Radhe Radhe Maharaj

Panipat : भगवान की लीला को जानना ही सच्चा धर्म परमार्थ, नोटंकी-मनोरंजन का नाम लीला नहीं : Radhe Radhe Maharaj

धर्म पानीपत

Panipat : प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित दाऊजी महाराज के सानिध्य में चल रहे श्री अवध धाम मंदिर वार्षिक महोत्सव एवं श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सत्संग समारोह को छठे दिवस पर प्रसिद्ध कथावाचक राधे राधे महाराज(Radhe Radhe Maharaj) ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए बताया कि जो लीला का स्वरूप था, पहले वो सार्वजनिक नहीं था। अनाधिकारी व्यक्ति उसका आस्वादन नहीं कर सकता था। आज तो सब देके लेके कहीं भी कृष्ण नाच रहें हैं। सब नाच रहें हैं और फिर जिसकी जैसी मर्जी वैसे नचा रहे हैं।

राधे राधे महराज(Radhe Radhe Maharaj) ने कहा कि ये विचित्र बात है, गोदी में बैठा लिए, इधर कर लिए, यहां कर लिए। मानो वो जीव है, पर कृष्ण के स्वरूप में बड़ी सामर्थ्य है, उस स्वरूप में ही सामर्थ्य है, बड़ी मर्यादा के साद पहले लीला का स्वरूप होता था। नौटंकी का नाम लीला नहीं होती, मनोरंजन का नाम लीला नहीं होती। भागवत कथा के प्रसंग पर चर्चा करते हुए कहा कि धर्म के द्वारा पुण्य की पूंजी बढ़ाई जा सकती है। निर्मल और पवित्र मन से भक्ति करने से भगवान के चरणों में स्थान पाया जा सकता है। पंडित राधे राधे ने कहा कि जब प्यास लगती है, तभी पानी का महत्व समझ मे आता है, ठीक उसी प्रकार भगवान के श्रीचरणों में स्थान प्राप्त करने के लिए हृदय से प्रभु को स्मरण करने की आवश्यकता है। किसी ने भगवान को देखा तो नहीं है, लेकिन भगवान की कथा सुनने मात्र से ही मन के सारे विकार नष्ट हो जाते हैं। 

Radhe Radhe Maharaj - 2

जिसे भक्ति का एक बार स्वाद मिल गया, वह भगवान की भक्ति में दिन-रात लीन हो जाता है। जैसे जल का आधार समुद्र है, ठीक उसी तरह जीवों का आधार परमात्मा है। भगवान को प्रसन्न करने के लिए केवल समर्पण की आवश्यकता है। जीवन को सार्थक बनाने के लिए सत्संग से जुड़ना अनिवार्य है, क्योंकि हमारे सत्कर्म ही हमारी रक्षा करते हैं। हम धर्म से पुण्य की पूंजी बढ़ा सकते हैं, लेकिन पाप की पूंजी तो अपने आप बढ़ती है। जीवन में बिना पुण्य के सुख नहीं है। 

अपराध का मार्जन संभव नहीं

राधे राधे महाराज ने कहा कि जीवन में शुभ-अशुभ कार्यों का प्रतिफल अवश्य भोगना पड़ता है। जाने-अनजाने में अगर कोई पाप होता है, तो संत के पास व तीर्थ में जाकर उसका मार्जन किया जा सकता है, लेकिन तीर्थ और संतो के यहां किए गए अपराध का मार्जन संभव नहीं है। भक्ति और भगवान के आश्रय में रहकर सुकर्म करते हुए अपने अपराधों के प्रभाव को कम किया जा सकता है, लेकिन पूरी तरह समाप्त नहीं किया जा सकता है। बारिश में छाता या बरसाती से और आंधी में दिये को शीशा से बचाव किया जा सकता है, लेकिन बारिश एवं आंधी को रोका नहीं जा सकता है।

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प्रारब्ध अवश्यमेव भोक्तव्यम

भक्ति और सत्कर्म का प्रभाव यही होता है। प्रारब्ध या होनी का समूल नाश नहीं होता, प्रारब्ध को भोगना ही पड़ता है। शास्त्रों में कहा गया है कि प्रारब्ध अवश्यमेव भोक्तव्यम। ईश्वर की भक्ति अथवा संत-सद्गुरु के प्रभाव से प्रारब्ध की तीक्ष्णता को कम किया जा सकता है। इस अवसर पर प्रेम मंदिर प्रेम मंदिर परमाध्यक्ष कांता देवी महाराज एवं स्वामी अरुण दास महाराज का प्रवचन किया। वहीं अवध धाम सेवा समिति ने अभिनंदन किया और दाऊजी महाराज ने दुशाले से महाराज को सम्मानित किया।

ये रहे मौजूद

इस मौके पर समाजसेवी वेद पराशर, अंकुश बंसल, महेंद्र कंसल, कुंवर रविंद्र सैनी, उद्योगपति विनोद धमीजा, अशोक बांगा, विशाल वर्मा, विपिन चुग, तरूण गांधी, दीपक मिगलानी, मदन डूडेजा, कृष्ण रेवड़ी प्रधान, शकुंतला गर्ग पूर्व निगम पार्षद, रमेश चुघ, अशोक नारंग, मोहन लाल गर्ग, शशि कांत कौशिक, भाजपा नेता प्रीतम गुज्जर, डॉ. गौरव श्रीवास्तव आदि सहित भारी संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहे।

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