Himachal : माता ज्वाला देवी शक्ति के 51 शक्तिपीठों में से एक है, यह धूमा देवी का स्थान बताया जाता है। चिंतपूर्णी, नैना देवी, शाकम्भरी शक्तिपीठ, विंध्यवासिनी शक्तिपीठ और वैष्णों देवी की ही भांति यह एक सिद्ध स्थान है। यहां पर भगवती सती की महाजिह्वा भगवान विष्णु जी के सुदर्शन चक्र से कटकर गिरी थी।
बता दें कि मंदिर में भगवती के दर्शन नौ ज्योति रूपों मे होते हैं। जिनके नाम क्रमशः महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती, हिंगलाज भवानी, विंध्यवासिनी,अन्नपूर्णा, चण्डी देवी, अंजना देवी और अम्बिका देवी है । उत्तर भारत की प्रसिद्ध नौ देवियों के दर्शन के दौरान चौथा दर्शन मां ज्वाला देवी का ही होता है। प्राचीन किंवदंतियों में ऐसे समय की बात आती है, जब राक्षस हिमालय के पहाड़ों पर प्रभुत्व जमाते थे और देवताओं को परेशान करते थे। भगवान विष्णु के नेतृत्व में देवताओं ने उन्हें नष्ट करने का फैसला किया। उन्होंने अपनी ताकत पर ध्यान केंद्रित किया और विशाल लपटें जमीन से उठ गईं। उस आग से एक छोटी बच्ची ने जन्म लिया, उसे आदिशक्ति-प्रथम ‘शक्ति’ माना जाता है।
सती के रूप में जानी जाने वाली वह प्रजापति दक्ष के घर में पली-बढ़ी और बाद में भगवान शिव की पत्नी बन गई। एक बार उसके पिता ने भगवान शिव का अपमान किया। सती को यह स्वीकार न होने के कारण उसने खुद को हवन कुंड में भस्म कर डाला। जब भगवान शिव ने अपनी पत्नी की मृत्यु के बारे में सुना तो उनके गुस्से का कोई ठिकाना नहीं रहा और उन्होंने सती के शरीर को पकड़कर तीनों लोकों में भ्रमण करना शुरू किया। अन्य देवता शिव के क्रोध के आगे कांप उठे और भगवान विष्णु से मदद मांगी। भगवान विष्णु ने सती के शरीर को चक्र के वार से खंडित कर दिया। जिन स्थानों पर ये टुकड़े गिरे, उन स्थानों पर इक्यावन पवित्र ‘शक्तिपीठ’ अस्तित्व में आए। सती की जीभ ज्वालाजी (610 मीटर) पर गिरी थी और देवी छोटी लपटों के रूप में प्रकट हुई।
पानी से भी नहीं बुझ पाई थी ज्वाला की लपटें
ऐसा कहा जाता है कि सदियों पहले, एक चरवाहे ने देखा कि अमुक पर्वत से ज्वाला निकल रही है और उसके बारे में राजा भूमिचंद को बताया। राजा को इस बात की जानकारी थी कि इस क्षेत्र में सती की जीभ गिरी थी। राजा ने वहां भगवती का मंदिर बनवा दिया। ज्वालामुखी युगों से एक तीर्थस्थल है।
मुगल बादशाह अकबर ने एक बार आग की लपटों को एक लोहे की चादर से ढंकने का प्रयास किया और यहां तक कि उन्हें पानी से भी बुझाना चाहा, लेकिन ज्वाला की लपटों ने इन सभी प्रयासों को विफल कर दिया। तब अकबर ने तीर्थस्थल पर एक स्वर्ण छत्र भेंट किया और क्षमा याचना की। हालांकि देवी की सामने अभिमान भरे वचन बोलने के कारण देवी ने सोने के छत्र को एक विचित्र धातु में तब्दील कर दिया, जो अभी भी अज्ञात है।