हिंदु धर्म में Navratri का विशेष महत्व है। नवरात्रि के दौरान माता दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। इन नौ दिनों के दौरान मां पृथ्वी पर ही निवास करती है और अपने भक्तों के कष्टों को दूर करती है, साथ ही सुख-समृद्धि, धन-संपदा का आशीर्वाद देती है।
Navratri में मां दुर्गा के छठे स्वरूप यानि की मां कात्यायनी की पूजा की जाता है। माता कात्यायनी सिंह की सवारी करती हैं और इनकी 4 भुजाएं हैं। कहते हैं जो व्यक्ति सच्चे मन से माता की अराधना करता है उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।
पौराणिक कथा
पुराणों में निहित कथाओं के अनुसार ‘कत’ नाम के एक प्रसिद्ध महर्षि हुआ करते थे। उनके पुत्र का नाम ऋषि कात्य था। आगे जाकर ऋषि कात्य के गोत्र में महर्षि कात्यायन का जन्म हुआ और ऋषि अपने तप के कारण विश्व प्रसिद्ध हुए। ऋषि कात्यायन की इच्छा थी कि देवी भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें। इसलिए उन्होंने कई वर्षों तक देवी भगवती की कठोर तपस्या भी की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर देवी भगवती ने उनकी इच्छा मान ली और उनके घर पर जन्म लिया। ऋषि कात्यायन की पुत्री होने के कारण इनका नाम कात्यायनी रखा गया।
पूजा विधि
नवरात्रि के छठे दिन माता के कात्यायनी स्वरूप की पूजा के लिए सुबह नहाने के बाद साफ वस्त्र धारण कर पूजा का संकल्प लेना चाहिए। कात्यायनी देवी को पीला रंग बहुत पसंद है, इसलिए इसलिए पूजा के लिए पीले रंग का वस्त्र धारण करना शुभ होता है। मां को अक्षत, रोली, कुमकुम, पीले पुष्प, माता की चौकी लगाते हुए पीले रंग का कपड़ा और हल्वे का भोग चढ़ाएं।
मां कात्यायनी मंत्र
मां कात्यायनी की पूजा के दौरान माता का मंत्र, “चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दू लवर वाहना। कात्यायनी शुभं दद्या देवी दानव घातिनि”का जाप अवश्य करें। इस मन्त्र का अर्थ है कि, ‘शेर पर सवार, दानवों का नाश करने वाली देवी कात्ययानी हम सब के लिए शुभदायी हो।