sataguru maata sudeeksha mahaaraaj ne kiya vaarshik sant samaagam kee svaichchhik seva ka shubhaarambh

सतगुरु माता सुदीक्षा महाराज ने किया वार्षिक संत समागम की स्वैच्छिक सेवा का शुभारंभ

पानीपत बड़ी ख़बर हरियाणा

(समालखा से अशोक शर्मा की रिपोर्ट) सतगुरु माता सुदीक्षा महाराज और निरंकारी राजपिता रमित की ओर से 76वें वार्षिक निरंकारी संत समागम की स्वैच्छिक सेवा का शुभारंभ रविवार को पानीपत के समालखा स्थित संत निरंकारी आध्यात्मिक स्थल की पावन धरा पर किया गया। इस वर्ष का वार्षिक निरंकारी संत समागम का आयोजन 28, 29 और 30 को होने जा रहा है।

इससे पहले संत निरंकारी मंडल कार्यकारिणी समिति के सभी सदस्यों, केंद्रीय योजना एवं सलाहकार बोर्ड के सदस्य, सेवा दल के अधिकारी, स्वयंसेवक और दिल्ली व आसपास के क्षेत्रों के अतिरिक्त अन्य राज्यों से पहुंचे सेवादारों ने सतगुरु माता सुदीक्षा महाराज और निरंकारी राजपिता रमित का स्वागत किया।

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इस दौरान श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए सतगुरु माता सुदीक्षा महाराज ने कहा कि सेवा केवल तन से न होकर जब सच्चे मन से की जाती है, तभी वह सार्थक कहलाती है। सेवा वही सर्वोत्तम होती है, जो निःस्वार्थ एवं निष्काम भाव से की जाए। उन्होंने सेवा भाव के महत्व को बताते हुए कहा कि ब्रह्मज्ञान का बोध होने के उपरांत ही हमारे अंतर्मन में ‘नर सेवा, नारायण पूजा’ का भाव उत्पन्न होता है, तब हम प्रत्येक मानव में इस निरंकार प्रभु का ही अक्स देखते है।

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सतगुरु माता सुदीक्षा महाराज ने सेवा की सार्थकता को बताते हुए आह्वान् किया कि निरंकारी मिशन का प्रत्येक श्रद्धालु, सेवादार यहां पर प्राप्त होने वाली सिखलाईयों से निरंतर प्रेरणा लें और एक सुंदर समाज के नवनिर्माण में सहयोग दें।

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तन, मन, धन से की गई सेवा ही सर्वोत्तम भक्ति का सरल माध्यम

समागम स्थल पर जैसे ही सेवा का विधिवत् उद्घाटन हुआ, हजारों की संख्या में श्रद्धालु, सेवादार जो सेवा को ईश्वर भक्ति का एक अनुपम उपहार मानते हैं, वह सेवाओं में तनमयता से जुट गए और अपना अल्प योगदान देने लगे। सभी श्रद्धालु भक्त यह भली भांति जानते हैं कि तन, मन, धन से की जाने वाली निस्वार्थ सेवा ही सर्वोत्तम भक्ति का एक सरल माध्यम है, इसलिए वह सेवा के किसी भी अवसर को व्यर्थ नहीं जाने देते।

‘नर सेवा नारायण पूजा’ के सुंदर भाव को चरितार्थ करते हुए उसे प्राथमिकता देते है। वास्तविक रूप में सेवा का भाव ही मनुष्य में सही मायनों में मानवता का दिव्य संचार करते हुए उसे अहम् भावना से रहित करता है।