Shri Shyam Phalgun Festival

Shri Shyam Phalgun Festival : फाल्गुन शुक्ला द्वादशी को हुआ शीश का दान, चुलकाना में वीर बर्बरीक से बन गए बाबा श्याम

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(समालखा से अशोक शर्मा की रिपोर्ट) पानीपत के खंड समालखा स्थित चुलकाना धाम में श्री श्याम बाबा का मंदिर विश्व विख्यात होने लगा है। देश ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालु यहां पहुंचकर हारे के सहारे के सामने नतमस्तक हो रहे हैं। चुलकाना धाम में फाल्गुन महोत्सव को लेकर अभी से मेले जैसा माहौल नजर आने लगा है। हरियाणा के विभिन्न हिस्सों से भक्त यहां पहुंच रहे हैं। वहीं हर भक्त को फाल्गुन महोत्सव के मेले का इंतजार है।

बता दें कि श्री श्याम बाबा की कथा द्वापर युग में कुरुक्षेत्र धर्म युद्ध में जुड़ी है, जो चुलकाना धाम सिद्ध पीठ पर घटित हुई थी। बताया जाता है कि द्वापर युग के अंत समय में महाभारत का युद्ध हुआ। जिसमें अनेक शक्तिशाली बलशाली योद्धाओं ने हिस्सा लिया। इनमें मोरवी और घटोत्कच के एक पुत्र बर्बरीक का नाम आज जगजाहिर है। जिन्हें श्रद्धालु बाबा श्याम या फिर हारे के सहारे के नाम से जानते हैं। इनके घोड़े का रंग नीला था, इसलिए इन्हें नीले का असवार भी कहा जाता है। बता दें कि वीर बर्बरीक के दादा का नाम भीम और दादी का नाम हिडिंबा था। महाभारत युद्ध में वीर बर्बरीक युवा अवस्था में थे। युद्ध देखने की इच्छा को मन में लिए बर्बरीक माता मोरवी और दादी हिडिंबा से आशीर्वाद लेकर चल पड़ा। इससे पहले इनकी माता ने वचन लिया कि वह महाभारत के युद्ध में हारे का सहारा बनें, क्योंकि उस दौरान मोरवी को पांडव पक्ष कमजोर नजर आया था।

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कहा जाता है कि जैसे ही बर्बरीक चुलकाना धाम की पावन धरती पर पहुंचें, तभी भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन के साथ ब्राह्मण वेश में इस तपोभूमि, भावभूमि पर पहुंचे और अपनी लीला शुरू की। बर्बरीक को रोकने के लिए श्रीकृष्ण ने श्याम-दाम, दंड, भेद सारी नीतियां अपनाई, लेकिन बर्बरीक के न मानने से भगवान श्रीकृष्ण ने ब्राहमण का अवतार लिया। जब श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से पूछा कि तुम कौन हो? तब बाबा ने विनम्रता से कहा मैं घटोत्कच का पुत्र बर्बरीक हूं। तभी श्रीकृष्ण बोलें तुम बर्बरीक नहीं हो सकते, बर्बरीक तो महादानी है, महान्यायधीश, महाबली है।

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तब बर्बरीक ने कहा कि हे ब्राह्मण देवता मुझे अपने आपको बर्बरीक सिद्ध करने के लिए क्या करना होगा। तब भगवान ने ब्राहमण अवतार में कहा कि मेरे मन की इच्छा पूर्ण होगी तो सिर्फ वीर बर्बरीक ही पूरी कर सकते हैं। तभी बर्बरीक ने पूछा कि हे भगवन मुझे इसके लिए क्या करना होगा। ब्राहमण देवता बोलें बालक मैं इस पेड़ के हर पत्ते में सुराख देखना चाहता हूं, जो सिर्फ वीर बर्बरीक ही कर सकते हैं। वीर बर्बरीक ने जैसे ही एक बाण अपने तरकश से निकाला और मस्तक पर लगाया, ठीक उसी दौरान ब्राह्मण देवता ने एक पत्ता वृक्ष से तोड़कर झट से पैर के नीचे दबा लिया। जब वीर बर्बरीक ने बाण छोड़ा तो उसने पूरी रफ्तार से वृक्ष के सभी पत्तों में छिद्र कर दिए।

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इसके बाद बाण उस ब्राहमण के पैर की तरफ आने लगा, तभी बर्बरीक ने कहा हे ब्राह्मण देवता आपने मुझे बर्बरीक सिद्ध करने के लिए अपने मन की इच्छा जाहिर की थी। मेरे बाण भी मेरी मन की इच्छानुसार ही चलते हैं। मैंने अपने बाण को आदेश दिया कि इस ब्राहमण की इच्छा पूरी करने के बाद ही मेरे पास वापस आना। मुझे और मेरे बाण को संशय है कि आपके पैर के नीचे पत्ता छिपा हुआ है, अपना पैर उठाइए। अन्यथा मेरा बाण आपके पैर को भेद देगा। जब श्रीकृष्ण ने अपने पैर को उठाया तो बाण उस पत्ते में भी छिद्र करने के बाद वापस बर्बरीक के तरकश में आ गया।

बता दें कि आज भी चुलकाना धाम में महाभारत कालीन पीपल का वृक्ष है, जिसके पत्तों में आज भी छिद्र अपने आप बनते हैं। इस दौरान अर्जुन को संशय हुआ कि कन्हैया की यह कोई लीला तो नहीं है। अगर ये योद्धा सचमुच में इतना शक्तिशाली है तो यह शत्रु को ढूंढ-ढूंढ कर मारेगा। तब भगवान मन ही मन मुस्करा रहे थे। तब ब्राहमण ने बर्बरीक से कहा कि हमें यकीन हो गया है कि आप ही बर्बरीक हो। आप ही महादानी हो, आप महाआज्ञाकारी हो और आप अकेले ही इस युद्ध को जीत सकते हो, लेकिन आपको यह बताना होगा कि आप किसकी तरफ से युद्ध लड़ोगे। तब बर्बरीक ने कहा कि जो पक्ष हार जाएगा, मैं उसकी तरफ से ही युद्ध लडूंगा।