Mahabharata Ki Katha : महाभारत में कर्ण को ऐसा योद्धा माना जाता है , जो अपने अद्भुत गुणों के कारण महान बन गया। कर्ण ने पांडव होकर भी कौरवों का साथ दिया। कर्ण के व्यक्तित्व की बात करें, तो कर्ण के कुंडल और कवच उनके पराक्रम का विशेष हिस्सा थे। कवच और कुंडल के कारण ही कर्ण को कभी कोई योद्धा हरा नहीं सकता था।
महाभारत के युद्ध में कुंडल और कवच के साथ कर्ण को मार पाना लगभग अंसभव ही था। श्रीकृष्ण यह बात जानते थे इसलिए उन्होंने देवराज इंद्र को कर्ण से कुंडल और कवच को प्राप्त करने के लिए भेजा था। आइए, जानते हैं कर्ण के कुंडल और कवच में ऐसी कौन-सी शक्तियां थीं, जो उनकी रक्षा करती थी।
पूर्वजन्म में भी कर्ण के पास थे कवच-कुंडल
कर्ण अपने पूर्वजन्म में दंभोद्भवा को 100 कुंडल कवच प्रदान किए थे। यह कवच अभेद्य था। सूर्यदेव ने वरदान दिया था। इस वरदान के अनुसार कवच तोड़ने वाले की मृत्यु हो जाएगी। पूर्वजन्म में कृष्ण और अर्जुन के अंशावतार नर-नारायण ने कर्ण के 99 कवच और कुंडल तोड़ दिए थे लेकिन एक कवच और कुंडल बचे रह गए थे, जिस कारण से अगले जन्म में कर्ण ने इसी कुंडल और कवच के साथ जन्म लिया था।
कर्ण के कवच में क्या शक्ति थी
महाभारत की कथा के अनुसार कर्ण का कवच एक ऐसा शस्त्र था जिसे भेद पाना किसी के बस की बात नहीं थी। यह कवच एक ऊर्जा थी जो कर्ण के साथ अदृश्य रुप में रहा करती थी। इस सुरक्षा कवच पर किसी भी अस्त्र से कोई प्रभाव नहीं पड़ता था। कोई अस्त्र कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो लेकिन कर्ण के इस कवच को भेद नहीं पाता था। सूर्यदेव के भेंट किए हुए कवच के सामने दिव्यास्त्र तक धराशयी हो जाते थे।
कर्ण के कुंडल में क्या शक्ति थी
कर्ण के कुंडल सुर्य के समान चमकते थे। कुंडल में संचित दिव्य ऊर्जा कर्ण की शक्तियों और पराक्रम को बढ़ाते थे। कुंडल में इतनी शक्ति थी, जिससे कर्ण बड़े से बड़े योद्धा के सामने भी परास्त नहीं हो पाते थे। कर्ण के कुंडल उनके अंदर की ऊर्जा को बहुंत ही दिव्य बना देते थे जिससे वे बड़ी से बड़ी चुनौती से भी नहीं घबराते थे। एक योद्धा के लिए उसका आत्मबल सबसे बड़ी शक्ति है, जिससे योद्धा रणभूमि पर एक साथ कई योद्धाओं को परास्त कर सकता था।
देवराज इंद्र ने छल से प्राप्त कर लिए थे कर्ण के कवच-कुंडल
कवच कुंडल के रहते कर्ण को परास्थ नहीं किया जा सकता था। श्रीकृष्ण कर्ण की मृत्यु का रहस्य जानते थे। पूर्वजन्म के नर-नारायण ने अर्जुन और कृष्ण के रुम में जन्म लिया। उन्होंने इंद्रदेव से कर्ण के कवच-कुंडल मांगने को कहा। इंद्रदेव ने ऋृषि का वेश बनाकर कर्ण से दान मांगा। कर्ण ने कवच-कुंडल दान कर दिए। इस तरह कर्ण की शक्तियां चली गईं और अर्जुन के लिए कर्म को मारना आसान हो गया।