dharm-karm : व्रत या उपवास (Fasting awakens) एक प्राचीन प्रथा है, जो अनेक समुदायों में महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह आयुर्वेद में भी महत्वपूर्ण धारणा है, क्योंकि इसे उपवास करने से पाचन तंत्र (Panchan Tantra) को फिर से जागृत करने में मदद मिलती है और शरीर को शुद्ध करने में सहायक होती है।
बता दें कि उपवास के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख कई प्राचीन पुस्तकों में मिलता है। इन प्रकारों में से कुछ मुख्य नित्य, नैमित्तिक और काम्य हैं। नित्य व्रत वे होते हैं जो रोज किए जाते हैं, जैसे सत्य बोलना, पवित्र रहना, इंद्रियों का निग्रह करना, क्रोध न करना, अश्लील भाषण न करना और परनिंदा न करना। इन व्रतों का पालन करना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। नैमित्तिक व्रत उन व्रतों को कहा जाता है जो किसी विशेष प्रसंग या आवश्यकता पर किए जाते हैं, जैसे चंद्रायण या तिथियों पर व्रत रखना।
काम्य व्रत उन व्रतों को कहा जाता है, जो किसी विशेष कामना की पूर्ति के लिए किए जाते हैं, जैसे पुत्र प्राप्ति के लिए या धन-समृद्धि के लिए। व्रत रखने के नियम धार्मिक और सामाजिक महत्व के साथ-साथ आयुर्वेदिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं। यह पाचन को सुधारने में मदद करते हैं और शरीर को शुद्ध करने में मदद करते हैं। जब शरीर साफ होता है, तो मन भी शांत होता है और आत्मा के साथ गहरा संबंध बनता है।
शरीर बुरे पदार्थों से होता है मुक्त
व्रतों के पालन से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को भी लाभ मिलता है। यह पाचन को मजबूत करता है और शरीर को बुरे पदार्थों से मुक्त करता है। इसके अलावा, व्रतों के पालन से अनेक संस्कृतियों में आत्मा की शुद्धि का महत्व माना जाता है। विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भों में, व्रत रखना एक पवित्र कार्य माना जाता है। जिसके द्वारा व्यक्ति अपनी धार्मिक और आध्यात्मिक साधना को मजबूत करता है और समाज में एक सदैव सकारात्मक योगदान करता है।