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Karnal RR Mill मामले में गलती छिपाने के प्रयास में जुटे अधिकारी, FIR के लिए कर रहे कागजी कार्रवाई

करनाल हरियाणा

हरियाणा के करनाल में वेयर हाउस व पीएनबी बैंक के डिफाल्टर आरआर राइस मिल के संचालकों को उनके दूसरे मिल रामा राइस मिल के नाम पर सरकारी धान देने के मामले में अब अधिकारी खुद को बचाने की राह में लग गए है। शिकायत की प्रक्रिया में भी जिम्मेदार रामा व आरआर राइस मिल संचालकों को फायदा पहुंचाने से नहीं चुके, उन्हें इतना समय दे दिया, जिससे वह सरकारी धान पर्याप्त मात्रा में खरीद सके।

शिकायत कराने की यह प्रक्रिया जिम्मेदार अधिकारियों ने इसलिए शुरू की, ताकि यदि जांच हो तो वह खुद को पाक साफ दिखा सके। प्रक्रिया के पत्र आगे कर वह यह साबित कर सके कि मामला पता चलते ही कार्रवाई कर दी थी। यानी हम तो अपनी जगह ठीक है। सरकारी धान खरीद प्रक्रिया से जुड़े एक अधिकारी ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि यह एक सोची समझी साजिश का हिस्सा है, क्योंकि नियम यह है कि जो राइस मिल सरकारी धान व बैंक का डिफाल्टर हो जाता है, उसे सरकारी धान नहीं दिया जाता, उससे पहले धान की रिकवरी होती है।

डिफाल्टर मिल परिसर का कब्जा लेकर धान को बेच देता है

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बता दें कि बैंक से डिफाल्टर होने के बाद इस तरह के मिल संचालक जिम्मेदार अधिकारियों के साथ मिलकर बड़ी मात्रा में सरकारी धान ले लेते हैं। बाद में वह धान को खुद बुर्द कर देते हैं। बैंक डिफाल्टर मिल परिसर का कब्जा लेकर उसे बेच देता है। इस तरह से बैंक और सरकारी रेवेन्यू दोनों का नुकसान होता है, लेकिन फायदे में मिल संचालक रहता है।

सरकारी धान खरीद गड़बड़ी भ्रष्टाचार की बड़ी मिसाल

जानकारी अनुसार खाद्य आपूर्ति विभाग में कानूनी सलाहकार रह चुके एडवोकेट अनिल राणा ने बताया कि सरकारी धान खरीद में यह गड़बड़ी भ्रष्टाचार और अनियमितताओं की यह बड़ी मिसाल है। जिसमें खाद्य आपूर्ति विभाग के इंस्पेक्टर से लेकर खाद्य आपूर्ति विभाग के सीनियर अधिकारियों की मिलीभगत रहती है, क्योंकि उनके पास लिस्ट होती है, पता होता है कि कौन सा मिल संचालक डिफाल्टर है, किसने चावल वापस कर दिया है। इस लिस्ट को बनाते वक्त ही गड़बड़ी शुरू हो जाती है। बाद में मिल संचालकों को सरकारी खरीद एजेंसियां अलॉट कर दी जाती है। रामा राइस व आरआर राइस मिल के मामले में भी ऐसा ही हुआ है। लेकिन इसके बाद भी हैफेड कार्रवाई की बजाय रामा राइस मिल को सरकारी धान दे रहा है। हैफेड के डीएम उधम सिंह कंबोज शिकायत मिलने पर कार्रवाई की बात कर रहे हैं, जो गले से नहीं उतर रही।

मिल संचालक को जा चुके नोटिस : डीएम

क्या उन्हें नहीं पता कि किसी ने किसी स्तर पर मामले में अनियमितता है। इसे रोकने व इसकी जांच करने की दिशा में क्यों काम नहीं किया गया। एडवोकेट अनिल राणा ने बताया कि इस पूरे मामले में हैफेड के डीएम और खाद्य आपूर्ति विभाग के उन अधिकारियों व इंस्पेक्टर की जांच होनी चाहिए, जो इस मिल संचालक को सरकारी धान अलॉट करने की प्रक्रिया से जुड़े हुए हैं।इधर वेयर हाउस कॉर्पोरेशन के डीएम रोहताश ने बताया कि सरकारी धान वापस लेने के लिए मिल संचालक को दो नोटिस जा चुके है। मिल संचालक पर 5 करोड़ 55 लाख की धान की रिकवरी करनी है। नोटिसों का भी जवाब अब तक मिल संचालक द्वारा नहीं दिया गया। अब एफआईआर की प्रक्रिया चल रही है। जल्द ही डिफाल्टर मिल संचालक आरआर राइस मिल के खिलाफ मामला दर्ज करा दिया जाएगा।