Jitiya Vart हर साल अश्विन माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं अपने बच्चों के लिए व्रत रखती है और उनकी लंबी उम्र के लिए कामना करती है। धार्मिक शास्त्रों में इस व्रत का बहुत ही महत्व है। आइए जाते हैं कि इस साल ये व्रत कौन सी तिथि को मनाया जाएगा और इस व्रत का महत्व, पूजा विधि साथ ही इसके पीछे की पौराणिक कथा।
पाचांग के अनुसार, आश्विन माह की अष्टमी तिथि की शुरुआत 24 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 38 मिनट पर होगी। वहीं, इस तिथि का समापन अगले दिन यानी 25 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 10 मिनट पर होगा। सनातन धर्म में उदया तिथि का विशेष महत्व है। ऐसे में 25 सितंबर को जितिया व्रत किया जाएगा।
महाभारत से जुड़ी कथा
महाभारत युद्ध में अश्वत्थामा अपने पिता गुरु द्रोणाचार्य की मृत्यु के बाद बहुत क्रोधित था। वह पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए पांडवों के शिविर गया। शिविर के अंदर पांच लोग को सोया पाए, अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर मार दिया। जब पांडव उसके सामने आए तो उन्हें पता लगा कि उसने द्रौपदी के पांच पुत्रों को मार दिया है। इसके बाद अर्जुन को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने अश्वत्थामा को बंदी बनाकर उनकी दिव्य मणि छीन ली।
अश्वत्थामा ने इस बात का बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रही संतान को मारने की योजना बनाई। उसने गर्भ में पल रहे बच्चे को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया, जिससे उत्तरा का गर्भ नष्ट हो गया। उत्तरा के बच्चे का जन्म लेना बहुत जरूरी था इसलिए भगवान कृष्ण ने उत्तरा के मृत बालक को फिर से जीवित कर दिया। गर्भ में मरकर जीवत होने की वजह से उसका नाम जीवितपुत्रिका रखा गया। तब से ही संतान की लंबी आयु के लिए जितिया व्रत किया जाने लगा।
व्रत की दूसरी कथा
पौराणिक कथा के अनुसार जीमूतवाहन गंधर्व के बुद्धिमान और राजा थे। जीमूतवाहन शासक बनने से संतुष्ट नहीं थे। जिस वजह से उन्होंने अपने भाइयों को अपने राज्य की सभी जिम्मेदारियां दे दी और अपने पिता की सेवा के लिए जंगल में चले गए। एक दिन जंगल में भटकते हुए उन्हें एक बुढ़िया रोती हुई मिलती है। उन्होंने बुढ़िया से रोने का कारण पूछा तो उसने बताया कि वह सांप के परिवार से है और उसका एक ही बेटा है। एक शपथ के रूप में हर दिन एक सांप पक्षीराज गरुड़ को चढ़ाया जाता है और उस दिन उसके बेटे का नंबर था।
उसकी समस्या सुनने के बाद जिमूतवाहन ने उन्हें आश्वासन दिया कि वह उनके बेटे को जीवित वापस लेकर आएंगे। तब वह खुद गरुड़ का चारा बनने का विचार कर चट्टान पर लेट जाते हैं। तब गरुड़ आता है और अपनी अंगुलियों से लाल कपड़े से ढंके हुए जिमूतवाहन को पकड़कर चट्टान पर चढ़ जाता है। उसे हैरानी होती है कि जिसे उसने पकड़ा है वह कोई प्रतिक्रिया क्यों नहीं दे रहा है। तब वह जिमूतवाहन से उनके बारे में पूछता है। तब गरुड़ जिमूतवाहन की वीरता और परोपकार से प्रसन्न होकर सांपों से कोई और बलिदान नहीं लेने का वादा करता है। मान्यता है कि तभी से ही संतान की लंबी उम्र और कल्याण के लिए जितिया व्रत मनाया जाता है।
पूजा विधि
जीवित्पुत्रिका व्रत को करने के लिए महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान करती है और व्रत करने का संकल्प लेती है। पूजास्थल को अच्छी तरह से साफ करती हैं। उसके बाद महिलाएं एक वहां पर एक छोटा सा कच्चा तालाब बनाकर उसमें पाकड़ की डाल लगा देती हैं। जिसके बाद तालाब में भगवान जीमूतवाहन की प्रतिमा स्थापित करते हैं। इस प्रतिमा की धूप-दीप, अक्षत, रोली और फूलों से पूजा की जाती है। इस व्रत में गोबर से चील और सियारिन की मूर्तियां भी बनाई जाती हैं। इन पर सिंदूर चढ़ाया जाता है और उसके बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनाकर पूजा को संपन्न किया जाता है।