हिंदू धर्म में Pitrpaksh को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि यह दिवंगत पूर्वजों के सम्मान का प्रतीक है। यह 16 दिनों तक चलता है और लोग इस दौरान अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए कई तरह के अनुष्ठान करते हैं। इस दौरान लोग दिवंगत लोगों को शांति और मोक्ष दिलाने के लिए पिंडदान करते हैं।
पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार जब महाभारत युद्ध के दौरान योद्धा राजा कर्ण की मृत्यु हो गई और उनकी आत्मा स्वर्ग में चढ़ गई, तो उन्हें भोजन के बजाय गहने और सोने का भोजन दिया गया। तब उन्होंने स्वर्ग के स्वामी इंद्र को संबोधित किया और उनसे पूछा कि उन्हें असली भोजन क्यों नहीं मिल रहा है। इंद्र देवता ने तब उन्हें बताया था क्योंकि उन्होंने इन वस्तुओं को अपने पूरे जीवन दान के रूप में दिया था , लेकिन अपने पूर्वजों को कभी भी भोजन दान नहीं किया।
जिस पर कर्ण ने उत्तर दिया कि वह अपने पूर्वजों से अवगत नहीं था। इस तर्क को सुनकर, इंद्र पंद्रह दिन की अवधि के लिए कर्ण को पृथ्वी पर वापस जाने के लिए सहमत हुए ताकि वह अपने पूर्वजों की स्मृति में भोजन बना सके और दान कर सके। समय की अवधि जिसे अब पितृपक्ष के रूप में जाना जाता है।
इस दिन से शुरू है पितृपक्ष
इस साल पितृपक्ष 17 सितंबर को भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से शुरू होगे और 2 अक्तूबर को आश्विन अमावस्या को समाप्त होगे। पितृपक्ष में लोग पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और अन्य धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। लोग अपने पूर्वजों की तृप्ति के लिए भोजन और जल अर्पित करते हैं। ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं। उन्हें दान-दक्षिणा देकर पितरों की आत्मा की शांति की प्रार्थना करते हैं।
यह भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से लेकर अश्विन महीने के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि तक रहता है। पितृपक्ष के दौरान शुभ व मांगलिक कार्य जैस कि शादी- विवाह, सगाई, गृह प्रवेश, मुंडन या नई चीजों की खरीदारी भी नहीं करनी चाहिए। इसमें केवन पितरों का श्राद्ध करने की परंपरा है। पितृपक्ष में तिथि अनुसार ही पितृों का श्राद्ध किया जाता है।