भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि व्यक्ति को कभी भी क्रोध नहीं करना चाहिए, क्योंकि क्रोध करने पर व्यक्ति का दूसरा के प्रति मोह यानी प्यार खत्म हो जाता है। गीता का ज्ञान स्वयं पाना और उसे दूसरों को भी वितरित करना बेहद कठिन कार्य है, ऐसा केवल संत महात्मा एवं ब्राह्मण ही कर पाते है, जो कि अपने दिनचर्या के कार्यों के साथ सारा दिन भगवान की भक्ति में डूबे रहते है। लेकिन छोटी सी उम्र में ही गीता के ज्ञान को प्राप्त करने की ललक होना और उसे दूसरों के साथ सांझा करना ऐसा प्रभाव चंद बच्चों में ही दिखाई पड़ता है।
ऐसा ही कुछ आजकल प्रदेश के शहर पानीपत में फतेहपुरी चौक के पास रहने वाले दो बच्चे 12 वर्षीय सार्थक कृष्ण दास और 8 वर्षीय काशवी देवी दास सफल करते हुए नजर आ रहे है, जो कि अपनी छोटी सी उम्र में असंध रोड के सेंटमेरी कान्वेंट स्कूल से किताबों का ज्ञान प्राप्त करने के साथ-साथ पानीपत के इस्कॉन मंदिर से गीता का ज्ञान प्राप्त करने में जुटे हुए है।
इतना ही नहीं ये बच्चे दूसरे लोगों को भी गीता का ज्ञान वितरित करते है, जिस गीता की किताब को वो अपने पैसो से खरीदते है और उसे प्रिंट रेट पर लोगों को वितरित करते है। सार्थक और काशवी पिछले 2 वर्षों में सैंकड़ों लोगों को गीता ज्ञान की किताबें वितरित कर चुके है। दोनों बच्चों की दिनचर्या अपने माता-पिता के साथ सुबह से ही भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी की भक्ति से शुरू हो जाती है। सार्थक और काशवी के पिता रणबीर अर्जुन कृष्ण दास टूर ट्रेवल का कार्य करते है और माता रेवती रास रानी देवी दासी गृहणी है।
पूरी खबर देखने व जानने के लिए वीडियो पर क्लीक करें
टीवी-मोबाईल आदि का किया त्याग
परिजनों की मानी जाए तो जब सार्थक 8 वर्ष का था, उस समय दोनों बच्चों के साथ वो पानीपत के इस्कॉन मंदिर में गए थे और उसके बाद जब भी समय लगता है या फिर कोई त्यौहार होता है, तो इस्कॉन मंदिर में पहुंच जाते है, जहां बच्चों के साथ-साथ उन्हें भी बेहद सुकून मिलता है। जब से बच्चों ने गीता का ज्ञान पाना शुरू किया है, तब से उन्होंने टीवी व मोबाईल आदि देखना भी बंद कर दिया है, क्योंकि दोनों बच्चों को ये पसन्द ही नहीं है, अपनी पढाई करने के बाद उन्हें गीता ज्ञान में ही सुकून मिलता है। इतना ही नहीं गत्ते की बनी लूडो को भी उन्होंने गोकुल धाम का रूप देकर खेलना शुरू किया।
इस्कॉन पानीपत फाउंडर से मिली प्रेरणा
पिता रणबीर अर्जुन कृष्ण दास और माता रेवती रास रानी देवी दासी ने बताया कि बच्चों को ये प्रेरणा पानीपत इस्कॉन फाउंडर से मिली है, जिन्होंने गीता ज्ञान का जिक्र किया और बच्चों ने तुरंत प्रभाव से गीता ज्ञान को पढ़ना शुरू कर दिया। जिन्होंने स्कूल में जाने पर टीचर्स को गुडमार्निंग करने की बजाय जय श्रीकृष्णा कहना शुरू किया, तभी से जुबान पर मिठास के साथ श्रीकृष्ण का नाम बना रहता है।