(समालखा से अशोक शर्मा की रिपोर्ट)
भक्ति वह अवस्था है जो जीवन को दिव्यता और आनंद से भर देती है। यह न इच्छाओं का सौदा है, न स्वार्थ का माध्यम, बल्कि परमात्मा से गहरा जुड़ाव और निःस्वार्थ प्रेम का प्रतीक है। यह प्रेरणादायक विचार निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने समालखा स्थित संत निरंकारी आध्यात्मिक स्थल पर आयोजित ‘भक्ति पर्व समागम’ में विशाल जनसमूह को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
विशाल श्रद्धालु जनसमूह ने अनुभव किया दिव्य आनंद

इस अवसर पर सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज और निरंकारी राजपिता रमित जी के पावन सान्निध्य में श्रद्धा और भक्ति का अनुपम वातावरण था। समागम में दिल्ली, एन.सी.आर. सहित देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु भक्त शामिल हुए। सभी ने सत्संग के माध्यम से आध्यात्मिक आनंद की अनुभूति की। इस दिव्य अवसर पर परम संत सन्तोख सिंह जी और अन्य संतों के जीवन के तप, त्याग और ब्रह्मज्ञान के प्रचार-प्रसार में योगदान को भी श्रद्धा के साथ स्मरण किया गया।
सतगुरु माता जी के प्रेरणादायक प्रवचन
समागम में सतगुरु माता जी ने भक्ति की महिमा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ब्रह्मज्ञान भक्ति का वास्तविक आधार है। यह जीवन को उत्सव बना देता है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि भगवान हनुमान जी, मीराबाई और बुद्ध भगवान का भक्ति स्वरूप भले ही अलग था, लेकिन उनका मूल उद्देश्य एक था – परमात्मा से अटूट जुड़ाव।

सतगुरु माता जी ने यह भी बताया कि भक्ति का स्वरूप सेवा, सुमिरन, सत्संग और गान जैसे विभिन्न रूपों में हो सकता है, लेकिन उसमें निःस्वार्थ प्रेम और समर्पण का भाव होना चाहिए। गृहस्थ जीवन में भी भक्ति संभव है, यदि हर कार्य में परमात्मा का आभास हो।
माता सविंदर जी और राजमाता जी का जीवन उदाहरण
सतगुरु माता जी ने माता सविंदर जी और राजमाता जी के जीवन को भक्ति और समर्पण का प्रतीक बताया और उनके जीवन से प्रेरणा लेने का आह्वान किया।
निरंकारी मिशन का मूल सिद्धांत यही है कि भक्ति तभी सार्थक होती है जब हम परमात्मा के तत्व को जानें। सतगुरु माता जी के प्रवचनों ने श्रद्धालुओं को ब्रह्मज्ञान द्वारा भक्ति का वास्तविक महत्व समझने और उसे अपने जीवन में अपनाने की प्रेरणा दी।