धर्मनगरी Chitrakoot को प्रभु श्रीराम की तपोस्थली के रूप में जाना जाता है। यहीं पर श्रीराम ने अपने वनवास का लगभग साढ़े ग्यारह वर्ष व्यतीत किया था। इसी कारण, अमावस्या के दिन चित्रकूट में स्नान और दान का विशेष महत्व माना जाता है। हर साल अमावस्या पर लाखों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं और मां मंदाकिनी नदी में स्नान कर पूजा-अर्चना करते हैं।
अगहन अमावस्या पर स्नान और तर्पण का महत्व
इस साल अगहन अमावस्या रविवार को पड़ी, जिसमें लाखों श्रद्धालु चित्रकूट के रामघाट पर पहुंचे। यहां मां मंदाकिनी नदी में स्नान के बाद पितरों का तर्पण किया गया। तर्पण के बाद श्रद्धालु कामदगिरि पर्वत की परिक्रमा करते हैं और भगवान कामतानाथ के दर्शन कर उनसे मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना करते हैं।
अमावस्या पर स्नान-दान की मान्यता
- पितरों की शांति:
अगहन अमावस्या को पितरों की शांति और तर्पण के लिए सबसे शुभ माना जाता है। श्रद्धालु पवित्र नदी में स्नान के बाद अपने पूर्वजों के लिए प्रार्थना और दान-पुण्य करते हैं। - पापों का नाश:
मान्यता है कि मंदाकिनी नदी में स्नान करने से पाप धुल जाते हैं और भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। - मां लक्ष्मी और विष्णु की पूजा:
इस दिन मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करने से परिवार में सुख-समृद्धि और शांति आती है।
कामदगिरि पर्वत की परिक्रमा और दर्शन
स्नान के बाद श्रद्धालु कामदगिरि पर्वत की पंचकोसी परिक्रमा करते हैं। इस दौरान वे भगवान कामतानाथ की पूजा-अर्चना कर अपनी मनोकामनाएं पूर्ण होने की प्रार्थना करते हैं। यह परिक्रमा श्रद्धालुओं के लिए आस्था और श्रद्धा का प्रतीक है।
चित्रकूट की पवित्रता और इतिहास
चित्रकूट के आचार्य विपिन विराट महाराज बताते हैं कि यह स्थान ब्रह्मांड का अलौकिक और ऐतिहासिक तीर्थ है।
- सतयुग में ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने यहां कदम रखा था।
- त्रेता युग में प्रभु श्रीराम ने भी इस धरती को पवित्र किया।
- यही कारण है कि हर अमावस्या को लाखों श्रद्धालु यहां एकत्रित होते हैं।
दान-पुण्य का महत्व
अमावस्या पर श्रद्धालु अपनी श्रद्धा के अनुसार दान-पुण्य करते हैं।
- पितरों के लिए दान: भोजन, कपड़े और धन का दान पितरों की आत्मा की शांति के लिए किया जाता है।
- सामाजिक कल्याण: अमावस्या पर किए गए दान को मोक्ष प्राप्ति और जीवन में सुख-समृद्धि का माध्यम माना गया है।
अगहन अमावस्या पर चित्रकूट में स्नान, तर्पण और दान की परंपरा न केवल श्रद्धा और आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह हमारी संस्कृति और धार्मिक मान्यताओं की गहराई को भी दर्शाती है। ऐसे आयोजन न केवल भक्तों को पवित्रता का अनुभव कराते हैं, बल्कि समाज में दान-पुण्य के महत्व को भी स्थापित करते हैं।