हरियाणा में सोनीपत के गांव हरसाना कलां के प्रगतिशील किसान रामपाल एक ही खेत में डबल खेती कर डबल मुनाफा बटोर रहे हैं। साथ ही सरकार की सब्सिडी का भी पूरा फायदा उठा रहे हैं। किसान रामपाल जहर मुक्त खेती के साथ-साथ नींबू की बागवानी खेती कर रहे हैं। आधुनिक और जहर मुक्त खेती का ऐसा परिणाम सामने आया है कि आज रामपाल को अपनी फसल बाजार में बेचने के लिए भी चिंता नहीं करनी पड़ रही है। साथ ही उनके खेत में उगी हुई सब्जियां लोगों के स्वास्थ्य के लिए संजीवनी बूटी साबित हो रही है।
प्रदेश की मनोहर सरकार जहां किसानों को धान की खेती छोड़कर अन्य फसल उगाने के लिए प्रोत्साहन राशि दे रही है तो वहीं जहर मुक्त खेती करने वाले किसानों को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है। गांव हरसाना कलां के किसान रामपाल सरकार की दोनों नीतियों पर खरा उतरने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं। रामपाल पहले धान और ज्यादा अपनी खपत वाली फसलें उगाते थे। उन्होंने बताया कि धान की खेती में 20 से 25000 रुपये का खर्च होता था। अनाज मंडी में 40 से 45000 रुपये में ही वह फसल को बेच पाते थे। ऐसे में उन्हें जहां 15 से 20000 रुपये का ही मुनाफा मिलता था तो पानी की खपत भी ज्यादा हो रही थी। आधुनिकता के इस दौर में जहां लोग इस बात की चिंता करते हैं कि उन्हें सब्जियां जहर मुक्त मिले। एक ऐसे ही किसान के रूप में आज रामपाल अपनी सकारात्मक भूमिका समाज में बना चुके हैं।
सरकार की दोनों योजनाओं ने बनाया किसान को मालामाल
किसान रामपाल ने विचार करने के बाद सरकार की योजना मेरा पानी मेरी विरासत को अपनाने का निर्णय लिया। उन्होंने यह भी फैसला किया कि जहां लोग आज हरी सब्जियां खाकर भी स्वस्थ नहीं रह पाते, इसीलिए उन्होंने लोगों के स्वास्थ्य के साथ-साथ अपने परिवार के सदस्यों के प्रति भी चिंता जाहिर की। इसी के चलते रामपाल ने जहर मुक्त खेती को अपना लिया। रामपाल का कहना है कि उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि सरकार की दोनों योजना उन्हें मालामाल कर देगी। वहीं आज रामपाल एक प्रगतिशील किसान के रूप में आसपास के किसानों के लिए प्रेरणा बने हुए हैं। बाजार के साथ स्थानीय लोग भी उनकी फसल खरीद का केंद्र बने हुए हैं।

पहले आधुनिक खेती से अपरिचित था किसान और उसका परिवार
साधारण किसानी के रूप में काम करने वाले रामपाल और उसका परिवार पहले आधुनिक खेती से दूर-दूर तक भी परिचित नहीं था। उधर सरकार लोगों के स्वास्थ्य को लेकर चिंता जाहिर कर रही है। जिसका मूल स्रोत कृषि माना जाता है। कहते हैं कि जैसा खाओगे अन्न वैसा रहेगा मन, यह कहावत बिल्कुल सटीक बैठती है और रामपाल लोगों के स्वास्थ्य के लिए किसी संजीवनी बूटी से कम काम नहीं कर रहे हैं। रामपाल ने बताया कि पहले खेती में लागत ज्यादा रहती थी और मुनाफा कम मिलता था, लेकिन कई सालों से उन्होंने बागवानी और जहर मुक्त खेती को अपनाया है। तब से ही लगातार बागवानी और जहर मुक्त खेती कर रहे हैं।
नीचे नींबू से मुनाफा और ऊपर घीया की बेल से लाभ
रामपाल का कहना है कि उन्होंने अपने खेत में कई साल पहले नींबू के 400 पौधे लगाए थे। शुरुआती तौर पर एक पौधे की कीमत 120 रुपये आई थी। करीबन 48000 रुपये पौधे लगाकर खर्च आया था। इसके बाद किसान ने पलट कर नहीं देखा और उन्हें पहले ही साल में करीब 95 हजार रुपये की आमदनी हुई। वहीं अब किसान प्रति वर्ष 2 से 3 लाख रुपये नींबू बागवानी से मुनाफे के रूप में कमा रहा है। वहीं नींबू की खेती के साथ खेत में बांस के सहारे घीया की सब्जी की बेल लगाई हुई हैं। पूरे खेत में घीया की फसल जमीन की बजाय बांस के सहारे ऊपर लटकी रहती है। इससे किसान को डबल मुनाफा हो रहा है जहां एक तरफ नींबू की खेती उसे प्रतिवर्ष लाखों का मुनाफा दे रही है, तो वही जहर मुक्त खेती के रूप में बेल वाली सब्जियों की अच्छी पैदावार ले रहे हैं।

फसल बेचने के लिए नहीं करनी पड़ रही जद्दोजहद
किसान रामपाल का कहना है कि जमीन पर पड़ी घीया की फसल के रेट की तुलना में उसकी घीया की फसल दोगुनी रेट ले रही है। फसल को बेचने के लिए उन्हें ज्यादा जद्दोजहद करने की जरूरत भी नहीं पड़ रही है। उनके खेत से खरीदी गई घीया की जो अपने घर में सब्जी बना लेता है तो वह सब्जी का स्वाद कभी भूल नहीं पाता। उन्होंने कहा कि वह अपने खेत में ऑर्गेनिक खेती कर रहे हैं। जिसमें किसी भी प्रकार का कोई पेस्टिसाइड खाद का प्रयोग नहीं किया जा रहा है।
खेती के अनुभव समझने और सुनने के लिए पहुंच रहे किसान
किसान का कहना है कि केंचुए से तैयार देसी खाद का प्रयोग उन्हें इतना रास आ रहा है कि उन्होंने रासायनिक खाद का प्रयोग कब किया होगा, उन्हें खुद याद नहीं है। यही एक वजह है कि जहर मुक्त खेती से जहां लोगों के स्वास्थ्य पर नेगेटिव प्रभाव नहीं पड़ता, वहीं बाजार में उनकी सब्जियों की डिमांड बहुत ज्यादा रहती है। रामपाल ने बताया कि उन्हें प्रदेश सरकार की ओर से चलाई गई विभिन्न योजना के तहत एक अच्छी सब्सिडी भी मिल रही है। जहर मुक्त खेती उसके लिए किसी वरदान से कम नहीं है। आज दूरदराज से भी लोग उसके खेत में पहुंचकर खेती के अनुभव को समझने और सुनने के लिए पहुंचते हैं।