहरादून
वर्ष 1956 सुभद्रा जोशी सियालकोट पाकिस्तान
वर्ष 1962 स्वामी रामेश्वरनंद उत्तराखंड
वर्ष 1967 माधोराम शर्मा पानीपत
वर्ष 1971 माधोराम शर्मा पानीपत
वर्ष 1977 भगवत दयाल शर्मा रोहतक

वर्ष 1978 मोहिंदर सिंह पंजाब
वर्ष 1980 चिरंजीलाल आहूलाना सोनीपत
वर्ष 1984 चिरंजीलाल आहूलाना सोनीपत
वर्ष 1989 चिरंजीलाल आहूलाना सोनीपत
वर्ष 1991 चिरंजीलाल आहूलाना सोनीपत
वर्ष 1996 आईडी स्वामी अंबाला
वर्ष 1998 भजनलाल आदमपुर
वर्ष 2004 अरविंद शर्मा रोहतक

वर्ष 2009 अरविंद शर्मा रोहतक
वर्ष 2014 अश्वनी चोपड़ा दिल्ली
वर्ष 2019 संजय भाटिया पानीपत







