मध्य प्रदेश के सतना शहर के मुख्य बाजार के पास स्थित श्री कृष्ण प्रणामी मंदिर का इतिहास अत्यंत गहरा और प्रेरणादायक है। इस मंदिर का निर्माण 1873 में रीवा महाराज की मदद से हुआ था। यह मंदिर पन्ना के प्रसिद्ध प्राणनाथ मंदिर की तर्ज पर बनाया गया है और इसकी स्थापना की कहानी एक अद्वितीय संघर्ष और भक्ति की गाथा से जुड़ी हुई है, जिसमें नेपाल की सेन बाई माता का महत्वपूर्ण योगदान है।
सेन बाई माता का अद्वितीय संघर्ष
यह कहानी आजादी से पहले की है, जब देश में मुगलों द्वारा सनातनी सभ्यता और मंदिरों को नष्ट करने के प्रयास जारी थे। पन्ना के रास्ते में स्थित घने जंगलों में लुटेरों का आतंक था। ऐसे कठिन समय में, नेपाल के पोखरा से एक विदुषी महिला सेन बाई माता प्राणनाथ मंदिर के दर्शन करने के लिए सतना आईं। उन्होंने सतना रेलवे स्टेशन के पास एक कुटिया में छोटा सा मंदिर बनाकर वहां निवास करना शुरू किया।
सेन बाई माता का साहस और त्याग इस समय के एक प्रेरणास्त्रोत बन गए थे। वे यात्रियों को सुरक्षित मार्ग दिखाने के लिए मर्दाना वेश धारण कर लेतीं और उनके साथ खुखरी लेकर जंगलों में यात्रा करतीं। उनके इस साहसिक कार्य ने हजारों श्रद्धालुओं की मदद की और उन्हें सतना से पन्ना के प्राणनाथ मंदिर तक सुरक्षित पहुंचाया।
रीवा महाराज का योगदान और मंदिर की स्थापना
साध्वी निर्मला, जो श्री कृष्ण प्रणामी मंदिर ट्रस्ट की नौवीं अध्यक्ष हैं, ने बताया कि सेन बाई माता की निस्वार्थ सेवा से प्रभावित होकर रीवा के महाराज उनसे मिलने पहुंचे। उन्होंने माता की सेवा करने की इच्छा जताई, लेकिन सेन बाई माता ने मंदिर निर्माण के लिए भूमि मांगी। हालांकि, यह भूमि उन्होंने दान में नहीं बल्कि राजा से 8 आने देकर खरीदी।
महिलाओं का नेतृत्व और मंदिर का ऐतिहासिक महत्व
सेन बाई माता के बाद, माल बाई गुजरात प्रांत के मंदिर की महंत बनीं और 1972 में मंदिर को ट्रस्ट के रूप में गठित किया गया। इस तरह, श्री कृष्ण प्रणामी मंदिर आज सतना की ऐतिहासिक धरोहरों में शामिल है और हजारों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है।