भारत में हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। जबकि 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाया जाता है। इस तरह से भारत में दो बार हिंदी दिवस मनाया जाता है।
किसी भी भाषा का प्रचलन उसके साहित्य विकास पर निर्भर करता है। खुद अच्छे से हिंदी न बोल पाने की बात डॉ. शील कौशिक को इनती कचोटी कि उन्होंने हिंदी का अध्ययन शुरू कर दिया। इसका परिणाम ये हुआ कि वे कई पुस्तकें लिख चुकी हैं। साथ ही लोगों को हिंदी के बारे में जागरुक कर रहीं हैं।
हिंदी साहित्य पर लिख चुकी हैं 54 पुस्तकें
डॉ. शील कौशिक अब तक हिंदी साहित्य पर 54 पुस्तकें लिख चुकी हैं। इसके साथ ही हिंदी की एक हजार पुस्तकों का विमोचन भी कर चुकी हैं। उन्हें हरियाणा की श्रेष्ठ महिला रचनाकार, पंडित माधव प्रसाद मिश्र सम्मान व अन्य सम्मान भी मिल चुके हैं।
हिंदी बचाने के लिए कर रही निरंतर प्रयास
डॉ. शील कौशिक हरियाणा में हिंदी को बचाने के लिए साहित्य के माध्यम से निरंतर प्रयास कर रही हैं। डॉ. कौशिक बताती है कि उनकी मेडिकल क्षेत्र में पढ़ाई की, जिसमें सभी किताबें अंग्रेजी भाषा में ही पढ़ाई जाती है। डॉ. शील कौशिक ने 31 साल तक सिरसा के नागरिक अस्पताल में बतौर मलेरिया अधिकारी अपनी सेवाएं दीं। सेवानिवृति होने के बाद डॉ. शील ने हिंदी को बचाने का प्रयास किया। उनकी हिंदी में 54 रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। इनमें कविताएं, बाल कहानियां, बाल साहित्य व अन्य रचनाएं शामिल हैं।
कैसे शुरू हुआ साहित्यकार बनने का सफर
शील कौशिक ने बताया कि एक दिन उन्होंने किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में हिस्सा लिया। मंच से साहित्यकार बहुत अच्छे से अपना भाषण दे रहे थे। इन्हें देखकर उनके मन में आया कि क्या मैं भी कभी हिंदी अच्छे से हिंदी बोल पाउंगी। क्योंकि उनकी पूरी पढ़ाई अंग्रेजी भाषा में थी और नौकरी के दौरान भी कागजी काम अंग्रेजी में ही था।
इस घटना के बाद उन्होंने हिंदी पर अध्ययन शुरू किया। इसके साथ ही उनका साहित्यकार बनने का सफर शुरू हआ। उनके पिता भी हिंदी प्रेमी थे। इसके कारण उनके संस्कारों में भी हिंदी कहीं न कहीं सम्माहित थी।
कार्यशाला लगाकर बच्चों को करती हैं प्रेरित
डॉ. कौशिक ने बताया कि वे समय-समय पर बच्चों को हिंदी से जोड़ने का प्रयास करती रहती हैं। उनका मानना है कि हिंदी को बचाने के लिए बचपन से ही शुरुआत करनी होगी। ये कार्यशालाएं समय-समय पर किसी स्कूल, किसी निजी स्थान या फिर युवक साहित्य सदन में लगती रहती हैं। इसमें बच्चों की रुचि को तराशा जाता है। हर स्कूल से पांच-पांच बच्चे कार्यशाला के लिए जाते हैं। इन पत्रों के माध्यम से हिंदी की गलतियां पकड़ी जाती है और सुधारी जाती है।