गरीबी और अमीरी से परे है सच्ची दोस्ती, जानिए कृष्ण-सुदामा और कर्ण-दुर्योधन की दोस्ती कैसे बनी मिसाल

धर्म


कहा जाता है कि जब इंसान जन्म लेता है तभी से उसके साथ समाज के अनेकों रिश्ते जुड़ जाते है, लेकिन दोस्ती एक ऐसा रिश्ता है जो हमें खुद बनाना पड़ता है इसलिए दोस्ती के रिश्ते को सबसे खास माना जाता है। एक सच्चा दोस्त वही है जो मुसीबत पडने पर हमारे साथ खड़ा रहता है इसी अदभुत रिश्ते को समर्पित है फ्रेंडशिप डे ।

फ्रेंडशिप डे हर साल अगस्त के पहले रविवार को मनाया जाता है । दोस्ती के अनमोल रिश्ते को द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने अच्छे तरीके से बयां किया है । भगवान कृष्ण और सुदामा की दोस्ती एक मिसाल है जिसका पूरी दुनिया आज भी गुणगान करती है । बिना सही और गलत की परवाह करते हुए महाभारत में दुर्योधन के पक्ष में युद्ध करके कर्ण ने अपनी सच्ची दोस्ती का परमाण दिया था।

अपने आंसुओं से धोए थे श्री कृष्ण ने मित्र सुदामा के पैर
श्री कृष्ण और सुदामा की सच्ची दोस्ती के किस्से तो आपने सुने ही होंगें । कृष्ण और सुदामा बचपन के मित्र थे लेकिन 11 साल की उम्र में कृष्ण को वृन्दावन छोड़कर मथुरा जाना पड़ा जिस वजह से दोनों बिछड़ गए । जहां श्री कृष्ण अपना राजपाठ संभालने में व्यस्त थे, वहीं सुदामा अपनी गरीबी से जूझ रहे थे लेकिन उन्होंने कृष्ण से मदद नहीं मांगी। आर्थिक स्थिति खराब होने की वजह से उनकी पत्नी ने जिद्द की और श्री कृष्ण से मदद मागंने को कहा।

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सुदामा इस बात से चिंतित थे कि जब वह सालों बाद अपने मित्र से मिलेंगे तो उसके पास कृष्ण को देने के लिए भेंट के रुप में कुछ भी नहीं होगा, इस बात को समझते हुए सुदामा की पत्नी पड़ोस के घर से कुछ मुट्ठी चावल मांगकर लाई और सुदामा को दे दिए । जब सुदामा नंगे पैर और फटी धोती पहनकर कृष्ण के महल पहुंचा और द्वारपाल से कहा कि वह केशव के मित्र हैं तो हर कोई उनपर हंसने लगा, लेकिन किसी बात की परवाह न करते हुए सुदामा ने द्वारपाल से अपना संदेश श्रीकृष्ण तक पहुंचाने की विनती की।

द्वारपाल का संदेश सुनते ही कृष्ण समझ गए कि उनका बालपन का मित्र उनसे मिलने आया है। सुदामा को देखते ही कृष्ण ने उन्हें गले से लगाया और अपने महल ले गए । जब कृष्ण सुदामा के पैर स्वयं अपने हाथों से धोए तो पैरों में चुभे कांटों को देखकर उनकी आंखो से आंसु आ गए ।

कर्ण ने दिया था हर अच्छे-बुरे काम में दुर्योधन का साथ

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सुत पुत्र होने की वजह से हमेशा ही कर्ण को लज्जित होना पड़ता था। एक बार जब कौरवो और पाड़व पुत्रों के बीच विद्या प्रदर्शन की प्रतियोगिता हुई तो कर्ण ने भी उसमें भाग लेना चाहा। लेकिन कृपाचार्य ने उसे अपने वंश का खुलासा करने की चुनौती दी तब भीम ने कर्ण पर अपने तीखे शब्दों के बाण चलाएं और उसे सुत पुत्र कहा लेकिन दुर्योधन के लिए ये मान्य नहीं था कि कर्ण मात्र एक सारथी का पुत्र था।

उसने कर्ण को अंग देश का राजा घोषित किया और जीवनभर के लिए मित्र बना लिया। कर्ण महाभारत का वो किरदार था जिसने ये जानते हुए भी की दुर्येोधन गलत है फिर अपनी दोस्ती निभाते हुए दुर्योधन का साथ दिया।