हिंदू धर्म में Vivaah का विशेष महत्व है, जिसमें कई रस्मों का पालन किया जाता है। इन रस्मों में सिंदूरदान भी महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह पति-पत्नी के एक होने का प्रतीक है। सिंदूर को सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है, जिससे दूल्हा और दुल्हन के जीवन में खुशहाली बनी रहती है।
ज्योतिषी और वास्तु सलाहकार पंडित के अनुसार, सिंदूरदान का उद्देश्य दूल्हा और दुल्हन के रिश्ते को मजबूत करना और पति की लंबी उम्र की कामना है।
कुंवारी कन्या क्यों नहीं देखती सिंदूरदान की रस्म?
मान्यता और धार्मिक कारण:
- सिंदूरदान रस्म का महत्व:
सिंदूरदान एक पवित्र रस्म है, जिसमें दूल्हा अपनी दुल्हन की मांग में 3, 5 या 7 बार सिंदूर भरता है। इसे देवी-देवता भी देखते हैं, जो नए दंपति के जीवन की शुरुआत का साक्षी होते हैं। - वर्जना का कारण:
बिहार में कुंवारी कन्याओं के लिए सिंदूरदान देखना वर्जित है। पंडित शर्मा बताते हैं कि जब सिंदूरदान की रस्म पूरी होती है, तो इसके साक्षी देवी-देवता होते हैं और यह उनकी कृपा से संपन्न होता है। अगर कोई कुंवारी कन्या इसे देखती है, तो दुल्हन को इस रस्म का पूर्ण फल प्राप्त नहीं हो पाता है। - धार्मिक मान्यता:
सिंदूरदान का प्रभाव तभी पूर्ण होता है जब केवल दूल्हा और दुल्हन इस रस्म का हिस्सा हों। अगर कोई कुंवारी कन्या देखती है, तो इसका नकारात्मक प्रभाव हो सकता है, जिससे वधु को पूर्ण रूप से लाभ नहीं मिल पाता।
इसलिए, कुंवारी कन्याओं को सिंदूरदान रस्म देखने की मनाही की जाती है ताकि दूल्हा-दुल्हन का नया जीवन पूरी तरह से शुभ हो सके।