Prayagraj के त्रिवेणी संगम के पास गंगा किनारे स्थित वासुकि नागेश्वर मंदिर विशेष धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व रखता है। यह मंदिर समुद्र मंथन से जुड़ा हुआ है, जहां नागों के राजा वासुकि ने विश्राम किया था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस स्थान पर समुद्र मंथन के समय वासुकि नाग अपनी गरुड़ जीर्णी के नीचे पांव रखते हुए शांतिपूर्वक विश्राम कर रहे थे।
इस मंदिर का निर्माण भी इसी समय हुआ था और यह नागों के राजा वासुकि को समर्पित है। इस मंदिर में पूजा-अर्चना करने से जातक को नागदोष से मुक्ति और सभी प्रकार की पवित्रता प्राप्त होती है। श्रद्धालु यहां पूजा करने आते हैं और नागों के राजा की विशेष कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। यहाँ आने से व्यक्ति की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और तात्कालिक समस्याओं से छुटकारा मिलता है।
सर्पराज नागवासुकी:
पुराणों में नागवासुकी को सर्पराज माना जाता है। यह भगवान शिव के कण्ठहार हैं और समुद्र मंथन की पौराणिक कथा में रस्सी के रूप में उपयोग किए गए थे। समुद्र मंथन के बाद भगवान विष्णु के कहने पर नागवासुकी ने प्रयाग में विश्राम किया और देवताओं के आग्रह पर यहीं स्थापित हो गए।
प्रयागराज में नागवासुकी का मंदिर:
नागवासुकी जी का मंदिर वर्तमान में प्रयागराज के दारागंज मोहल्ले में गंगा नदी के तट पर स्थित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब देव और असुर समुद्र मंथन के लिए तैयार हुए थे, तब मंदराचल पर्वत मथानी और नागवासुकी रस्सी बने थे। मंदराचल पर्वत की रगड़ से नागवासुकी का शरीर छिल गया था, जिसके बाद उन्होंने प्रयाग में विश्राम किया।
व्रत और पूजा:
मान्यता है कि त्रिवेणी संगम में स्नान करने से नागवासुकी का दर्शन करने से पूर्ण फल की प्राप्ति होती है। सावन मास की पंचमी के दिन उनकी पूजा होती है। देवताओं ने उनकी इन मांगों को स्वीकार कर लिया और ब्रह्माजी के मानस पुत्र द्वारा मंदिर बनाया गया, जो प्रयागराज के उत्तर-पश्चिम में संगम तट पर स्थित है।
भोगवती तीर्थ:
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, जब गंगा जी का धरती पर अवतरण हुआ, तो भगवान शिव की जटा से वेग अत्यंत तीव्र था और गंगा सीधे पाताल में प्रवेश कर रही थीं। तब नागवासुकी ने अपने फन से भोगवती तीर्थ का निर्माण किया। प्राचीन काल में इस तीर्थ कुंड का नाम भोगवती तीर्थ था जो अब कालकवलित हो गया है। मान्यता है कि बाढ़ के समय जब मां गंगा मंदिर की सीढ़ियों को स्पर्श करती हैं, उस समय इस घाट पर गंगा स्नान से भोगवती तीर्थ के स्नान का पुण्य प्राप्त होता है।
नागपंचमी के पर्व की शुरुआत भगवान नागवासुकि जी की शर्तों के कारण ही मानी जाती है। इस दिन विशेष रूप से नाग पंचमी के दिन मंदिर में मेला लगता है, और मान्यता है कि भगवान वासुकि के दर्शन और चांदी के नाग-नागिन के जोड़े का अर्पण करने मात्र से कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है। इस मंदिर में कालसर्प दोष और रूद्राभिषेक करने से जीवन की सभी बाधाएं समाप्त हो जाती हैं। संगम स्नान, कल्पवास और कुम्भ स्नान के बाद नागवासुकि के दर्शन से पूर्ण फल की प्राप्ति होती है और जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं।