हरियाणा के झज्जर जिले का रहने वाला अभय सिंह, जिसे प्रयागराज महाकुंभ में ‘IIT बाबा’ के नाम से पहचाना जाने लगा, इस उपाधि से परेशान हो गया है। अभय ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा कि वह इस तरह की पॉपुलैरिटी नहीं चाहता। उसका कहना है, “मेरे कैरेक्टर पर सवाल उठाए जा रहे हैं। जिस माया को छोड़कर मैं घर से निकला था, उसी से मुझे जोड़ दिया गया।”
IIT का सफर छोड़ अध्यात्म की राह

अभय सिंह ने IIT बॉम्बे से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की थी। फिर कनाडा में दो साल तक नौकरी की। लेकिन कोरोना महामारी के दौरान वह भारत लौट आया। अध्यात्म की ओर झुकाव ने उसकी ज़िंदगी बदल दी, और 11 महीने पहले वह सबकुछ छोड़कर चला गया। छह महीने पहले उसने परिवार से भी संपर्क तोड़ दिया।
IIT बाबा का टैग बना मुसीबत

अभय सिंह का कहना है, “मैंने कभी खुद को IIT से नहीं जोड़ा, यह मेरी बहन कहती थी। आज इस टैग ने मेरी जिंदगी को मुश्किल बना दिया है। मैं तो बस अपनी जिंदगी जीना चाहता हूं।” महाकुंभ में अपनी मौजूदगी पर उन्होंने कहा कि यहां ‘IIT बाबा’ कोई मुख्य विषय नहीं है। महाकुंभ की असली खूबसूरती इसके संगठन और समर्पण में है।
महाकुंभ की अच्छाई और अध्यात्म का संदेश
अभय ने महाकुंभ के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा, “यह आयोजन न सिर्फ अध्यात्म का संगम है, बल्कि यहां लोगों की श्रद्धा और त्याग को भी महसूस किया जा सकता है। गरीब लोग रोटियां बांधकर ठंड में यहां आते हैं।” उन्होंने संतों की एकता पर सवाल उठाते हुए कहा, “अध्यात्म में बड़ा और छोटा अखाड़ा नहीं होना चाहिए। यह ज्ञान का आदान-प्रदान करने का मंच होना चाहिए।”

परिवार और जीवन का दर्द
इंटरव्यू के दौरान, अभय अपने परिवार की स्थिति पर बात करते हुए फफक-फफक कर रो पड़े। उन्होंने अपनी बहन की परेशानियों और माता-पिता के बीच के व्यवहार पर गहरा दुख व्यक्त किया। उन्होंने कहा, “जब मुझे कोई नहीं जानता था, तब भी मैं ऐसे ही रोता था। मैं किसी से कुछ नहीं चाहता, बस अपनी जिंदगी जीना चाहता हूं।”