वर्तमान भागवत कथा साक्षात श्रीहरि का स्वरूप : पं. राधे राधे महाराज

धर्म पानीपत

किले पर विशाल हनुमान की मूर्ति स्थापना हेतु भूमि पूजन के उपलक्ष्य में हाफिजाबादी राम नाटक क्लब की ओर में आयोजित सप्त दिवसीय भागवत कथा पर प्रसिद्ध कथा वाचक भागवत रसिक पंडित राधे-राधे महाराज ने कहा कि कलयुग में भागवत कथा साक्षात श्रीहरि का स्वरूप है। इस कथा को सुनने के लिए देवी देवता भी तरसते हैं, परंतु दुर्लभ मानव प्राणी को यह कथा सहित भी प्राप्त हो जाती है, क्योंकि यदि भगवान किसी से सब्र सर्वाधिक स्नेह करते हैं, तो वह मानव रूपी अपने भक्तों को करते हैं। मानव जीवन तभी धन्य होता है, जब वह कथा स्मरण का लाभ प्राप्त कर लेता है, सत्संग एवं कथा के माध्यम से मनुष्य भगवान की शरण में पहुंचता है, वरना वह इस संसार में आकर मोह माया के चक्कर में पड़कर अपना मानव जीवन जो कि अश्वमेध यज्ञ के समान होता है, उसको व्यर्थ में ही निकाल देता है।

पंडित राधे-राधे महाराज ने व्यास मंच पर भागवत कथा के प्रसंग पर चर्चा करते हुए कहा कि मनुष्य को समय निकालकर श्रीमद् भागवत कथा का सिमरन अवश्य करना चाहिए। बच्चों को संस्कारवान यदि बनाना है, तो सत्संग का द्वार जरूर दिखाना पड़ेगा। आज के 21वीं सदी के भारत में हम सब पश्चिमी सभ्यता का अनुसरण करने में लगे हुए हैं और लगे भी क्यों ना इस भागदौड़ और फास्ट चल रही जिंदगी के अंदर केवल प्रतिस्पर्धा प्रतियोगिता प्रतियोगिता ही रह गई है।

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सत्य आचरण का स्वरूप

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पंडित राधे-राधे महाराज ने कहा कि सत्य आचरण का स्वरूप है, भागवत कथा है, आज के इस दौर में हम सब राजा परीक्षित तो नहीं बन सकते, लेकिन जो भागवत कथा से पूर्व राजा परीक्षित ने अपराध किया था। वह अपराध हम जाने अनजाने में नहीं, अपितु इस 21वीं सदी में जानबूझकर कर रहे हैं। आज क्यों ना हम सब भागवत कथा सुनने के बाद का राजा परीक्षित बने। जिससे समाज का उद्धार हो और समाज का कल्याण हो मानव समाज के उद्धार के लिए धरती पर महापुरुषों का वितरण होता रहा है और महापुरुषों का “ही समाज का कल्याण का कारक होता है।

मनुष्य भोगों को नहीं भोगता

राधे-राधे महाराज ने कहा कि मनुष्य भोगों को नहीं भोगता, अपितु भोग ही मनुष्य को भोग लेता है। इस विषय पर सत्य को समझ लेता है, मानो वही ज्ञानी मनुष्य है, वही महात्मा, संत, सन्यासी, भक्त, सदाचारी, गुणकारी है, जो इस सत्य को समझ लेता है। वह कभी भी दुखी नहीं रहता, यद्यपि भगवान के द्वारा बनाई गई 8400000 योनियों में मनुष्य को तो कर्म के बौद्ध के अनुसार आना ही पड़ता है और 8400000 योनियों को भोगना ही पड़ता है। प्रश्न यह उठता है कि उन 84 लाख योनियों में आपकी योनी के अंदर रहकर समाज के लिए कुछ कर पाए आप कितना जिए समाज में यह महत्वपूर्ण नहीं है।
धर्म की राह पर चलकर सेवा कर सकते है : स्वामी ज्ञानानंद

इस अवसर गीता मनीषी महामंडलेश्वर ज्ञानानंद महाराज ने कहा कि धर्म की राह पर चलकर ही हम सेवा कर सकते हैं, क्योंकि कहीं ना कहीं आज के वर्तमान समय में सेवा के अंदर ही स्वार्थ छिपा हुआ है। यदि सेवा के अंदर स्वार्थ आ जाए तो वह सेवा निरर्थक मानी जाती है, क्योंकि सेवा बिना स्वार्थ के हो तो ही उत्तम है, इसलिए हम सब सत्संग में आकर ही निस्वार्थ सेवा के भाव का परायण कर सकते हैं। निस्वार्थ सेवा का वर्णन श्रीमद् भागवत कथा एवं गीता के अंदर आया है और सेवा ही सभी यश मान-सम्मान एवं कीर्ति को प्रदान करने वाली है, इसलिए सेवा परायण हो जाना ही कल्याण पद है।

ये रहे मौजूद

इस मौके पर पं. दाऊजी महाराज, कांता देवी महाराज, ब्रह्मर्षि महाराज, विधायक प्रमोद विज, सांसद पुत्र चांद भाटिया, मेयर अवनीत कौर, वेद पराशर, श्रीनाथ महाराज, ब्रम्हृषिमहाराज, अजय हुडिया, पिंकी भराड़ा, सुभाष भराड़ा, गुलशन सेठी, राजीव भाटिया, प्रिंस सहगल, करण भराड़ा, सुनील ग्रोवर, राजकुमार झांब, विशाल वर्मा, प्रमोद शर्मा, सुशील पटवारी, मंच का संचालन कैलाश नारंग ने किया गया।