Radhe Radhe Maharaj

Panipat : सनातन संस्कृति के केवल धर्म नहीं, अपितु सम्पूर्ण विश्व का मूल : Radhe Radhe

धर्म पानीपत

Panipat : मॉडल टाउन स्थित अति प्राचीन सनातन धर्म मंदिर के पावन प्रांगण में गोयल परिवार द्वारा आयोजित सप्त दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के समापन दिवस पर भागवत प्रवक्ता भागवत रसिक प्रसिद्ध कथा वाचक पंडित राधे-राधे महाराज(Radhe Radhe Maharaj) ने व्यास मंच से भागवत कथा के प्रसंग पर चर्चा करते हुए कहा कि धर्म के द्वारा पुण्य की पूंजी बढ़ाई जा सकती है। निर्मल और पवित्र मन से भक्ति करने से भगवान के चरणों में स्थान पाया जा सकता है। 

पंडित राधे राधे महाराज ने कहा कि जब प्यास लगती है, तभी पानी का महत्व समझ में आता है, ठीक उसी प्रकार भगवान के श्रीचरणों में स्थान प्राप्त करने के लिए हृदय से प्रभु को स्मरण करने की आवश्यकता है। किसी ने भगवान को देखा तो नहीं है, लेकिन भगवान की कथा सुनने मात्र से ही मन के सारे विकार नष्ट हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि जिसे भक्ति का एक बार स्वाद मिल गया, वह भगवान की भक्ति में दिन-रात लीन हो जाता है। जिस क्षण व्यक्ति हृदय से भगवान से जुड़ जाता है, उसी क्षण से वह प्रसन्नचित हो जाता है, इसलिए कहा गया है कि भगवान के श्रीचरणों में ही सारे समस्याओं का हल है। 

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पंडित राधे-राधे महाराज ने कहा कि जैसे जल का आधार समुद्र है, ठीक उसी तरह जीवों का आधार परमात्मा है। भगवान को प्रसन्न करने के लिए केवल समर्पण की आवश्यकता है। जीवन को सार्थक बनाने के लिए सत्संग से जुड़ना अनिवार्य है, क्योंकि हमारे सत्कर्म ही हमारी रक्षा करते हैं। हम धर्म से पुण्य की पूंजी बढ़ा सकते हैं, लेकिन पाप की पूंजी तो अपने आप बढ़ती है। जीवन में बिना पुण्य के सुख नहीं है। भक्ति सिर्फ गंगा स्नान और मंदिर में पूजा करना ही नहीं है, बल्कि ईश्वर का भजन करना, सत्कर्म करना, पुत्र, पति, स्वामी, समाज व मानवता की सेवा करना भी भक्ति है।

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भगवान को प्राप्त करने का सरल तरीका भक्ति

श्रीमद्भागवत कथा के तहत नैमिषारण्य प्रसंग की चर्चा करते हुए कहा कि करीब छह हजार वर्ष पूर्व वहां धर्म सम्मेलन हुआ था। शौनक ऋषि ने एक हजार वर्ष तक चलने वाले अनुष्ठान का आयोजन किया था। कलियुग में लंबे अनुष्ठान का महत्व नहीं है, क्योंकि चूक एवं त्रुटि की संभावनाएं अधिक हैं। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु के द्रविड़ प्रदेश में भक्ति का जन्म हुआ, महाराष्ट्र में युवा हुई और गुजरात में वृद्धा हो गई। उन्होंने कहा कि भगवान को प्राप्त करने का सरल तरीका भक्ति है। हमेशा जनमानस कल्याण के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए। भागवत कथा सत्संग प्रवचन में आपनी आहुति देने चाहिए।

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संसार को भक्ति का दिया संदेश

राधे राधे महाराज ने कहा कि इस प्रकार के मंगल कार्य नगर के अंदर सदैव आयोजित होने चाहिए, ताकि धर्म की स्थापना की जा सके। भगवान अपने भक्तों में अमीर, कुलीनता, वृद्ध, बालक, मनुष्य और जानवर का भेद नहीं करते। गरीब सुदामा, बालक प्रहलाद, माता सेवरी और गजराज पर कृपा करके उन्होंने संसार को भक्ति का संदेश दिया है। जीवन में शुभ-अशुभ कार्यों का प्रतिफल अवश्य भोगना पड़ता है। जाने-अनजाने में अगर कोई पाप होता है, तो संत के पास व तीर्थ में जाकर उसका मार्जन किया जा सकता है, लेकिन तीर्थ और संतो के यहां किए गये अपराध का मार्जन संभव नहीं है।

भक्ति और सत्कर्म का प्रभाव

राधे राधे महाराज ने कहा कि भक्ति और भगवान के आश्रय में रहकर सुकर्म करते हुए अपने अपराधों के प्रभाव को कम किया जा सकता है, लेकिन पूरी तरह समाप्त नहीं किया जा सकता है। बारिश में छाता या बरसाती से और आंधी में दीये को शीशा से बचाव किया जा सकता है, लेकिन बारिश एवं आंधी को रोका नहीं जा सकता है। भक्ति और सत्कर्म का प्रभाव यही होता है। प्रारब्ध या होनी का समूल नाश नहीं होता। प्रारब्ध को भोगना ही पड़ता है। राधे राधे महाराज महाराज ने कहा कि शास्त्रों में कहा गया है कि प्रारब्ध अवश्यमेव भोक्तव्यम। ईश्वर की भक्ति अथवा संत-सद्गुरु के प्रभाव से प्रारब्ध की तीक्ष्णता को कम किया जा सकता है।

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ये रहे मौजूद

इस मौके पर ईश्वर गोयल, मुकेश गोयल, रामकुमार गोयल, संतकुमार गोयल, गौरव गोयल, तरुण गांधी, प्रधान धीरज छाबड़ा, नंदकिशोर छाबड़ा, तिलकराज मिगलानी, सतीश गंभीर, चमन लाल ढींगरा, ओम प्रकाश विरमानी, इंद्रजीत कथूरिया आदि सहित अनेक मौजूद रहे। सभी श्रद्धालुओं ने व्यास मंच पर राधे राधे महाराज का स्वागत किया एवं महाराज की ओर से सभी को स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया गया।

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