कब रखा जाएगा पुत्रदा एकादशी का व्रत? जानिए व्रत की पूजा विधि और शूभ मुहुर्त

धर्म

पुत्रदा एकादशी का व्रत सावन महीने के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को किया जाता है। इस व्रत को संतान की लंबी आयु और मंगल कामना के लिए रखा जाता है। पुत्रदा एकादशी को पवित्रा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पुत्रदा एकादशी साल में दो बार आती है जिसमें पहली पुत्रदा एकादशी सावन महीने के शुक्ल पक्ष में आती हैं, वहीं दूसरी पौष मास के शुक्ल पक्ष में आती है।

भगवान विष्णु को समर्पित है पुत्रदा एकादशी

एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। इस दिन श्री हरि को खुश करने के लिए विधि-विधान के साथ पुजा-अर्चना की जाती है। पुत्रदा एकादशी का व्रत करने से निसंतान दंपतियों को संतान प्राप्ति होती है। स्त्रियां अपनी संतान की लंबी आयु और उनके सुखी जीवन के लिए एकादशी का व्रत करती हैं। ये व्रत केवल पुत्र प्राप्ति के लिए ही नहीं रखा जाता बल्कि पुत्र हो या पुत्री दोनों के लिए ही इस व्रत को किया जा सकता है। इसके आलावा जो व्यक्ति ऐश्वर्य, स्वर्ग, मोक्ष, या कोई अन्य मनोकामना को पूरी करना चाहता है तो उसे यह व्रत जरुर करना चाहिए।

एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त

सावन के शुक्ल पक्ष की एकादशी के व्रत की शुरुआत 27 अगस्त को रात 12 बजकर 08 मिनट पर होगी। वहीं रात 9 बजकर 32 मिनट पर समाप्त हो जाएगी। व्रत खोलने का समय 28 अगस्त सुबह 5 बजकर 57 मिनट से लेकर 8 बजकर 31 मिनट तक रहेगा।

पुत्रदा एकादशी व्रत की पूजा विधि

पुत्रदा एकादशी के दिन व्रती को सुबह जल्दी उठकर स्नान कर साफ कपड़े पहनने चाहिए। इसके बाद पूजाघर में दीप जलाकर व्रत का संकल्प लें और पूजा की तैयारी शुरू करें। पूजा के लिए विष्णु भगवान की प्रतिमा या फोटो एक लकड़ी की चौकी के ऊपर स्थापित करें। चौकी में पहले पीले रंग का कपड़ा बिछा लें इसके बाद भगवान को हल्दी और चंदन का तिलक करें।

फिर फल, फूल, नैवेद्य आदि अर्पित कर भोग भगवान को भोग लगाएं। पूजा में तुलसी और तिल भी जरूर अर्पित करें। इसके बाद धूप-दीप जलाएं और पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा पढ़ें। इस दिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना भी लाभकारी माना जाता है। अब भगवान विष्णु की आरती करें। इस तरह विधि-विधान से किए पूजा से विष्णु भगवान प्रसन्न होकर आपको आशीर्वाद देते हैं।

पुत्रदा एकादशी का महत्त्व

पुत्रदा एकादशी का व्रत करने से मनुष्य के किए हुए सारे काम जो उसने जाने-अनजाने में किए हुए सभी तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है और उसकी सभी मनोकामनाएं पुरी होती हैं। निसंतान दंपत्तियों को व्रत करने से संतान प्राप्ति होती है साथ ही संतान के जीवन में आने वाले सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और उसको स्वस्थ स्वास्थ्य के साथ लंबी आयु का वरदान भी मिलता है। इस व्रत को करने से मनुष्य को संसार त्यागने के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है।