कल्पना चावला: अपनी पहली ही यात्रा के दौरान अंतरिक्ष में बिताए 372 घंटे, बनी अंतरिक्ष में जाने वाली भारत की वंडर वुमैन

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कल्पना चावला एक ऐसा नाम है जो युवाओं के लिए एक प्रेरणा है जो अपने सपनों को नई उड़ान देना चाहते हैं। 19 नवंबर,1997 में कल्पना के सपने ने भी पहली उड़ान भरी जो 5 दिसंबर,1997 को पूरी हुई।

अपनी इस यात्रा के दौरान कल्पना नें पृथ्वी के 272 चक्कर, 372 घंटों में पूरे किए। इसी के साथ कल्पना ने देश के नाम नया इतिहास रच दिया और वह अंतरिक्ष में जाने वाली भारत की पहली बनी जिसने पूरे विश्व में देश का नाम रोशन किया।

मोंटू से कल्पना बनने तक का सफ़र

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भारत का नाम अंतरिक्ष में चमकाने वाली कल्पना का जन्म हरियाणा के छोटे से जिले करनाल के मध्यम वर्ग के परिवार में 17 मार्च 1962 को पिता बनारसी लाल चावला के घर हुआ। उनकी माता जी का नाम संज्योति चावला था। कल्पना का बचपन अपने भाई संजय और बहनें सुनीता, दीपा के साथ बीता। कल्पना अपने भाई-बहनों में सबसे छोटी होने के कारण घर में सभी की लाड़ली थीं। 

कम ही लोग जानते हैं कि कल्पना के जन्म के बाद का नाम मोंटू था। उनके माता-पिता उनको मोंटू के नाम से बुलाते थे। लेकिन मात्र 3 साल की उम्र में मोंटू ने अपने लिए कल्पना नाम चुना। तब से मोंटू उनका निकनेम रह गया।

शुरुआती शिक्षा और सपने

कल्पना की रुचि बचपन से ही पढ़ाई में थी। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा करनाल के टैगोर बाल निकेतन सीनियर सेकेंड़री स्कूल से पूरी की। शुरु से ही कल्पना का मनपसंद विषय विज्ञान था।

कल्पना के पिता चाहते थे कि वह एक अध्यापिका बने, लेकिन कल्पना अंतरिक्ष में यात्रा के सपने लेती थी। अपने सपने को पूरा करने के लिए उसने फ्लाइट इंजीनियर बनने के लिए पंजाब के एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लिया और सन् 1982 में अपनी सनात्तक की शिक्षा पूरी की।

अमेरिका से की मास्टर डिग्री हासिल

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मात्र 20 साल की उम्र में आगे की शिक्षा के लिए उन्होंने अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास से दो सालों में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर्स डिग्री हासिल की और अपने सपने के एक कदम और करीब आ गईं।

साल 1986 में कल्पना ने दूसरी मास्टर्स डिग्री हासिल की और 1988 में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में पीएचडी की पढ़ाई पूरी की। पीएचड़ी के बाद उन्हें कमर्शियल पायलट का लाइसेंस मिला और इसी के साथ कल्पना सर्टिफाइड फ्लाइट इंस्ट्रक्टर बनी। 

किसे चुना कल्पना ने अपना जीवन-साथी

अपनी पढ़ाई के दौरान कल्पना ने अपना जीवन साथी फ्रांस के रहने वाले जीन पीअरे हैरिसन को चुना। हैरिसन भी अमेरीका में फ्लाईट इंस्ट्रकटर के तौर पर काम करते थे। दोस्ती से शुरु हुआ कल्पना-हैरिसन का रिश्ता 1983 में शादी के बंधन में बंधा।  

भारतीय वंड़र वुमैन की पहली उड़ान

कल्पना चावला ने मिशन स्पेशलिस्ट और प्राइमरी रोबोटिक आर्म ऑपरेटर के रूप में पहली बार 1997 में आउटर स्पेस के लिए एसटीएस-87 कोलंबिया शटल से अपनी पहली उड़ान भरी।

कल्पना की उड़ान ने भारत के लिए नया इतिहास रच दिया। अपनी इस यात्रा के दौरान कल्पना नें पृथ्वी के 272 चक्कर, 372 घंटों में पूरे किए। पहली उड़ान की सफलता के बाद नासा का कल्पना पर विश्वास बढ़ता चला गया।

कल्पना की दूसरी और अंतिम उड़ान

साल 2000 में कल्पना को दूसरी बार स्पेस यात्रा के लिए चुना गया। इस मिशन के दौरान काफी अटकलें आईं। फिर इस मिशन को 2003 में लांच किया गया। 16 जनवरी 2003 को कोलंबिया फ्लाइट STS 107 से दूसरे मिशन की शुरुआत हुई। यह मिशन 16 दिन तक चला।

उनकी दूसरी उड़ान को देखने उनके माता पिता और उनकी दोनों बहने भी भारत से अमेरिका गए थे और वहां पर उसकी वापसी का इन्तजार कर रहे थे पर वक़्त को कुछ और मंजूर था। कल्पना वापस नहीं आई वह कल्पनाओं में ही खो गयी।

इस मिशन के दौरान उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर कई परिक्षण किए लेकिन 1 फरवरी 2003 को कोलंबिया अंतरिक्ष यान पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश करते ही टूट गया। इस मिशन में शामिल 7 लोगों की मौत हो गई। कल्पना भी इसी मिशन के बाद दुनिया को अलविदा कह गईं।

मंगल ग्रह की एक पहाड़ी को दिया कल्पना का नाम

नासा ने मंगल ग्रह में सात पहाड़ियों का नाम स्पेस शटल कोलंबिया के 7 अंतरिक्ष यात्रियों के नाम पर रखा है जिनमें भारतीय मूल की अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला का भी नाम है।

जन्म

17 मार्च, 1962 (करनाल, हरियाणा)
पिता
पिताश्री बनारसी लाल चावला 
मातासंज्योती देवी
निकनेममोंटू
राष्ट्रीयतासंयुक्त राज्य अमरीका
भारत
मिशनएसटीएस-87
एसटीएस-107
पुरस्कार
मरणोपरांत:
*काँग्रेशनल अंतरिक्ष पदक के सम्मान
*नासा अंतरिक्ष उड़ान पदक
*नासा विशिष्ट सेवा पदक