सनातन संस्कृति में विवाह को अत्यंत पवित्र बंधन माना गया है, जिसमें विभिन्न रस्मों का विशेष महत्व होता है। इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण रस्म है जयमाला। विवाह के दौरान वर-वधु एक-दूसरे को फूलों की माला पहनाते हैं, जिसे शादी का अभिन्न हिस्सा माना जाता है। आइए जानते हैं जयमाला पहनाने की परंपरा की शुरुआत और इसके महत्व के बारे में।
कैसे हुई जयमाला की परंपरा की शुरुआत?
जयमाला की रस्म का उल्लेख पौराणिक कथाओं और ग्रंथों में मिलता है।

- रामायण की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, स्वयंवर के दौरान भगवान श्रीराम ने शिवजी के धनुष को तोड़ा था। इस अद्भुत पराक्रम के बाद माता सीता ने श्रीराम को वरमाला पहनाकर अपना जीवनसाथी स्वीकार किया। माना जाता है कि उसी समय से जयमाला की रस्म की शुरुआत हुई। - समुद्र मंथन की कथा
दूसरी कथा के अनुसार, सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु जब सृष्टि के कार्यों में व्यस्त थे, उस समय धन की देवी लक्ष्मी समुद्र में विलीन हो गईं। विष्णुजी ने समुद्र मंथन के जरिए देवी लक्ष्मी को पुनः प्राप्त किया। समुद्र मंथन के बाद देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को फूलों की माला पहनाई और उन्हें अपना जीवनसाथी स्वीकार किया।
जयमाला का महत्व
जयमाला पहनाने का अर्थ है कि वर और वधु एक-दूसरे को अपने जीवनसाथी के रूप में स्वीकार करते हैं। यह रस्म परिवार, मित्रों और समाज के सामने निभाई जाती है, जहां वर-वधु को उनके नए जीवन की शुरुआत के लिए शुभकामनाएं दी जाती हैं।
कैसी होती है जयमाला?

जयमाला आमतौर पर विभिन्न प्रकार के फूलों से बनाई जाती है।
- फूलों का महत्व: फूल सौंदर्य, प्रेम और सौभाग्य का प्रतीक माने जाते हैं।
- आकर्षक डिजाइन: जयमाला में गुलाब, गेंदा, चमेली और अन्य सुगंधित फूलों का उपयोग किया जाता है।
समारोह का विशेष आयोजन
जयमाला रस्म के लिए विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है, जहां दूल्हा-दुल्हन माला पहनाकर एक-दूसरे को जीवनभर साथ निभाने का वचन देते हैं।
जयमाला सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति में विवाह का प्रतीक है। यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है और इसे सौभाग्य और प्रेम का प्रतीक माना जाता है।