भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को Ganesh चतुर्थी का त्यौहार मनाया जाता है। भगवान गणेश को मोदक का भोग लगाना एक प्राचीन परंपरा है। भगवान गेणेश की पूजा मोदक के बिना अधूरी मानी जाता है। भगवान गणेश को मोदक बहुत प्रिय हैं। ये बात तो सभी जानते हैं कि गणपति जी को भले ही छप्पन व्यंजन का भोग लगा दिया जाए लेकिन बिना मोदक के वह प्रसन्न नहीं होते हैं। यही वजह है कि गणेश जी की पूजा में मोदक का भोग अर्पित किया जाता है। गणेश जी को मोदक इतने पसंद क्यों है और उन्हें 21 मोदक का भोग क्यों लगाया जाता है। आइए जानते है कि इसके पीछे कौन सी पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई है।
पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार जब भगवान शिव, देवी पार्वती और भगवान गणेश जंगल में ऋषि अत्रि की पत्नी देवी अनुसूइया से घर गए थे। यहां पहुंचते ही भगवान शिव और गणेश को भूख लगने लगी, जिसके बाद उन्होंने सभी के लिए भोजन का प्रबंध किया है। खाना खाने के बाद देवी पार्वती और भगवान शिव की भूख शांत हो गई, लेकिन गणपति बप्पा का पेट कुछ भी खाने से भर ही नहीं रहा था।
बप्पा की भूख शांत कराने के लिए अनुसूया ने उन्हें सभी प्रकार के व्यंजन खिलाए, लेकिन उनकी भूख शांत ही नहीं हुई। गणेश जी की भूख शांत नहीं होने पर देवी अनुसूइया ने सोचा कि शायद कुछ मीठ उनका पेट भरने में मदद कर सकता है। जिसके बाद उन्होंने गणेश जी को मिठाई का एक टुकड़ा दिया और उसे खाते ही गणपति बप्पा को डकार आ गई और उनकी भूख शांत हुई। गणेश जी भूख शांत होते ही भगवान शिव ने भी 21 बार डकार ली और उनकी भूख शांत हो गई। तभी से भगवान गणेश पर 21 मोदक चढ़ाने की परंपरा है।
दूसरी कथा
इससे सम्बंधित दूसरी कथा भी है। एक बार भगवान शिव सो रहे थे और गणेश जी द्वार पर पहरा दे रहे थे। तभी परशुराम वहां पहुंचे तो गणेश जी ने उन्हें द्वार पर रोक दिया। परशुराम क्रोधित हो गए और गणेश जी से युद्ध करने लगे। युद्ध में परशुराम ने शिव जी द्वारा दिए गए परशु से गणेश जी पर प्रहार कर दिया, जिससे गणेश जी का एक दांत टूट गया।
युद्ध के दौरान दांत टूटने की वजह से गणेश जी को भोजन चबाने में परेशानी होने लगी। बप्पा की ऐसी स्थिति को देखकर माता पार्वती ने उनके लिए मुलायम से मोदक बनाए। गणेश जी को मोदक बहुत पसंद आए और उन्होंने पेट भर कर मोदक खाए। जिसके बाद से ही मोदक गणेश जी का प्रिय व्यंजन बन गया।