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नशा विरोधी साइकिल यात्रा में कागजाें में खिला दिए 35 हजार के लड्डू, प्रधान सस्‍पेंड

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नशा विरोधी साइकिल यात्रा में फर्जी बिल पर फतेहाबाद की सरपंच सस्पेंड
35 हजार के लड्डू, टैंट और वकील फीस में गड़बड़ी की जांच में पुष्टि
सरपंच ने आरोपों को गलत बताते हुए कार्रवाई को पक्षपातपूर्ण कहा


फतेहाबाद जिले में नशा विरोधी साइकिल यात्रा की आड़ में ग्राम पंचायत फंड में घोटाला करने के आरोप ने एक बार फिर सुर्खियां बटोरी हैं। भूना खंड के गांव बुवान की सरपंच परमजीत कौर को डीसी मनदीप कौर ने वित्तीय अनियमितताओं के चलते सस्पेंड कर दिया है।

यह पहला मौका नहीं है जब परमजीत कौर को निलंबन का सामना करना पड़ा हो। इससे पहले भी उन्हें निलंबित किया गया था, लेकिन 15 दिन बाद बहाल कर दिया गया था। इस बार 35 हजार रुपए के लड्डू, टैंट हाउस और वकील की मनमानी फीस का फर्जी बिल कार्रवाई का कारण बना।

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गौरतलब है कि 27 जनवरी 2025 को आयोजित समाधान शिविर में ग्रामीण लखा राम और जैकी कंबोज ने सरपंच के खिलाफ विस्तृत शिकायत दर्ज करवाई थी। इसके बाद डीडीपीओ कार्यालय ने जांच की, जिसमें आरोपों की पुष्टि हुई। जांच पूरी होने पर 11 अप्रैल को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया तथा 14 मई को व्यक्तिगत सुनवाई का मौका भी दिया गया। लेकिन संतोषजनक जवाब या दस्तावेज पेश नहीं किए गए।

तीन बड़ी वित्तीय गड़बड़ियों की रिपोर्ट में पुष्टि हुई—
1️⃣ टैंट हाउस का फर्जी बिल: शपथ ग्रहण समारोह के लिए 4,625 रुपए का भुगतान दिखाया गया, लेकिन जांच में यह फर्जी पाया गया।
2️⃣ वकील की मनमानी फीस: जनवरी 2024 में दो केसों में वकीलों को 18,000 और 22,000 रुपए दिए गए, जबकि यह राशि सरकार द्वारा तय सीमा से काफी ज्यादा थी।
3️⃣ नशा विरोधी साइकिल यात्रा में लड्डू का बिल: साइकिल यात्रा में 35,000 रुपए के लड्डू का बिल दिखाया गया, लेकिन न तो खर्च का प्रमाण मिल सका, न ही इसे नियमों के अनुरूप पाया गया।

सरपंच परमजीत कौर ने सभी आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि उन्होंने कोई वित्तीय गड़बड़ी नहीं की। उनके मुताबिक साइकिल यात्रा में सैकड़ों लोगों व अधिकारियों के जलपान का प्रबंध हुआ था और सभी पेमेंट चेक के माध्यम से की गई है। उन्होंने कार्रवाई को गलत करार देते हुए कहा कि यह प्रशासन का पक्षपातपूर्ण रवैया है।

फिलहाल प्रशासन ने मामले की रिपोर्ट पंचायत विभाग को भेज दी है और आगे की प्रक्रिया जारी है। यह मामला एक बार फिर ग्राम पंचायतों में पारदर्शिता की कमी और सरकारी फंड की मनमानी खर्च पर सवाल खड़े कर रहा है।