Maa Kushmanda

Navratri Special : मां कूष्मांडा(Maa Kushmanda) की मंद मुस्कान से सृष्टि से सांस लेना किया आरंभ, पूजा कर चारों ओर फैला अंधकार करें दूर

धर्म

Navratri Special : नवरात्रि के चौथे दिन देवी के चौथे स्वरूप मां कूष्मांडा(Maa Kushmanda) की पूजा होती है। देवी कूष्मांडा आदिशक्ति का वह स्वरूप है, जिनकी मंद मुस्कान से इस सृष्टि ने सांस लेना आरंभ(start) किया, यानी इस सृष्टि का आरंभ(start) किया।

बता दें कि देवी कूष्मांडा(Maa Kushmanda) का निवास स्थान सूर्यमंडल के बीच में माना जाता है। देवी का तेज ही इस संसार को तेज बल और प्रकाश प्रदान करता है। देवी कूष्मांडा(Maa Kushmanda) मूल प्रकृति और आदिशक्ति हैं। जब सृष्टि में चारों तरफ अंधकार फैला था। उस समय देवी ने जगत की उत्पत्ति की इच्छा से मंद मुस्कान किया इस सृष्टि में अंधकार का नाश और सृष्टि में प्रकाश फैल गया।

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कहते हैं कि देवी के इस तेजोमय रूप की जो भक्त श्रद्धा भाव से भक्ति करते हैं और नवरात्रि के चौथे दिन इनका ध्यान करते हुए पूजन करते हैं उनके लिए इस संसार में कुछ भी दुर्लभ नहीं रह जाता है। माता अपने भक्त की हर चाहत को पूरी करती हैं और भोग एवं मोक्ष प्रदान करती हैं।

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ऐसे पड़ा मां का नाम कूष्‍मांडा

देवी कुष्‍मांडा को लेकर भगवती पुराण में बताया गया है कि मां दुर्गा मां के चौथे स्‍वरूप की देवी ने अपनी मंद मुस्‍कान से ब्रह्मांड की उत्‍पन्‍न किया था, इसलिए इनका नाम कुष्‍मांडा पड़ा। माना जाता है जब सृष्टि के आरंभ से पहले चारों तरफ सिर्फ अंधेरा था। ऐसे में मां ने अपनी हल्‍की सी हंसी से पूरे ब्रह्मांड की रचना की। वह सूरज के घेरे में रहती हैं और उन्‍हीं के अंदर इतनी शक्ति है कि वह सूरज की तपिश को सह सकती हैं।

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मां कूष्मांडा की सवारी सिंह

इस दिन उपासक का मन अनाहत चक्र में उपस्थित रहता है जो हृदय के मध्य स्थित होता है। इस देवी की उपासना के लिए भक्तों को हल्के नीले रंग के वस्त्रों को धारण करना चाहिए। जो इस चक्र को जागृत करने में सहायक होता है। मां कूष्मांडा के स्वरूप के बारे में कहा जाता है कि यह अष्ट भुजाओं वाली देवी हैं। इनकी भुजाओं में बाण, चक्र, गदा, अमृत कलश, कमल और कमंडल शोभा पाते हैं। वहीं दूसरी भुजा में वह सिद्धियों और निधियों से युक्‍त माला धारण करती हैं। मां कूष्‍मांडा की सवारी सिंह है।

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पूजा की विधि

भक्तों को चाहिए कि सुबह स्‍नानादि से निवृत्त होकर देवी कूष्मांडा का ध्यान करे। इसके बाद दुर्गा के कूष्‍मांडा रूप की पूजा करें। पूजा में मां को लाल रंग के पुष्‍प, गुड़हल या गुलाब अर्पित करें। इसके साथ ही सिंदूर, धूप, दीप और नैवेद्य भी माता को चढ़ाएं। माता के इस स्वरूप का ध्यान स्थान अनाहत चक्र है इसलिए देवी की उपासना में अनाहत चक्र के मिलते रंग जो हल्का नील रंग है उसी रंग के वस्त्रों को धारण करे। इससे माता के स्वरूप में ध्यान लगाना आसान होगा।

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पूजा का लाभ

देवी कूष्मांडा की साधना और पूजा से आरोग्य की प्राप्ति होती है। देवी अपने भक्तों को हर संकट और विपदा से निकालकर सुख वैभव प्रदान करती हैं। साथ ही जो देवी कूष्मांडा की भक्ति करते हैं माता उसके लिए मोक्ष पाने का मार्ग सहज कर देती हैं। माता के भक्तों में तेज और बल का संचार होता है। इन्हें किसी प्रकार का भय नहीं रहता है।

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मां कूष्मांडा का भोग

देवी कूष्मांडा को कुम्हरा यानी पेठा प्रिय है। देवी की प्रसन्नता के लए आप सफेद पेठे के बलि दे सकते हैं। इसके साथ ही देवी को मालपुए और दही हलवे का भोग लगाएं। इस तरह आप देवी कूष्मांडा की कृपा का लाभ पा सकते हैं।

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